असम सरकार के कोच राजबोंगशी समुदाय को संरक्षित दर्जा देने के फैसले का राज्य के प्रभावशाली आदिवासी संगठनों ने कड़ा विरोध किया है.
यह दर्जा डिमोरिया, जलुकबारी, दिसपुर और न्यू गुवाहाटी के आदिवासी इलाकों में लागू करने की योजना है.
आदिवासी संगठनों का कहना है कि यह कदम उनकी भूमि अधिकारों पर सीधा हमला है और वे इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ेंगे.
सोनापुर में हुई बैठक
बुधवार को सोनापुर में कई आदिवासी संगठनों की बैठक हुई. इस बैठक में सरकार के फैसले का एकमत से विरोध किया गया.
बैठक की अध्यक्षता जनजाति महा संघ (असम) के उपाध्यक्ष मुक्ती लालुंग ने की और मुख्य वक्ता जीतेंद्र महीलारी रहे.
इस बैठक में अमरी-करनी नेशनल काउंसिल, करबी स्टूडेंट्स यूनियन (कामरूप), ऑल तिवा स्टूडेंट्स यूनियन, यूनाइटेड बोडो पीपल फोरम, कामरूप (मेट्रो) भूमि संरक्षण समिति, बोडो-कछारी यूथ स्टूडेंट्स यूनियन, डिमोरिया गारो यूनियन, डिमोरिया बथौ समिति और तिवा महिला संस्था जैसे संगठनों ने हिस्सा लिया.
आदिवासी नेताओं की कड़ी प्रतिक्रिया
ऑल तिवा स्टूडेंट्स यूनियन के उपाध्यक्ष धनश्वर डोलोई ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि यह असम भूमि और राजस्व विनियमन अधिनियम, 1886 का उल्लंघन है.
उन्होंने कहा, “कोच राजबोंगशी समुदाय को कभी भी इन क्षेत्रों में संरक्षित वर्ग के रूप में मान्यता नहीं दी गई. जो लोग 1950 से पहले यहां रह रहे थे, उनके पास पहले से भूमि अधिकार हैं. यह फैसला नए दावेदारों को जोड़ने का प्रयास है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.”
कामरूप (मेट्रो) भूमि संरक्षण समिति के अध्यक्ष कूलन बोडो ने भी चिंता जताई और कहा, “दक्षिण कामरूप जनजातीय क्षेत्र पहले ही प्रशासनिक लापरवाही और अवैध बसावटों के कारण भूमि खो चुका है. यह फैसला आदिवासी भूमि अधिकारों को और कमजोर करेगा. हम सरकार से इसे तुरंत वापस लेने की मांग करते हैं.”
आंदोलन और कानूनी लड़ाई की चेतावनी
इस फैसले के विरोध में आदिवासी संगठनों ने 8 अप्रैल को जनजागरूकता अभियान शुरू करने की घोषणा की है. इसमें बुद्धिजीवियों, समुदाय के नेताओं और आम जनता को शामिल होने का आह्वान किया गया है.
आदिवासी नेताओं का कहना है कि यह सिर्फ प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि असम के आदिवासी समुदायों के भविष्य पर सीधा हमला है. अगर सरकार ने पुनर्विचार नहीं किया तो हम कानूनी कदम उठाएंगे.
कोच-राजबंशी समुदाय की मांगें
इसी बीच, केंद्रीय असम ऑल कोच राजबोंगशी स्टूडेंट्स यूनियन (AKRSU) ने गुरुवार को राहा में कलेक्टर कार्यालय के बाहर दो घंटे का प्रदर्शन किया.
उनकी मुख्य मांग है कि असम को जनजातीय राज्य घोषित किया जाए और इनर लाइन परमिट (ILP) को लागू किया जाए. इसके अलावा वे लंबे समय से कोच राजबोंगशी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मांग भी कर रहे हैं.
वे असम समझौते के क्लॉज 6 को लागू किए जाने की भी मांग कर रहे हैं.
जनजाति सुरक्षा परिषद के समर्थन से हुए इस प्रदर्शन में सैकड़ों लोग शामिल हुए.
परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष और पूर्व विधायक दर्लोव चमुआ ने कहा कि वे अपनी मांगों को लेकर संघर्ष जारी रखेंगे.
अन्य समुदायों की भी ST दर्जे की मांग
कोच राजबोंगशी समुदाय अकेला नहीं है जो अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहा है. मोरान, मातक, चुटिया, चाय जनजाति और ताई अहोम समेत छह समुदाय भी इसी मांग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं.
जब असम सरकार ने केंद्र सरकार को इन समुदायों को ST सूची में शामिल करने का प्रस्ताव भेजा तब इस मुद्दे को संसद में उठाया गया था. हालांकि, इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है.
वहीं असम के आदिवासी क्षेत्र में संरक्षित समुदायों के दर्जे को लेकर विवाद लंबे समय से चला आ रहा है.
आदिवासी संगठन लगातार अतिक्रमण और जनसांख्यिकीय बदलाव को लेकर चिंता जताते रहे हैं.
भविष्य में इस विवाद के और बढ़ने की संभावना है क्योंकि आदिवासी संगठनों ने साफ कर दिया है कि वे किसी भी तरह की छेड़छाड़ का कड़ा विरोध करेंगे.
संरक्षित समुदाय होने का क्या मतलब होता है
असम में किसी समुदाय को संरक्षित समुदाय (Protected Class) घोषित करने का अर्थ है कि उस समुदाय के भूमि अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए विशेष कानूनी प्रावधान लागू किए जाते हैं. यह प्रावधान मुख्यतः असम भूमि और राजस्व विनियमन अधिनियम, 1886 के तहत बनाए गए प्रोटेक्टेड ट्राइबल बेल्ट्स और ब्लॉक्स में लागू होते हैं.
संरक्षित समुदायों की सूची
असम में निम्नलिखित समुदायों को संरक्षित समुदाय का दर्जा प्राप्त है:
- 1.अनुसूचित जनजातियाँ (Plains और Hills)
- 2. अनुसूचित जातियाँ
- 3. संथाल
- 4. चाय बागान और पूर्व चाय बागान जनजातियाँ
- 5. गोरखा (नेपाली कृषक और पशुपालक)
- 6. कोच राजबोंगशी (अविभाजित गोलपारा जिले से)
हाल ही में, असम सरकार ने अहोम, कोच राजबोंगशी, गोरखा, और अन्य कुछ समुदायों को भी संरक्षित वर्ग में शामिल करने का निर्णय लिया है.
संरक्षित समुदाय और अनुसूचित जनजाति: क्या वे समान हैं?
संरक्षित समुदाय और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) समान नहीं हैं. संरक्षित समुदाय का दर्जा मुख्यतः भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए दिया जाता है.
संरक्षित समुदायों की भूमि बाहरी लोगों द्वारा अधिग्रहित नहीं की जा सकती है. दूसरी ओर, अनुसूचित जनजाति का दर्जा भारत के संविधान के तहत दिया जाता है. अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल समुदायों को शिक्षा, रोजगार, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण और अन्य लाभ मिलते है.
उदाहरण के लिए, चाय बागान समुदाय में कई जनजातियाँ शामिल हैं, जिन्हें अन्य राज्यों में अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है, लेकिन असम में वे इस दर्जे से वंचित हैं।
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