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महाराष्ट्र में आदिवासी विकास फंड के 64 करोड़ रुपये से अधिक की राशि लैप्स

जिला अधिकारियों को वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले स्वीकृत कार्यों के बिल सरकार के ऑनलाइन सिस्टम में जमा करने होते हैं. इन बिलों को जमा न करने का मतलब है कि फंड लैप्स हो जाएगा, जिससे अगले वित्तीय वर्ष के लिए फंड का आवंटन प्रभावित होगा.

महाराष्ट्र में वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन काम के बिल जमा करने में देरी और आखिरी समय में जल्दबाजी के कारण 64 करोड़ रुपये से अधिक की राशि लैप्स हो गई. इस राशि का उपयोग आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी विकास विभाग द्वारा किए जाने वाले सड़कों के निर्माण के लिए किया जाना था.

आदिवासी विकास विभाग ने 31 मार्च को राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सड़कों और पुलों के निर्माण के लिए 439.99 करोड़ रुपये के बिल जारी किए.

सूत्रों के मुताबिक, ठाणे जिले में 45 करोड़ रुपये, अहिल्यानगर में 1 करोड़ रुपये, नागपुर में 13 करोड़ रुपये और गढ़चिरौली में 3 करोड़ रुपये की राशि लैप्स हो गई.

प्रक्रिया के मुताबिक, विभाग से निधि जनजातीय आयुक्त को वितरित की जाती है और वहां से इसे स्वीकृत अनुमानों के आधार पर जिलों को भेजा जाता है.

जिला अधिकारियों को वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले स्वीकृत कार्यों के बिल सरकार के ऑनलाइन सिस्टम में जमा करने होते हैं. इन बिलों को जमा न करने का मतलब है कि फंड लैप्स हो जाएगा, जिससे अगले वित्तीय वर्ष के लिए फंड का आवंटन प्रभावित होगा.

नतीजतन, अधिकारी 31 मार्च की रात 12 बजे से पहले स्वीकृत कार्यों के बिल जमा करके प्रक्रिया पूरी करने की जल्दी में हैं. किसी विशेष वित्तीय वर्ष में संबंधित विभाग के व्यय के आधार पर, अगले वित्तीय वर्ष में धन का आवंटन तय किया जाता है.

31 मार्च को विभाग की ओर से कार्य सूची को अंतिम रूप देने में देरी के कारण जिला स्तर पर अंतिम तीन घंटों में भीड़ लग गई.

एक अधिकारी ने पुष्टि की, “क्योंकि ये काम बहुत छोटी राशि के हैं, जिसकी शुरुआत 3 लाख रुपये से होती है इसलिए बड़ी संख्या में बिल अपलोड किए गए. इससे प्रक्रिया धीमी हो गई और वित्तीय वर्ष के अंत से पहले 65 करोड़ रुपये के बिल समय पर अपलोड नहीं किए जा सके.”

राज्य वित्त पर कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (CAG) की लगातार रिपोर्टों में विभिन्न राज्य विभागों द्वारा पिछली तिमाही के दौरान व्यय में की गई तेजी को उजागर किया गया है.

31 मार्च 2023 को समाप्त वर्ष के लिए भारत के कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल की राज्य वित्त ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया था कि वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने में भारी व्यय विवेकपूर्ण वित्तीय प्रबंधन के अनुरूप नहीं है और यह कमजोर आंतरिक नियंत्रण प्रणाली और बजटीय प्रबंधन की कमी को दर्शाता है.

संपर्क करने पर विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि कुछ राशि लैप्स हो गई है.

अधिकारी ने कहा, “लेकिन यह राशि राज्य के खजाने में ही वापस चली गई है और सरकारी खजाने को कोई नुकसान नहीं हुआ है. हम भविष्य में ऐसी चीजों से बचेंगे और अधिक राशि लाएंगे.”

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