भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन कुछ नाम इतिहास के पन्नों में उतने प्रसिद्ध नहीं हो सके जितने होने चाहिए थे. ऐसे ही एक क्रांतिकारी थे राघोजी भांगरे. राघोजी ने महाराष्ट्र के महादेव कोली समाज के अधिकारों की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया.
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
राघोजी भांगरे का जन्म 8 नवंबर 1805 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के देवगांव में हुआ था. उनके पिता रामजी भांगरे उस समय राजूर प्रांत में सूबेदार के रूप में कार्यरत थे.
जब 1818 में अंग्रेजों ने महाराष्ट्र में शासन स्थापित किया, तब महादेव कोली समाज के लोगों से उनके अधिकार छीन लिए गए.
पहले, उन्हें सह्याद्रि पर्वतमाला के किलों की रक्षा का कार्य सौंपा जाता था, लेकिन अंग्रेजों ने यह अधिकार छीनकर शिलेदारों और वतनदारों के पद समाप्त कर दिए. न केवल उनकी जिम्मेदारियां छीनी गईं, बल्कि उनकी तनख्वाह भी कम कर दी गई.
अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह
साल 1828 में जब अंग्रेजों ने कृषि कर बढ़ाया और गरीब किसानों को साहूकारों के चंगुल में धकेल दिया, तब समाज में असंतोष और बढ़ गया.
इस अन्याय के विरोध में राघोजी भांगरे ने आंदोलन शुरू किया, जिसमें रतनगढ़ के किलेदार गोविंदराव खाडे भी शामिल हुए.
हालांकि अंग्रेजों ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए.
राघोजी भांगरे को गिरफ्तार कर काले पानी की सजा दी गई. इस घटना से युवा राघोजी के मन में भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी जल उठी.
क्रांतिकारी मार्ग पर अग्रसर
अंग्रेजों ने उन्हें नौकरी पर रखा ताकि राघोजी अपने पिता के संघर्ष का हिस्सा न बनें. लेकिन जब उन पर डकैती का झूठा आरोप लगाया गया और उनके परिवार को भी प्रताड़ित किया गया तब उन्होंने संघर्ष का मार्ग चुन लिया.
राघोजी ने पुलिस थाने पर हमला कर हथियार लूटे और जंगल की ओर चले गए.
जल्द ही उन्होंने सह्याद्रि पर्वतमाला के विभिन्न क्षेत्रों से युवाओं की एक सेना तैयार की जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोग शामिल थे.
अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष
साल 1827 से 1845 तक राघोजी ने अपने साथियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ छापामार युद्ध शुरू किया.
वे साहूकारों और अंग्रेजी अफसरों के ठिकानों पर हमला करते और वहां से लूटी गई संपत्ति गरीबों में बांट देते.
1845 में उनकी सेना ने अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़े युद्ध में भाग लिया जिसमें कई क्रांतिकारी शहीद हुए और कई गिरफ्तार कर लिए गए.
गिरफ्तारी और बलिदान
1847 में अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने के लिए अभियान चलाया. आखिर में राघोजी भांगरे को पंढरपुर में गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें ठाणे की जेल में बंद कर दिया गया और 2 मई 1848 को फांसी की सजा दे दी गई.
उनका बलिदान महाराष्ट्र के आदिवासी समुदाय और स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष करने वाले वीरों के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहेगा.
राघोजी भांगरे का जीवन साहस, नेतृत्व और संघर्ष का प्रतीक है. उन्होंने महादेव कोली समाज के हकों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन उनके बलिदान को वो जगह नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी.