HomeIdentity & Lifeकोकबोरोक भाषा बचाने के लिए TSF की अनिश्चितकालीन हड़ताल

कोकबोरोक भाषा बचाने के लिए TSF की अनिश्चितकालीन हड़ताल

टिपरा मोथा प्रमुख प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने भाषा को किसी भी राजनीतिक दल या नेता से बड़ा बताया. उन्होंने कहा कि किसी भी समुदाय पर जबरदस्ती कोई भाषा थोपी नहीं जानी चाहिए.

त्रिपुरा में कोकबोरोक भाषा को लेकर एक बार फिर विवाद बढ़ता जा रहा है. पूर्वोत्तर छात्र संगठन (NESO) का प्रमुख अंग ट्विप्रा स्टूडेंट्स फेडरेशन ने 21 मार्च से राज्यव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू की है.

संगठन ने उनकी मांगों को पूरा न करने पर सभी राष्ट्रीय राजमार्गों को अवरुद्ध करने की चेतावनी दी है.

TSF की मांग है कि कोक बोरोक भाषा की परीक्षा के लिए रोमन लिपि को आधिकारिक रूप से स्वीकार किया जाए.

इसके अलावा वे उन छात्रों के लिए पुन: परीक्षा की भी मांग कर रहे हैं, जो हाल ही में हुई परीक्षा में प्रश्नपत्र केवल बंगाली लिपि में होने के कारण उत्तर नहीं लिख पाए.

संगठन ने प्रशासन पर लगाया अनदेखी का आरोप

TSF के महासचिव हमलू जमातिया ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी मांगों को वर्षों से अनसुना किया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि पिछले साल भी इस मुद्दे पर हड़ताल की गई थी और राज्यपाल से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा गया था.

त्रिपुरा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (TBSE) और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) से भी इस विषय पर आग्रह किया गया था कि परीक्षा प्रश्नपत्र को रोमन और बंगाली दोनों लिपियों में उपलब्ध कराया जाए.

हमलू जमातिया ने कहा आग्रह करने के बावजूद 17 मार्च को हुई बोर्ड परीक्षा में एक बार फिर कोक बोरोक का प्रश्नपत्र केवल बंगाली लिपि में दिया गया. इस कारण कई छात्रों को कठिनाई हुई और वे उत्तर लिख ही नहीं सके. विशेष रूप से निजी स्कूलों के छात्रों को इस समस्या का सामना करना पड़ा. इससे छात्र और उनके अभिभावक बेहद निराश हैं.

उन्होंने आगे बताया कि TSF ने छात्रों और उनके परिवारों से चर्चा के बाद यह निर्णय लिया कि अब आंदोलन को और तेज किया जाएगा.

संगठन ने अपील की है कि राज्य के सभी छात्र और आम जनता इस आंदोलन में उनका समर्थन करें.

राजनीतिक नेतृत्व ने भी दिया समर्थन

इस मुद्दे पर त्रिपुरा के प्रमुख राजनीतिक चेहरों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है.

टिपरा मोथा संस्थापक प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने भाषा को किसी भी राजनीतिक दल या नेता से बड़ा बताया. उन्होंने कहा कि किसी भी समुदाय पर जबरदस्ती कोई भाषा थोपी नहीं जानी चाहिए.

उन्होंने सरकार की आलोचना करते हुए कहा, “छात्र लंबे समय से अपनी भाषा के अधिकार की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही. परीक्षा में असफल होने की स्थिति में अगर छात्र भटक गए तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? क्या सिर्फ इसलिए किसी को फेल करना सही है कि वह किसी खास लिपि को नहीं पढ़ सकता? यह गलत है. सरकार को इस समस्या का स्थायी समाधान निकालना होगा.”

उन्होंने कहा, “मेरी प्राथमिकता हमेशा टिपरासा समुदाय रहेगा, न कि कोई राजनीतिक गठबंधन”.

उन्होंने चेतावनी दी कि यदि राज्य की 32% आबादी को नजरअंदाज किया जाएगा तो ऐसा ही होगा.

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह आंदोलन और तेज हुआ, तो यह राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है.

साथ ही, राष्ट्रीय राजमार्गों के बंद होने से सामान्य जनजीवन भी प्रभावित होने की संभावना है.

फिलहाल सरकार और शिक्षा विभाग की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है.

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