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मणिपुर: मैती समुदाय का आंदोलन तेज़, ST स्टेटस मांग को लेकर सरकार को अल्टीमेटम

STDCM की मैती के लिए एसटी स्टेटस की मांग 2012 से चली आ रही है. लेकिन इतने साल बाद भी राज्य सरकारों ने इस मामले को निपटाने के लिए कोई पहल नहीं की है.

मणिपुर में मैती समुदाय को ST सूची में शामिल करने की मांग ज़ोर पकड़ती जा रही है.मणिपुर की अनुसूचित जनजाति मांग समिति (STDCM) इस मांग को लेकर लगातार आंदोलन कर रही है. अब समिति ने इस मांग को लेकर राज्य सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है. शुक्रवार को समिति की ओर से सैंकड़ों महिलाओं ने कोंगबा कीथेल और निंगथौखोंग कीथेल बाज़ारों में प्रदर्शन किए. महिला कार्यकर्ताओं, व्यापारियों और वेंडरों ने हाथों में तख्तियां लेकर और मानव श्रंखला बनाकर प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन को दौरान STDCM ने राज्य की बीजेपी सरकार से 2023 के अंत से पहले मैती समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग की है.

महिलाओं ने राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से अनुसूचित जनजाति सूची में मैती को शामिल करने के लिए राज्य सरकार की आवश्यक सिफारिश भेजने का आग्रह किया. कोंगबा कैथल में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, STDCM की महिला विंग की सदस्य सुमति सौगरकपम ने सरकार से सवाल किया कि वो इस मांग को लेकर 10 सालों से आंदोलन कर रहे है इसके बावजूद सरकारें एसटी सूची में मैती को जोड़ने के लिए कोई ठोस निर्णय क्यों नहीं ले रही हैं.समिति का साफ कहना है कि बिना किसी संवैधानिक सुरक्षा के समुदाय के अस्तित्व पर खतरा है. समिति ने सरकार के उदासीन रवैये की निंदा भी की.

वहीं अनुसूचित जनजाति मांग समिति की बिष्णुपुर जिला शाखा के सह संयोजक आरके तोम्बिशाना देवी ने कहा कि STDCM इस मांग के समर्थन में विभिन्न प्रकार के लोकतांत्रिक आंदोलनों का आयोजन करता रहा है जैसे धरना-प्रदर्शन करना, मानव श्रृंखला बनाना, जनसभा करना आदि. उन्होंने बताया कि मणिपुर के 29 विधायकों से भी STDCM समिति ने मुलाकात की है जिन्होंने इस मांग का समर्थन किया है.

आरके ओंगबी तोम्बिसाना देवी ने कहा कि सरकार बार बार झूठा वादा कर रही है कि वो मैती को अनुसूचित जनजाति (एसटी) के तहत सूचीबद्ध कराएगी, लेकिन इस दिशा में कदम नहीं उठा रही. उन्होंने कहा, “हम खुश नहीं हैं क्योंकि भारत और मणिपुर सरकार हमारे आंदोलनों की उपेक्षा कर रहे हैं. इसलिए, हम राज्य सरकार से अपील करते हैं कि वह 2023 समाप्त होने से पहले एसटी के लिए सिफारिश केंद्र सरकार को भेजे”.

वहीं शिवसेना की राज्य इकाई ने कहा है कि मणिपुर के 60 विधायक मीटी/मीतेई को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के लिए एकजुट होकर काम करना चाहिए. शिवसेना की राज्य इकाई के अध्यक्ष एम तोम्बी ने बताया कि केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री डॉ आरके रंजन के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री को ज्ञापन सौंपा गया था.

मणिपुर की अनुसूचित जनजाति मांग समिति (STDCM),इंटरनेशनल मैती फोरम और मैती जनजाति संघ इस मांग को लेकर पहले ही राज्यपाल ला गणेशन और मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को ज्ञापन सौंपा चुका है.

STDCM की मैती के लिए एसटी स्टेटस की मांग 2012 से चली आ रही है. 4 मार्च, 2019 को विधायक के मेघचंद्र ने इस मांग को लेकर सरकार से विधानसभा में सवाल किया था.

इसके जवाब में मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने कहा था कि वह व्यक्तिगत रूप से इस मांग से सहमत हैं, और इसे पूरा करने की कोशिश करेंगे. लेकिन इतने साल बाद भी राज्य सरकार ने इस मामले को निपटाने के लिए कोई पहल नहीं की है.

उधर राज्य के आदिवासी समूहों का कहना है कि अगर मैती समुदाय को आदिवासी का दर्जा दिया गया तो वह ख़ुद के लिए अलग राज्य की मांग रखेंगे. दरअसल मणिपुर की इम्फ़ाल घाटी में राज्य का 10% भूक्षेत्र हैं, लेकिन लगभग 60% आबादी है. इनमें ज़्यादातर मैती समुदाय से हैं. आसपास की पहाड़ियों में नागा और कूकी आदिवासी रहते हैं. एक तरफ़ जहां घाटी में कोई भी ज़मीन खरीद सकता है, मैती समुदाय के लोग पहाड़ों में ज़मीन नहीं खरीद सकते. वहीं इम्फाल घाटी में फैले 60 निर्वाचन क्षेत्रों में से दो-तिहाई यानी 40 सीटों पर मैती का दबदबा है. ऐसे में आदिवासी नागा और कुकी समूहों को मैती की इस मांग से खतरा महसूस हो रहा है. उनके मुताबिक अधिक सीटों की वजह से मैती के पास पहले से ही अधिक राजनीतिक शक्तियां हैं. मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मैती समुदाय से बनी है, जबकि नागा आदिवासी आबादी 24 प्रतिशत है, और कुकी-ज़ो आबादी 16 प्रतिशत है.

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