HomeIdentity & Lifeविमुक्त जनजातियों के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह कब तक कायम रहेगा

विमुक्त जनजातियों के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह कब तक कायम रहेगा

विमुक्त जनजातियों (denotified tribes) से बेशक क़ानून तौर पर अपराधी का टैग हट गया है, लेकिन अघोषित तरीके से अभी भी उनके बारे में यह धारणा कायम है कि वे जन्मजात अपराधी हैं.

जनवरी में महाराष्ट्र वन विभाग ने पारधी समुदाय के एक सदस्य अजीत पारधी को गिरफ्तार किया. महीने के अंत में यानि 29 जनवरी को मध्य प्रदेश वन विभाग ने राज्य के सभी वन्यजीव मंडलों और वन अधिकारियों को पत्र लिखकर कहा कि पारधी एक कुख्यात बाघ शिकारी था, जो “11 वर्षों से फरार था.”

इस पत्र में पारधी समुदाय के बारे में व्यापक बयान दिए गए थे. पारधी जनजाति को औपनिवेशिक कानूनों के तहत “अपराधी” के रूप में वर्गीकृत किया गया था. हालाँकि अब यह क़ानून निरस्त कर दिया गया है.

वन विभाग के इस पत्र में कहा गया है कि समुदाय के सदस्य राज्य के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय थे. इनमें विशेष रूप से नर्मदापुरम, सिवानी, छिंदवाड़ा, बैतूल, भोपाल, जबलपुर और बालाघाट के सात वन मंडल शामिल हैं..

इस पत्र में एक ऐसी बात लिखी गई है जो अधिकारियों की औपनिवेशिक सोच को दर्शाती है. इस पत्र में कहा गया है कि ऐसे समुदायों के आपराधिक रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए वन अधिकारियों को उनकी गहन गश्त और निगरानी करनी थी.

वन विभाग के पत्र में यह निगरानी चार तरीकों से करने का निर्देश दिया गया. औषधीय जड़ी-बूटियां, खाद्य पदार्थ, प्लास्टिक की वस्तुएं और चादरें बेचने वालों पर निगरानी रखना.

इस पत्र में यह हिदयात भी दी गई है कि उनके नाम, पते और आधार कार्ड का विवरण दर्ज किया जाए. वन विभाग की तरफ से जारी इस पत्र में यह सारी जनाकारी राज्य की “टाइगर स्ट्राइक फोर्स” को सौंपाने के लिए कहा गया है.

इन निर्देशों ने दशकों पुराने अन्याय की याद दिला दी है जब औपनिवेशिक काल में आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 के तहत “जन्मजात अपराधी” कहे जाने वाले करीब 200 समुदायों पर कहर ढाए गए थे.

इस कानून के तहत समुदायों पर कड़ी पुलिस निगरानी रखी जाती थी और 1952 तक कई वर्षों तक अधिकारों का उल्लंघन होता रहा, जब कानून को निरस्त कर दिया गया.

यह अलर्ट सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी उल्लंघन है. दिल्ली में 2024 में पुलिस द्वारा गैर-अधिसूचित जनजातियों पर निगरानी रखने के तरीकों पर चर्चा की गई थी.

इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “पुलिस डायरियां केवल जातिगत पूर्वाग्रह के आधार पर विमुक्त जातियों से संबंधित व्यक्तियों के बारे में चुनिंदा रूप से रखी जाती हैं, कुछ हद तक औपनिवेशिक काल की तरह.”

इसके बाद इसने सभी राज्य सरकारों को ऐसे समुदायों को पक्षपातपूर्ण व्यवहार से बचाने के लिए निवारक उपाय करने का निर्देश दिया.

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