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आदिवासियों ने जंगल महल उत्सव का बहिष्कार क्यों किया

जंगल महल का इतिहास उथल-पुथल भरा रहा है, जिसमें जल-जंगल-ज़मीन यानि जल, जंगल और भूमि अधिकार के लिए अतीत और समकालीन आंदोलन, अपने समुदायों की विशिष्ट भाषा, लिपि, संस्कृति और इतिहास के लिए मान्यता और माओवादी आंदोलन शामिल हैं.

पिछले दस सालों से पश्चिम बंगाल सरकार राज्य के दक्षिण-पश्चिमी जिलों मालदा और अलीपुरद्वार में सर्दियों के महीनों में जंगल महल उत्सव का आयोजन करती आ रही है.

इस उत्सव का उद्देश्य इस क्षेत्र की बहुसंख्यक आबादी, आदिवासी समुदायों की कला, शिल्प और संस्कृति को पुनर्जीवित और संरक्षित करना है.

लेकिन इस वर्ष कई आदिवासी संगठन 20 और 21 जनवरी को आयोजित उत्सव का बहिष्कार करने के लिए एक साथ आए.

पश्चिम बंगाल अनुसूचित जनजाति कल्याण संघ (WBSTWA) के बैनर तले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बहिष्कार का कारण बताया गया. और वो था आदिवासी समुदाय के वास्तविक विकास की निरंतर उपेक्षा…

जंगल महल

जंगल महल क्षेत्र में बीरभूम, बांकुरा, पुरुलिया, पश्चिम मिदनापुर, झारग्राम, पश्चिम बर्दवान और पूरब बर्दवान जिले शामिल हैं.

जंगल महल का इतिहास उथल-पुथल भरा रहा है, जिसमें जल-जंगल-ज़मीन यानि जल, जंगल और भूमि अधिकार के लिए अतीत और समकालीन आंदोलन, अपने समुदायों की विशिष्ट भाषा, लिपि, संस्कृति और इतिहास के लिए मान्यता और माओवादी आंदोलन शामिल हैं.

राज्य सरकार ने वर्ष 2000 में इन पिछड़े क्षेत्रों के लिए पश्चिमांचल उन्नयन परिषद क्षेत्र (PUPA) शब्द का प्रयोग किया था. उसके बाद इन क्षेत्रों में विकास कार्यों के बेहतर क्रियान्वयन और निगरानी के लिए पश्चिमांचल उन्नयन परिषद का गठन किया था.

2006 में इन प्रयासों को कारगर बनाने के लिए पश्चिमांचल उन्नयन मामलों का एक विभाग बनाया गया था. लेकिन विभाग की कोई वेबसाइट नहीं है.

बहिष्कार का आह्वान

पुरुलिया के महात्मा गांधी कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष शशिकांत मुर्मू ने कहा, “शिक्षा के अवसरों और पहुंच की कमी हमेशा से एक बड़ी चिंता का विषय रही है. लेकिन यह तथ्य कि हमें अभी भी अपने बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाओं की मांग करने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है, सरकार के लिए शर्म की बात है.”

2020 में प्रतीची ट्रस्ट और एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल द्वारा जारी एक रिपोर्ट में राज्य में आदिवासी आबादी के खराब जीवन स्तर के बारे में बताया.

पश्चिम बंगाल में केवल सात एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) हैं. सरकार की आदिवासी कल्याण वेबसाइट के मुताबिक प्रत्येक ईएमआरएस में छठी से बारहवीं कक्षा तक प्रति कक्षा 60 छात्रों की क्षमता है. इस तरह प्रति ईआरएमएस कुल 3,600 छात्र हैं.

हालांकि, वेबसाइट पर प्रदर्शित एनरोलमेंट का आंकड़ा सभी 7 ईएमआरएस में सामूहिक रूप से 2,728 छात्रों का है. जबकि जंगल महल क्षेत्र में यह संख्या 1,950 छात्रों की है.

वेबसाइट के आंकड़ों से पता चलता है कि एसटी डे स्कॉलर्स को दी जाने वाली शिक्षाश्री छात्रवृत्ति में भारी गिरावट आई है (2014-2022).

इस मुद्दे पर काम करने वालों का यह भी दावा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए उपलब्ध कई स्कूल और छात्रावास बंद पड़े हैं.

कोई भी पार्टी आदिवासी मुद्दों की परवाह नहीं करती

बहिष्कार के लिए दिया गया दूसरा प्रमुख कारण गैर-एसटी समुदायों के लोगों द्वारा एसटी प्रमाणपत्रों का कथित दुरुपयोग था.

आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधियों और नेताओं का मानना है कि सरकार की जानकारी के बिना ऐसी धोखाधड़ी गतिविधि संभव नहीं है.

WBSTWA के राज्य सचिव पासिल किस्कू ने आरोप लगाया कि राज्य के 2023 के पंचायत चुनाव में हमने देखा कि तीनों प्रमुख दलों, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ने के लिए गलत तरीके से एसटी प्रमाण पत्र रखने वाले गैर-एसटी उम्मीदवारों का चयन किया.

उन्होंने कहा कि उस समय हमें एहसास हुआ कि कोई भी राजनीतिक दल आदिवासियों की परवाह नहीं करता है और हमें खुद ही कुछ करना होगा.

2020 में गठित 40 से ज़्यादा आदिवासी अधिकार संगठनों के साथ कई दौर की चर्चाओं के बाद, WBSTWA ने फ़र्जी एसटी प्रमाणपत्रों की जांच के लिए बहुत काम किया है.

राजनीतिक उम्मीदवारी से लेकर सरकारी स्कूल के शिक्षकों और NEET छात्रों तक; राज्य सरकार को 2023-24 में लगभग 1,650 फ़र्जी एसटी प्रमाणपत्र रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा. जिसके बारे में एसोसिएशन का दावा है कि यह संख्या तो कुछ भी नहीं है.

आदिवासियों के लिए एसटी प्रमाण पत्र बेहद अहम है. क्योंकि ये न सिर्फ उनको आरक्षण तक पहुंच प्रदान करता है बल्कि उन्हें अपनी जमीन पर कब्जा बनाए रखने में सक्षम बनाता है, जो उनके अस्तित्व का अभिन्न अंग है.

दरअसल, बहिष्कार का निर्णय अचानक नहीं लिया गया. क्योंकि ये लंबे समय से चली आ रही मांगें हैं जो आदिवासी कल्याण और अधिकार समूह ब्लॉक स्तर से लेकर राज्य स्तर तक करते रहे हैं.

सबसे हालिया सार्वजनिक सभाएं और प्रतिनिधिमंडल जनवरी 2025 और दिसंबर 2024 में हुए. दिसंबर में जंगल महल से सैकड़ों आदिवासी समुदाय कोलकाता में पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग में एकत्र हुए. इसी तरह की एक बैठक इस साल जनवरी में आदिवासी विकास विभाग में आयोजित की गई थी.

जंगल महल चुनावी रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य में एसटी सांसद के लिए दो आरक्षित सीटों में से एक यहीं से आती है.

2024 के आम चुनावों में प्रधानमंत्री ने भाजपा उम्मीदवार के लिए प्रचार किया और पुरुलिया जिले के अयोध्या पहाड़ी की चोटी पर राम मंदिर के निर्माण सहित कई बड़े वादे किए.

भाजपा ने 2018 के पंचायत और 2019 के आम चुनावों में जंगल महल और उत्तरी बंगाल में बड़ी बढ़त हासिल की. लेकिन दोनों चुनावों के दूसरे दौर में इसकी किस्मत बदल गई, जो आदिवासी और मूल निवासी राजनीति की विविधता और जटिलता को दर्शाता है.

पर्यावरण के मुद्दों पर काम करने वाले प्रकृति बचाओ आदिवासी बचाओ मंच के राजेश्वर टुडू बहिष्कार पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए और आदिवासी समुदायों के बीच उनके अधिकारों के बारे में अधिक जागरूकता की आवश्यकता की वकालत की.

उन्होंने कहा, “राज्य सरकार हमारा ध्यान मेलों और फुटबॉल पर केंद्रित करने में पैसा और समय खर्च करने में व्यस्त है, जबकि इनमें कुछ भी गलत नहीं है, हम इनका आनंद लेते हैं लेकिन हमें इनका विरोध करना होगा क्योंकि हमें अपनी शिक्षा और संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है.”

उदाहरण के लिए, लगभग 20 साल होने जा रहे हैं और राज्य में, विशेष रूप से दक्षिण-पश्चिम में वन अधिकार अधिनियम, 2006 के उचित कार्यान्वयन के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है.

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