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ग्रेट निकोबार परियोजना के कारण किसी भी आदिवासी को विस्थापित नहीं किया जाएगा : सरकार

निकोबार द्वीप के दक्षिण-पूर्वी तट पर गैलाथिया खाड़ी में 35,000 करोड़ रुपये का ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह बनाया जाना है. इसके अलावा द्वीप पर एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक बिजली संयंत्र और 160 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में एक ग्रीनफील्ड टाउनशिप की योजना भी है.

ग्रेट निकोबार द्वीप (Great Nicobar island) पर चल रहे ग्रेट निकोबार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को लेकर पर्यावरणविद, वैज्ञानिक, वन्यजीव विशेषज्ञ और नागरिक समाज संगठन शुरुआत से ही चिंतित हैं.

लेकिन अब जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम (Jual Oram) ने राज्यसभा में कहा कि ग्रेट निकोबार परियोजना (Great Nicobar Project) के कारण पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और कोई भी आदिवासी विस्थापित नहीं होगा.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह परियोजना अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण देश के लिए महत्वपूर्ण है.

मंत्री ने बुधवार को राज्यसभा में कहा कि सरकार को ग्रेट निकोबार इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना पर आपत्तियों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है.

उनका कहना है कि न तो ग्रेट निकोबार द्वीप समूह की जनजातीय परिषद द्वारा उठाई गई है और न ही मानवविज्ञानी विश्वजीत पंड्या द्वारा एक वीडियो रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया गया है.

ओराम ने कहा कि परियोजना जिसमें एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, एक हवाई अड्डा, एक गैस पावर प्लांट और पर्यटन बुनियादी ढांचे का निर्माण शामिल है. वो राष्ट्रीय हित में है और इसका कोई “पर्यावरणीय प्रभाव नहीं होगा और न ही किसी आदिवासी को विस्थापित किया जाएगा.”

ओराम ने प्रश्नकाल के दौरान पूरक प्रश्नों का उत्तर देते हुए यह बात कही.

इससे पहले विपक्ष के कई सदस्यों ने मंत्री द्वारा परियोजना के तहत विस्थापित किए जाने वाले आदिवासियों से संबंधित प्रश्न का लिखित उत्तर न दिए जाने पर आपत्ति जताई थी.

ओराम ने कहा, “यह परियोजना देश के हित में सामाजिक-आर्थिक और व्यावसायिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. हम समुद्री मार्ग से मात्र 40 किलोमीटर दूर हैं. इसलिए हम इसे छोड़ नहीं सकते.”

दरअसल, तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सदस्य साकेत गोखले और कांग्रेस के जयराम रमेश ने इस मामले में पूछा था कि मंत्री ने सवाल का जवाब क्यों नहीं दिया.

गोखले ने पूछा था कि ग्रेट निकोबार परियोजना के लिए दी गई पर्यावरण और वन मंजूरी का स्थानीय आदिवासी समुदायों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) द्वारा उठाई गई चिंताओं पर क्या कार्रवाई की गई है.

गोखले ने यह भी कहा कि दुनिया में शोम्पेन जनजाति के केवल 229 सदस्य ही रह गए हैं.

इसके जवाब में ओराम ने कहा कि सुनामी के बाद द्वीप पर निचले इलाके के कारण कई आदिवासी वहां से चले गए थे.

साथ ही उन्होंने सदन को बताया कि एनजीटी के फैसले के बाद एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई है और एनजीटी के आदेशों के अनुसार काम किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, “आप मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं क्योंकि मैं पोस्को जैसी कंपनी के पीछे था. नरेंद्र मोदी सरकार कभी भी आदिवासियों के खिलाफ नहीं जाएगी. एक भी आदिवासी को विस्थापित नहीं किया जा रहा है और पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है. हम अदालत के आदेश के अनुसार आगे बढ़ रहे हैं.”

मंत्री ने कहा, “इससे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. यह दोनों पक्षों के लिए जीत वाली स्थिति है और इस परियोजना से लाभ ही लाभ है.”

ओराम ने कहा कि उन्होंने एक आदिवासी मंत्री के रूप में व्यक्तिगत रूप से शोम्पेन, जरावा, अंडमानी और ग्रेट अंडमानी लोगों से मुलाकात की है और उनके साथ बातचीत की है.

उन्होंने कहा, “इस परियोजना के कारण किसी को कोई नुकसान नहीं होगा या कोई नुकसान नहीं होगा, मैं आपको आश्वासन देता हूं.”

उन्होंने आगे सदन को बताया, “किसी को भी विस्थापित नहीं किया जा रहा है. केवल 7.144 वर्ग किलोमीटर आदिवासी आरक्षित भूमि का उपयोग किया जाएगा और परियोजना के कारण किसी को भी विस्थापित नहीं किया जा रहा है. ग्राम सभा ने भी परियोजना को पारित कर दिया है इसलिए आपत्ति अनुचित है. यह मुद्दा हाई कोर्ट में लंबित है.”

ओराम ने कहा कि 11 अगस्त 2016 को सीमा प्रबंधन विभाग, गृह मंत्रालय और सात अन्य मंत्रालयों ने एक बैठक की और परियोजना शुरू करने का निर्णय लिया. क्योंकि यह दक्षिणी ओर एक बहुत ही रणनीतिक बिंदु पर है और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री मार्ग के निकट है.

विपक्षी सदस्यों की ओर इशारा करते हुए मंत्री ने यह भी दावा किया कि उनकी आपत्ति जानबूझकर की जा रही है.

उन्होंने कहा कि यह परियोजना राष्ट्र की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है. इसके कारण कोई आपदा नहीं होने वाली है.

जब साकेत गोखले ने पूछा कि क्या मंत्रालय ने किसी प्रमुख मानवविज्ञानी की आपत्तियों पर ध्यान दिया है तो उन्होंने कहा, “हम आश्वासन देते हैं कि हम मानवविज्ञानियों द्वारा उठाई गई किसी भी आपत्ति की जांच करेंगे. अगर कोई हो, लेकिन ऐसी कोई आपत्ति हमारे पास उपलब्ध नहीं है.”

वहीं इस मुद्दे को उठाते हुए जयराम रमेश ने दावा किया, “ग्रेट निकोबार मेगा इंफ्रा परियोजना एक बड़ी पर्यावरणीय और मानवीय आपदा है. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया है, क्योंकि दावा किया गया है कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है.”

उन्होंने सदन का ध्यान 21 जुलाई, 2023 को दिए गए सभापति के निर्णय की ओर आकर्षित किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि “इस सदन को एक प्रतिबंध के साथ दुनिया की हर चीज़ पर चर्चा करने का अधिकार है. यह प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 121 से संबंधित है. अनुच्छेद 121 क्या है – संसद में चर्चा पर लगाया गया एकमात्र प्रतिबंध सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के न्यायाधीश का आचरण है. यही एकमात्र प्रतिबंध है.”

रमेश ने कहा, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया है और मैं अनुरोध करता हूं कि इसका उत्तर बाद में दिया जाए. क्योंकि यह ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना पर्यावरणीय और मानवीय आपदा का कारण बन सकती है.”

बाद में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में रमेश ने राज्यसभा में दिए गए अपने जवाब को साझा करते हुए कहा, “आज, ग्रेट निकोबार मेगा इंफ्रा प्रोजेक्ट पर राज्यसभा में उठाए गए एक महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर इस आधार पर नहीं दिया गया कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है.”

क्या है ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट

निकोबार द्वीप के दक्षिण-पूर्वी तट पर गैलाथिया खाड़ी में 35,000 करोड़ रुपये का ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह बनाया जाना है. इसके अलावा द्वीप पर एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक बिजली संयंत्र और 160 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में एक ग्रीनफील्ड टाउनशिप की योजना भी है.

इसके लिए 130 वर्ग किलोमीटर लंबे प्राथमिक वन का डायवर्जन भी किया गया है. द्वीप का कुल क्षेत्रफल 900 वर्ग किलोमीटर से थोड़ा ज्यादा है. इसका लगभग 850 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र अंडमान और निकोबार आदिवासी जनजाति संरक्षण विनियमन, 1956 के तहत एक आदिवासी रिजर्व के रूप में नामित है.

पारिस्थितिक रूप से समृद्ध द्वीप को 1989 में बायोस्फीयर रिजर्व घोषित किया गया और 2013 में यूनेस्को के मैन एंड बायोस्फीयर प्रोग्राम में शामिल किया गया था.

72 हजार करोड़ रुपये की यह परियोजना 30 वर्षों में पूरी की जाएगी और इस दौरान तीन लाख से ज्यादा लोगों को द्वीप पर लाने की उम्मीद है.

जनसंख्या में यह बड़ी वृद्धि है. मोटे तौर पर देखें तो यह पूरे अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की वर्तमान जनसंख्या के बराबर है. जहां तक ग्रेट निकोबार का सवाल है, इस द्वीप की वर्तमान आबादी लगभग 8 हजार है, जिसमें 4 हजार प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी.

इस परियोजना में लगभग दस लाख पेड़ों की कटाई भी शामिल है. इससे प्राचीन और अनछुए वर्षावन को भारी क्षति होगी.

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