HomeIdentity & Lifeमेघालय : गारो समुदाय (Garo Community) के बदलते सामाजिक आर्थिक रिश्ते

मेघालय : गारो समुदाय (Garo Community) के बदलते सामाजिक आर्थिक रिश्ते

मेघालय में 27 फ़रवरी को विधान सभा चुनाव होगा. उत्तर-पूर्व भारत में बसा यह राज्य अपेक्षाकृत छोटा है और इस राज्य के चुनाव की चर्चा देश के मुख्यधारा के मीडिया में कम ही होती है. लेकिन मेघालय एक ऐसा राज्य है जो भारत की विविधता का बड़ा उदाहरण है. यहाँ पर खासी और गारो (Khasi and Garo) दो बड़े जनजातीय समुदाय (Tribal Communities) हैं. आईए आज यहां के गारो समुदाय की बनावट और धार्मिक सामाजिक व्यवस्था को थोड़ा समझने की कोशिश करते। हैं.

मेघालय में गारो (Garo) दूसरा सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है. जनसंख्या के हिसाब से खासी समुदाय (Khasi Community) पहले नंबर पर आता है. गारो समुदाय में से ज़्यादातर लोग ईसाई धर्म को अपना चुके हैं. 

लेकिन इस समुदाय के एक हिस्सा अभी भी परंपरागत धार्मिक आस्थाओं में विश्वास रखता है और इन्हें सॉन्गसरेक कहा जाता है. दरअसल 1765 में अंग्रेजों ने गारो पहाड़ियों पर क़ब्ज़ा पाने में कामयाबी पा ली थी.

इसके बाद यहाँ की जीवनशैली और सामाजिक विश्वासों और आस्थाओं में बदलाव की शुरुआत हो गई थी. देश आज़ाद होने के बाद साल 1952 में गारो हिल्स को गारो हिल्स ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (Garo Hills Autonomous District Council) का दर्जा दिया गया. 

इस समुदाय में आ रहे सामाजिक और आर्थिक बदलावों को बारीक नज़र से देखें तो कई बदलाव नोट किये जा सकते हैं. ये बदलाव मामूली नहीं हैं. लेकिन इसके साथ ही कई परंपराएँ अभी भी मज़बूत हैं.

मसलन ईसाई धर्म अपना चुके गारो आदिवासी या फिर सॉन्गसरेक दोनों ही तरह के लोगों का पुरखों और आत्माओं में अटूट विश्वास है.

आधुनिक समय में बदलते रिश्ते

गारो समुदाय धीरे धीरे मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज के क़रीब आया है. जैसे जैसे यह समुदाय बाहरी समुदायों के संपर्क में आया है इसमें आर्थिक संपन्नता भी आई है.

ख़ासतौर से कुछ शहरी क्षेत्रों में एक मज़बूत मध्यम वर्ग का उदय हुआ है. देश के अन्य इलाक़ों की तरह ही मध्यम वर्ग के उदय के साथ साथ आर्थिक ग़ैर बराबरी भी पैदा हुई है. 

यह ग़ैर बराबरी धीरे धीरे बढ़ रही है. हालाँकि इस सब के बावजूद अभी इस समाज में रिश्तों की अहमियत बची हुई है. इस समुदाय में अभी भी परस्पर सहयोग समाज का मुख्य आधार है. लेकिन आर्थिक और सामाजिक रिश्तों में बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं. 

मसलन ज़मीन के स्वामित्व के मामले में बड़े बदलाव देख जा रहे हैं. इस मातृ सत्तात्मक समाज में अब ज़मीन का लेन-देन हो रहा है और इस लेन-देन को समाज या परिवार के पुरूष तय कर रहे हैं. 

इस समुदाय में परंपरा के अनुसार ज़मीन का स्वामित्व महिलाओं का रहा है. लेकिन अब जब राज्य (सरकार) जब ज़मीन के स्वामित्व का पट्टा दे रहा है तो यह परिवार के पुरूषों के नाम पर आ रहा है. 

यह बात सच है कि अभी भी इस समुदाय में ज़मीन का बड़ा हिस्सा गाँव के स्वामित्व में है और ज़्यादातर परिवारों को इस ज़मीन पर खेती करने का हक़ हासिल है. लेकिन यह सच्चाई भी धीरे धीरे बदल रही है.

यहाँ पर झूम खेती अभी भी लोगों का मुख्य व्यवसाय है. लेकिन ज़मीन पर धीरे धीरे दबाव बढ़ रहा है. सामाजिक रिश्तों के साथ साथ ज़मीन के स्वामित्व का तरीक़ा भी बदल रहा है. 

एक समय में पूरी तरह से अपनी समाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था से चलने वाला यह समुदाय अब मोटेतौर पर न्याय सेवा (judiciary) से लेकर विकास योजनाओं तक सरकार के भरोसे है. 

इस नई सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था में गाँव के मुखिया काफ़ी पॉवरफुल हो गए हैं. इन मुखियाओं के पास ज़मीन ट्रांसफ़र और ज़मीन से जुड़े अन्य अधिकार अधिक आ गए हैं. इसलिए इस जनजातीय समाज में भी अब औरतें धीरे धीरे हाशिए पर आ गई हैं. 

गारो समाज की परंपरागत बनावट

ज़मीन का स्वामित्व और परिवार माँ के नाम से जुड़ा है. यहाँ पर वंश माँ के नाम से ही चलता है और परंपरागत तौर पर यह समाज मातृसत्तात्मक समाज ही रहा है. 

इस समुदाय में बच्चा माँ के कुल नाम को अपने उपनाम (Surname) के तौर पर इस्तेमाल करता है. सभी स्त्री और पुरूष ये मानते हैं कि उन सभी की उत्पत्ति एक ही महिला के गर्भ से हुई है. 

गारो समुदाय में पिता की संपत्ति बेटी को ही मिलती है. यह परंपरा गारो समुदाय के सॉन्गसरेक और ईसाई दोनों ही समूह निभाते हैं. इसके अलावा गारो समुदाय में पुरखों और प्रेतात्माओं में गहरा और अटूट विश्वास मिलता है. 

हालाँकि ईसाई धर्म प्रचार के बाद गारो समुदाय में धीरे धीरे धार्मिक आस्थाओं में बदलाव आ रहा है. लेकिन फिर भी कहा जा सकता है कि यह समुदाय अभी भी पुरखों और प्रेतात्माओं में विश्वास करता है. 

यह समुदाय मानता है कि प्रेतात्मा ही उनके जीवन का अच्छा या बुरा करती हैं. इसलिए अच्छी खेती और गांव और परिवार की सुख शांति के लिए पुरखों को शराब और मांस चढ़ाया जाता है.

अब समुदाय के कुछ पढ़े लिखे लोगों ने अपनी संस्कृति को बचाने के लिए वांगला (Wangala) त्यौहार बड़े स्तर पर मनाना शुरू किया है. यह एक तरह का सामुदायिक उत्सव है जो सितंबर महीने के अंत में या फिर अक्टूबर के शुरू में मनाया जाता है.

 

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