मध्यप्रदेश के सीधी ज़िले के कुसमी क्षेत्र में मानव तस्करी चिंता का विषय बना हुआ है. कुसमी आदिवासी बहुल क्षेत्र है.
कुसमी क्षेत्र में एक गिरोह मानव तस्करी का काम करता था. यह युवतियों को काम देने के बहाने या कई अलग-अलग बातों में उन्हें उलाझकर दूसरे राज्य में बेच देते थे.
इस गुट में शामिल सभी चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है.
इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक कुसमी क्षेत्र में रहने वाली एक युवती को 1 लाख रूपये में अगरा के सुगनापुर में बेच दिया गया था.
कुसमी क्षेत्र के पुलिस अधीक्षक डॉक्टर रविंद्र वर्मा को युवती के मानव तस्करी की जानकारी मिली. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, पुलिस ने सख्त कार्रवाई करने का फैसला किया था.
पुलिस अधीक्षक रविंद्र वर्मा ने पुलिस अधिकारी भूपेश सिंह के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया.
पुलिस की इस टीम ने मामले के बाद फरार आरोपियों की जांच करना शुरू किया. पुलिस के अनुसार आरोपी अलग अलग राज्यों में छिपे हुए थे.
इस मामले में शामिल दो आरोपी सुरेंद्र और धर्मराज को सूरत और छत्तीसगढ़ से पकड़ा गया है. इसके अलावा सीता देवी और राजवीर सिंह को अगरा से पकड़ा गया था.
पुलिस सभी आरोपियों के लोकेशन ट्रेस कर उन्हें पकड़ने में कामयाब रही.
इस मामले में 41 वर्षीय सुरेंद्र सिंह, 28 वर्षीय धर्मराज उर्फ दीपू, 43 वर्षीय सीता देवी उर्फ मुन्नीबाई और 47 वर्षीय राजवीर सिंह उर्फ बास शामिल थे.
मानव तस्करी की कानून में क्या सजा है?
मानव तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) बिल, 2018 के तहत मानव तस्करी मामले में पाए गए दोषियों के लिए 7 से 10 वर्ष का कारावास सहित जुर्माना की सज़ा है.
एक से अधिक व्यक्तियों की तस्करी करने वाले लिए 10 साल का कारावास से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माना देने की सज़ा है.
इसके अलावा अगर नाबालिग लड़की की तस्करी की जाए तो 10 वर्ष की सज़ा और अगर एक से ज्यादा नाबालिग लड़कियों की तस्करी हो तो आजीवन कारावास भी हो सकता है.
आदिवासी समाज में मानव तस्करी एक अहम मुद्दा है. इन इलाकों में महिलाएं और बच्चे मानव तस्करी के सबसे ज़्यादा शिकार होते हैं.
आदिवासी इलाकों में मानव तस्करी में शामिल लोग अक्सर लोगों की आर्थिक तंगी का फ़ायदा उठाते हैं.