झारखंड में जैन समुदाय के तीर्थस्थल पारसनाथ पहाड़ पर केंद्र सरकार ने पर्यटन गतिविधियों पर फ़िलहाल रोक लगा दी है. जैन समुदाय ने यह आशंका जताई थी कि अगर यहाँ पर पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा तो लोग इस इलाक़े में मांस-मछली खा सकते हैं.
दूसरी तरफ़ एक आदिवासी संगठन आदिवासी सेंगेल अभियान ने पारसनाथ पहाड़ पर दावा ठोका है. इस संगठन ने कहा है कि पारसनाथ पहाड़ दरअसल आदिवासियों के मरांग बुरू यानि सर्वोच्च देवता का स्थान है.
इस संगठन ने कहा है कि पारसनाथ धाम को आदिवासियों के हवाले किया जाना चाहिए. एक बयान में आदिवासी सेंगेल अभियान के नेता और पूर्व लोक सभा सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो फिर इस माँग के समर्थन में एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा.
सालखन मुर्मू ने माँग की है कि इस मसले को सुलझाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार को सामने आना होगा. उन्होंने कहा कि इस मामले में दबाव बनाने के लिए उनका संगठन 17 जनवरी को 5 राज्यों के आदिवासी इलाक़ों में धरना आयोजित करेगा.
उधर अंतरराष्ट्रीय संथाल काउंसिल नाम के संगठन के अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने कहा है कि 1956 के गजट और दूसरे दस्तावेज़ों में यह स्पष्ट है कि आज जिसे पारसनाथ धाम के नाम से जाना जाता है वह आदिवासियों के देवता का स्थान है.
संथाल समुदाय भारत के सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक है. झारखंड के अलावा ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार में भी इस समुदाय के लोग बड़ी तादाद में रहते हैं.
आदिवासी नेताओें का दावा है कि ब्रिटिश भारत के समय के दस्तावेज़ भी बताते हैं कि पारसनाथ पहाड़ आदिवासी देवता का स्थान है. बैशाख में पूर्णिमा के दिन यहाँ पर आदिवासी तीन दिन के लिए जंगल में शिकार करने जाते थे.
उधर जैन समुदाय के लिए भी पारसनाथ आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता है. इस समुदाय के 23वें तीर्थांकर पारसनाथ के नाम पर इस पहाड़ का नाम रखा गया है.
ऐसा बताया जाता है कि इसी स्थान पर जैन समुदाय के 20 तीर्थाकंरों ने मोक्ष प्राप्त किया था. पारसनाथ पहाड़ी पर पर्यटन गतिविधियों को रोकने का फ़ैसला केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव और जैन समुदाय के प्रतिनिधियों के बीच बैठक के बाद लिया गया है.
2019 में केंद्र सरकार ने इस इलाक़े को ईको सेंसटिव ज़ोन घोषित किया था. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को यहाँ पर पर्यटन गतिविधियों की अनुमति भी दे दी थी.
इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती हैं कि जैन समुदाय के लोगों के लिए पारसनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है. लेकिन झारखंड की राजधानी राँची से क़रीब 140 किलोमीटर दूर गिरडीह का यह इलाक़ा आदिवासी बहुल है.
आदिवासी समुदायों की अपनी धार्मिक आस्थाएँ और सामाजिक व्यवस्थाएँ हैं. जैन समुदाय की माँग पर केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि इस इलाक़े में शराब और मांस की बिक्री को नियंत्रित किया जाए. इसके अलावा भी और कई शर्तें रखी गई हैं.
लेकिन आदिवासी समुदाय की दृष्टि से देखेंगे तो इन पाबंदियों को ग़ैर ज़रूरी और उनकी परंपरा पर हमले की तरह देखी जाएँगी. क्योंकि आदिवासी परंपरा में अपने पुरखों और देवताओं को मांस और शराब चढ़ाना अनिवार्य है.
भारत में जैन समुदाय संपन्न और प्रभावशाली समुदाय है. इस पूरे मामले में जैन समुदाय का प्रभाव नज़र भी आ रहा है. लेकिन सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि जैन समुदाय की धार्मिक भावनाओं के साथ साथ आदिवासी भावनाओं का भी ध्यान रखा जाए.
इस मामले में एक तरफ़ा फ़ैसला आदिवासियों को नाराज़ कर सकता है और टकराव की स्थिति बन सकती है.