HomeAdivasi Dailyद्रोपदी मुर्मू पर की गई टिप्पणी ग़ैर ज़िम्मेदाराना नहीं आदिवासी विरोधी मानसिकता...

द्रोपदी मुर्मू पर की गई टिप्पणी ग़ैर ज़िम्मेदाराना नहीं आदिवासी विरोधी मानसिकता है

तृणमूल कांग्रेस को इस मामले में सफ़ाई दे कर पल्ला झाड़ने की बजाए मंत्री से इस्तीफ़ा लेना चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो यही माना जाएगा तृणमूल कांग्रेस ने अगर मंत्री के बयान से दूरी बनाई है तो यह उसकी राजनीतिक मजबूरी है, सैद्धांतिक स्टैंड नहीं.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के ख़िलाफ़ टिप्पणी करने वाले तृणमूल कांग्रेस के नेता और राज्य में मंत्री अखिल गिरी ने माफ़ी माँग ली है. इसके बावजूद उनकी टिप्पणी से उपजा विवाद थम नहीं रहा है.

बल्कि यह कह सकते हैं कि बीजेपी इस विवाद को थमने नहीं दे रही है.  क्योंकि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक दृष्टि से आदिवासी आबादी पर्याप्त प्रभाव रखती है. इसलिए बीजेपी यह जानती है कि यह मुद्दा तृणमूल कांग्रेस को घेरने के लिए इससे अच्छा मुद्दा उन्हें मिल नहीं सकता है.

वामपंथी सरकार को राज्य से हटाने के लिए ममता बनर्जी एक बड़ा माहौल तैयार कर पाई थीं तो उसमें आदिवासी आबादी का बड़ा सहयोग उन्हें मिला था.

उसके बाद से तृणमूल कांग्रेस ने आदिवासी आबादी को अपने साथ जोड़े रखने में कामयाबी पाई है. लेकिन राष्ट्रपति द्रोपदी के ख़िलाफ़ जिस तरह की टिप्पणी की गई है, वह पार्टी में आदिवासी के भरोसे को डिगा सकता है. 

द्रोपदी मुर्मू देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले पहले आदिवासी नेता हैं.  पूर्वी मिदनापुर के नेता और टीएमसी मंत्री अखिल गिरि ने उनके नयन नक़्श पर टिप्पणी की थी.

माना जाता है कि आदिवासियों की बंगाल की संख्या का 7-8% हिस्सा है. जंगलमहल क्षेत्र के चार संसदीय क्षेत्रों बांकुरा, पुरुलिया, झारग्राम और पश्चिम मिदनापुर जिले इसमें शामिल हैं.

इसके अलावा आठ निर्वाचन क्षेत्र उत्तर बंगाल के जिलों में फैले हुए हैं, जैसे दार्जिलिंग, कलिम्पोंग, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर और मालदा, इन इलाक़ों में चुनावी दृष्टि से देखें तो एक चौथाई मतदाता आदिवासी है.

2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 18 सीटें जीतकर टीएमसी को चौंका दिया था. पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाक़ों में बीजेपी को अच्छा समर्थन मिला था. इसलिए बीजेपी ने जंगलमहल की सभी सीटों और उत्तर बंगाल की छह सीटों पर जीत हासिल की थी।

लेकिन टीएमसी ने 2021 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी इलाक़ों में मज़बूती से चुनाव लड़ा और शानदार जीत हासिल की थी. 

राष्ट्रपति द्रोपदी मूर्मु को जब देश के सर्वोच्च पद के लिए बीजेपी ने नामित किया था तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बचाव की मुद्रा में आ गईं थी.

राष्ट्रीय स्तर विपक्ष का नेतृत्व करने की तमन्ना रखने वाली ममता बनर्जी ने यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी.

लेकिन जब द्रोपदी मूर्मु का नाम सामने आया तो उन्हें कहना पड़ा कि अगर बीजेपी ने उनसे बात की होती तो वे द्रोपदी मुर्मू का समर्थन करतीं.

उनका यह बयान बताता है कि आदिवासी मतदाता को तृममूल कांग्रेस काफ़ी गंभीरता से लेता है. बीजेपी ने उनकी यह कमज़ोरी पहचान भी ली है.

बीजेपी ने पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी जनसंख्या में अपना प्रभाव बढ़ाने की रणनीति बनाई है. इसका उद्देश्य 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए एक बड़े वर्ग का समर्थन हासिल करना है.

इसके अलावा संघ परिवार के लिए आदिवासी आबादी में पहुँच और प्रभाव सैद्धांतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आदिवासी आबादी में बीजेपी की पहुँच को बढ़ाने के लिए ख़ुद प्रचार का नेतृत्व कर रहे हैं. जिस दिन गिरी ने यह बयान दिया और विवाद शुरू हुआ, टीएमसी ने गिरि की टिप्पणी से खुद को दूर कर लिया था.

पार्टी की तरफ़ से सफ़ाई देते हुए कहा गया कि गिरि ने जो कहा वह “गैर-जिम्मेदार” था. पार्टी के बयान में कहा गया कि गिरी का बयान पार्टी के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है. 

टीएमसी के प्रवक्ता साकेत गोखले ने ट्वीट किया, “हमें भारत के राष्ट्रपति पर बेहद गर्व है और हम उन्हें और उनके पद को सर्वोच्च सम्मान देते हैं.”

रविवार की सुबह, टीएमसी आदिवासी नेता और मंत्री ज्योत्सना मंडी ने कहा: “गिरी ने एक महिला राष्ट्रपति के बारे में जो कहा, मैं उसका समर्थन नहीं कर सकती.” पश्चिम बंगाल में एक के बाद एक तृणमूल कांग्रेस के नेताओं की तरफ़ से गिरी के बयान पर सफ़ाई दी जा रही है.

तृणमूल कांग्रेस के नेता ने अपनी टिप्पणी के लिए माफ़ी माँग ली है, इसके बावजूद बीजेपी अगर इस मुद्दे को छोड़ नहीं रही है तो उसका कारण निश्चित ही राजनीतिक लाभ उठाना है. राजनीति में बेशक इस जायज़ नहीं कहा जाता है लेकिन करते सभी हैं. 

इसलिए तृणमूल कांग्रेस को भी और देश के बाक़ी राजनीतिक दलों को भी यह तो बताना ही पड़ेगा कि आख़िर द्रोपदी मुर्मू में ही उन्हें एक कठपुतली राष्ट्रपति नज़र क्यों आती हैं.

क्या इससे पहले के राष्ट्रपति बहुत प्रभावी रहे थे. द्रोपदी मुर्मू को बीजेपी ने किस मंशा से राष्ट्रपति बनाया है यह बीजेपी जाने, लेकिन क्या यह सच नहीं है कि द्रोपदी मुर्मू पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं.

जब उनके बारे में बेहूदा टिप्पणी की जाती हैं तो उसे ग़ैर ज़िम्मेदाराना कह कर टाल देना भी एक तरह की ग़ैरज़िम्मेदारी का काम है. बल्कि यह आदिवासी विरोधी मानसिकता को स्वीकार करना है.

तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में बिरसा मुंडा की जयंती को सामान्य अवकाश घोषित करती है. लेकिन उसके मंत्री आदिवासी महिला राष्ट्रपति पर अभद्र टिप्पणी करते हैं, दोनों साथ साथ कैसे चल सकता है. 

तृणमूल कांग्रेस को इस मामले में सफ़ाई दे कर पल्ला झाड़ने की बजाए मंत्री से इस्तीफ़ा लेना चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो यही माना जाएगा तृणमूल कांग्रेस ने अगर मंत्री के बयान से दूरी बनाई है तो यह उसकी राजनीतिक मजबूरी है, सैद्धांतिक स्टैंड नहीं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments