HomeAdivasi Daily'जनजातीय गौरव दिवस' कितनी हक़ीक़त, कितना जुमला

‘जनजातीय गौरव दिवस’ कितनी हक़ीक़त, कितना जुमला

भारत सरकार आज जनजातीय गौरव दिवस मना रही है. इस सिलसिले में कई आयोजन किये जा रहे हैं. इनमें से दो बड़े आयोजन झारखंड और मध्य प्रदेश में हो रहे हैं. इन दोनों ही आयोजनों में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू मुख्य अतिथि होंगी. झारखंड में यह आयोजन बिरसा मुंडा के जन्म स्थान उलिहातु में किया जा रहा है. 

देश के आदिवासियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, धरोहर और उनके द्वारा राष्ट्र के निर्माण में दिए गए योगदान को याद करने के लिए पिछले साल केंद्र सरकार ने बिरसा मुंडा की जन्म जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था. लेकिन ऐसा लगता है कि जनजातीय गौरव दिवस आम लोगों को उत्सव नहीं बन पाया है.

यह अवसर भी सरकारी कार्यक्रमों की सूची में एक और इवेंट के तौर पर शामिल हो गया है. MBB ने बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस घोषित करने के फ़ैसले पर अलग अलग राज्यों में आदिवासी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात की है. हम यह समझना चाहते थे कि सरकार के इस फ़ैसले से वे कितने प्रभावित हैं.

इसके अलावा हम यह भी समझना चाहते हैं कि क्या सरकार के इस फ़ैसले के बाद आदिवासी समुदायों को मुख्यधारा में शामिल करना आसान होगा. इसके साथ ही यह भी सवाल हमारे मन में था कि क्या आदिवासियों के मुद्दे अब ज़्यादा प्रभावी तरीक़े से चर्चा में आएँगे.

 प्रोफ़ेसर करमा उराँव – आदिवासी नेता

झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा में आदिवासी अलग धर्म कोड ‘सरना’ की माँग कर रहे हैं. इस आंदोलन के प्रमुख नेताओं में प्रोफ़ेसर करमा उराँव एक हैं. इस आंदोलन को सैद्धांतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्रदान करने में उनका योगदान अहम है. जब हमने उनसे पूछा कि जनजातीय गौरव दिवस किस हद तक एक आदिवासी उत्सव बन सका है, तो उनका कहना था, “जनजातीय गौरव दिवस सरकार मनाती है. यह आदिवासियों का उत्सव नहीं बन पाया है. मुझे सरकार के इस कदम में कुछ ख़ास नज़र नहीं आता है. यह एक और सरकारी आयोजन है.”

करमा उराँव (माइक पर बोलते हुए)

प्रोफ़ेसर करमा उराँव कहते हैं कि केन्द्र की बीजेपी सरकार इस तरह की घोषणाओं से आदिवासियों का तुष्टिकरण करना चाहती है. वे बीजेपी सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहते हैं, “बीजेपी हमारी संस्कृति, परंपरा, पहचान और जीविका के साधन को ध्वस्त कर रही है. वह हम पर ज़बरदस्ती हिन्दू पहचान थोप रही है.”

MBB से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हम कल जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा से मिले थे. हमने उन्हें बताया कि सरकार आदिवासी परंपरा और धार्मिक आस्थाओं को मानने को तैयार नहीं है. बल्कि सरकार सभी आदिवासियों को हिन्दू घोषित करने के एजेंडे पर काम कर रही है.”

उन्होंने कहा, “संघ परिवार प्रतीकात्मक और भावनात्मक मुद्दे ही उठाता है. ये लोग आदिवासी समुदायों के विकास के लिए कोई काम नहीं करते हैं. यह ख़तरनाक है. दुनिया के कई देशों में आदिवासी या मूल निवासियों की संस्कृति को संरक्षित करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. लेकिन हमारे देश में उल्टा हो रहा है. यहाँ आदिवासी संस्कृति को ख़त्म किया जा रहा है.”

प्रोफ़ेसर करमा उराँव ने जनजातीय गौरव दिवस और आदिवासियों पर बीजेपी की तरफ़ से की जा रही चर्चा पर कहा, “देश भर में आदिवासी बीजेपी की सरकार के ख़िलाफ़ खड़े हो रहे हैं. बीजेपी इस बात को समझ गई है इसलिए इस तरह के मुद्दे उठाए जा रहे हैं.”

सलखान मुर्मु – पूर्व सांसद

सलखान मुर्मू एक ऐसे आदिवासी नेता हैं जो ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाक़ों में प्रभाव रखते हैं. उनकी नज़र में जनजातीय गौरव दिवस एक नरेन्द्र मोदी सरकार का एक सकारात्मक कदम है. MBB से बात करते हुए कहा, “ यह निश्चित ही एक सकारात्मक कदम है. इससे पहले सरकारें बिरसा मुंडा की जयंती नहीं मनाती थीं.”

उन्होंने कहा कि वर्तमान केंद्र सरकार ने कम से कम बिरसा मुंडा की जयंती को औपचारिक रूप से जनजातीय गौरव दिवस घोषित किया है. इसका स्वागत होना चाहिए. इसके साथ ही नरेन्द्र मोदी की सरकार ने आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष को सम्मान दिया है. सरकार ने उनकी याद में डाक टिकट जारी की हैं.

सलखान मुर्मू, पूर्व सांसद

सलखान मुर्मू ने MBB से हुई लंबी बातचीत में कहा, “ हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजस्थान के मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया है. यह आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को बड़ा सम्मान मिला है.” 

सरकार के इस कदम की तारीफ़ करने के साथ साथ सलखान मुर्मू सरकार को चेताना भी चाहते हैं. वे कहते हैं, “हम आदिवासी पहचान को फिर से स्थापित करने के लिए अपना संघर्ष जारी रखेंगे. इसके अलावा हमारे संसाधनों और जीविका के लिए हम लड़ते रहेंगे.”

उनका कहना था, “बीजेपी सभी आदिवासियों को हिन्दू बनाने के ऐजेंड पर काम कर रही हो सकती है. लेकिन आदिवासी अपनी पहचान नहीं छोड़ेगा. हम सरना धर्म की माँग के लिए संघर्ष बंद नहीं करेंगे.”

उन्होंने MBB से हुई बातचीत के समापन पर कहा, “अलग धर्म की पहचान के लिए सरकार के साथ हमारा संघर्ष चलता रहेगा, लेकिन जब एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाया जाता है, तो मैं कहूँगा कि इससे आदिवासियों का आत्मविश्वास बढ़ता है.”

हीरालाल अलावा, विधायक, मध्य प्रदेश

हीरालाल अलावा जयस (JAYS) के संस्थापक और मध्यप्रदेश की विधान सभा के सदस्य हैं.  जनजातीय गौरव दिवस मनाए जाने की शुरुआत को वे स्वागत करते हैं. हीरालाल अलावा कहते हैं, “बिरसा मुंडा की जयंती तो देश भर में बरसों से मनाई जा रही है, आदिवासी समुदाय तो बिरसा मुंडा को भगवान मानते हैं, उनकी पूजा करते हैं. अब अगर सरकार ने इसे औपचारिक रूप से कोई नाम दे दिया है तो ठीक है.”

हीरालाल अलावा, विधायक

MBB से बातचीत में उन्होंने आगे कहा, “ हम यह बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि बीजेपी सरकार ने यह शुरुआत आदिवासी मतदाताओं को ध्यान में रख कर की है. लेकिन बावजूद इसके हम इसे एक अच्छी शुरुआत कह सकते हैं.”

उनके अनुसार सरकार के आयोजन से आदिवासी समुदायों की स्थिति में कोई फ़र्क़ पड़ेगा, ऐसा तो नहीं होगा. लेकिन फिर यह ज़रूर है कि आदिवासी समुदायों को यह ज़रूर लगता है कि स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को देश में याद किया जा रहा है.

राजेश वसावा, कांग्रेस नेता, गुजरात

राजेश वसावा गुजरात में एक जाने माने आदिवासी नौजवान नेता हैं. वे लंबे समय तक भारतीय ट्राइबल पार्टी के नेता और विधायक छोटु भाई वसावा के निकट सहयोगी रहे हैं. फ़िलहाल राजेश वसावा कांग्रेस पार्टी में हैं. उन्होंने जनजातीय गौरव दिवस के आयोजनों पर MBB से बात करते हुए कहा, “गुजरात में चुनाव है, उसके बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होगा. यहाँ आदिवासी चुनाव को प्रभावित करने की ताक़त रखता है, इसलिए बीजेपी आदिवासी के नाम स्टंट कर रही है.”

राजेश वसावा, आदिवासी नेता

राज वसावा का कहना है, “अगर सरकार सचमुच में बिरसा मुंडा को सम्मान देना चाहती है तो फिर बिरसा के संघर्ष का सम्मान करे. बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों से संघर्ष किया था जिससे आदिवासी का जल, जंगल और ज़मीन पर नियंत्रण रहे. लेकिन गुजरात हो या मध्य प्रदेश बीजेपी सरकार यहाँ पर ग्राम सभा के अधिकार का उल्लंघन करती है.”

वो आगे कहते हैं, “आप गुजरात में ही देख लें, यहाँ पर आदिवासी की ज़मीन सबसे अधिक हड़पी गई है. यह सरकार पेसा और वन अधिकार जैसे क़ानूनों को कमज़ोर करने पर तुली है.” 

अपनी बात को समाप्त करते हुए वे कहते हैं, “प्रधानमंत्री नेरन्द्र मोदी जैसे काला धन वापस लाने का वादा करके मुकर गए, आदिवासी को सम्मान देने की बातें भी जुमला भर हैं.” 

बेला भाटिया, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता

बेला भाटिया छत्तीसगढ़ में जानीमानी वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. जनजातीय गौरव दिवस के आयोजनों के बारे में वह कहती हैं, “जनजातीय गौरव दिवस के आयोजन में कोई बुराई नहीं है. लेकिन इस तरह के आयोजन से यह सच्चाई तो नहीं बदल सकती कि आदिवासियों को उनके क़ानून अधिकार हासिल नहीं होते हैं.”

बेला भाटिया, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता

वो आगे कहती हैं, “सरकार ऐसी नीतियाँ ला रही हैं जिससे आदिवासियों को मिले संवैधानिक और क़ानूनी अधिकारों में कटौती होती है. मसलन वन अधिकार क़ानून को लागू करने के लिए सरकार गंभीरता से काम करने की बजाए, आदिवासी की जीविका के साधन लूट रही है.”

बेला भाटिया कहती हैं, “यह सरकार आदिवासी हितैषी होने का ढोंग कर रही है. यह दरअसल ढोंगी सरकार ही है, अगर सरकार गंभीर है तो फिर आदिवासियों के अधिकारों से जुड़े क़ानूनों को लागू करे.”

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