झारखंड के गोड्डा ज़िले की पुलिस ने साहिबगंज के भोगनाडीह में 30 जून को हूल दिवस के दिन हुई हिंसा के मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया है.
ये दोनों न सिर्फ हथियारों के साथ पकड़े गए बल्कि पुलिस के मुताबिक यही घटना के मुख्य साजिशकर्ता भी हैं.
इस खुलासे ने हूल दिवस की घटना को एक नया मोड़ दे दिया है.
गोड्डा के पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) मुकेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि गिरफ्तार आरोपियों सुधीर कुमार और गणेश मंडल के पास से तीन देसी कट्टे और गोलियां बरामद की गई हैं.
पुलिस अधीक्षक का कहना है कि ये दोनों आरोपी साहिबगंज के भोगनाडीह में हिंसा भड़काने के इरादे से पहले से सक्रिय थे. पुलिस ने इन्हें गुप्त सूचना के आधार पर गोड्डा नगर थाना क्षेत्र से गिरफ्तार किया.
एसपी के अनुसार, दोनों आरोपी पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के करीबी रहे हैं और उनका सोशल मीडिया संभालने का भी काम करते थे.
एसपी ने बताया कि ये जमशेदपुर के निवासी हैं और बीते कुछ हफ्तों से बरहेट, बोरियो और साहिबगंज क्षेत्र में घूम-घूम कर माहौल भड़काने की कोशिश कर रहे थे. पुलिस अब इनके अन्य साथियों की भी तलाश कर रही है.
30 जून को क्या हुआ था?
हूल दिवस पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधानसभा क्षेत्र बरहेट के भोगनाडीह गांव में स्थित सिद्धो-कान्हू पार्क में हर साल की तरह पूजा-अर्चना और श्रद्धांजलि का आयोजन होना था.
इस बार स्थानीय ग्रामीणों और शहीदों के वंशजों ने एक अलग मंच बनाकर कार्यक्रम की तैयारी की थी. लेकिन प्रशासन ने इस मंच को तोड़ दिया. इसके विरोध में जब लोग इकट्ठा हुए तो हालात बेकाबू हो गए.
पुलिस का कहना है कि प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों ने उन पर तीर-कमान से हमला बोल दिया, जिसके बाद जवाबी कार्यवाई में पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लिया. इस घटना में कई पुलिसकर्मी और ग्रामीण घायल हो गए.
राजनीतिक घमासान
इस घटना को लेकर भाजपा ने झारखंड सरकार पर जमकर निशाना साधा है.
झारखंड बीजेपी अध्यक्ष और नेता विपक्ष बाबूलाल मरांडी ने इस घटना की तीखी निंदा करते हुए कहा कि हुल दिवस जैसे पवित्र दिन पर आदिवासियों पर लाठीचार्ज और आंसू गैस छोड़ना बर्बरता है. ये वही ज़मीन है जहां से आदिवासी संघर्ष की शुरुआत हुई थी और आज भी सिद्धो-कान्हू के वंशज अन्याय के खिलाफ सड़क पर उतरने को मजबूर हैं.
मरांडी ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार आदिवासियों को उनके इतिहास और अधिकारों से दूर रखना चाहती है ताकि वे संगठित न हो सकें.
उन्होंने यह भी कहा कि यह घटना हेमंत सरकार के पतन की वजह बनेगी.
भाजपा के जिलाध्यक्ष गौरवकांत ने कहा कि हूल दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि आदिवासी समाज के संघर्ष, स्वाभिमान और बलिदान का प्रतीक है.
उन्होंने कहा कि ऐसे ऐतिहासिक दिवस पर आदिवासी समुदाय के लोगों पर लाठी और आंसू गैस छोड़कर हेमंत सरकार ने यह सिद्ध कर दिया कि वह आदिवासी हितैषी होने का केवल दिखावा करती है जबकि व्यवहार में उनकी आवाज दबाने में जुटी हुई है.
भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के जिलाध्यक्ष रमेश मुर्मू ने कहा कि हूल दिवस के अवसर पर आदिवासी समाज के ऊपर इस तरह की बर्बरता पूर्ण कार्रवाई कर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार ने यह साबित कर दिया कि उसे आदिवासियों के इतिहास और उनकी भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं है.
उन्होंने चेतावनी दी कि भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की ओर से इस अन्याय के खिलाफ हर गांव और हर पंचायत में आवाज बुलंद किया जायेगा.
इस घटना के विरोध में मंगलवार यानी 1 जुलाई को भाजपा ने राज्यभर में प्रदर्शन और पुतला दहन किया.
रांची के अल्बर्ट एक्का चौक पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री का पुतला फूंका.
कार्यकर्ताओं ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत की याद दिलाने वाली ये घटना बताती है कि हेमंत सरकार आदिवासी समाज के इतिहास और सम्मान को कुचलना चाहती है.
गिरफ्तार किए गए दोनों लोगों के बारे में पुलिस का दावा है कि वे पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के करीबी रह चुके हैं और उनका सोशल मीडिया भी संभालते थे.
ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि क्या यह सिर्फ एक क़ानूनी कार्रवाई है या इसके पीछे कोई राजनीतिक रणनीति भी है?
चंपई सोरेन पहले सत्तारूढ़ दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता थे, लेकिन अभी वे भारतीय जनता पार्टी में हैं. इसलिए पुलिस के इन बयानों को लेकर कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं.
फ़िलहाल पुलिस की जांच जारी है लेकिन इन आरोपों की टाइमिंग ने सत्ताधारी दल की छवि को लेकर नए सवाल ज़रूर खड़े कर दिए हैं.