जब पूरा देश झुलसा देने वाली गर्मी से जूँझ रहा है और सिर्फ ऐसी- कूलर में ही राहत के पल बिताना जानता है ऐसे में ओडिशा के कालाहांड़ी जिले की पहाड़ी चोटियों और घाटियों में रहने वाली कुटिया कोंध जनजाती ने इस तपती लू और गर्मी से बचने के लिए पारंपरिक उपायों का सहारा लिया है.
ओडिशा में मई से ही भीषण गर्मी पड़ रही है और कुछ शहरों में तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है. ओडिशा का कालाहांडी जिला बेहद गर्म मौसम के लिए काफी मशहूर है.
ऐसे में ओडिशा के माँ मणिकेश्वरी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम कालाहांड़ी जिले के लांझीगढ़ इलाके में पहुंची और ये जानने की कोशिश की कि इस इलाके में गर्मी के कितना असर पड़ रहा है. इस टीम ने पता लगाया कि यहां रहने वाली कुटिया कोंध जनजाती गर्मी और लू से बचाव के लिए क्या तरीके अपनाती है.
शोधकर्ताओं ने पाया कि ये आदिवासी सदियों पुराने पारंपरिक तरीकों से खुद को इस भीषण गर्मी से बचाने के लिए अपने घरों का तापमान नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं.
इन उपायों में मिट्टी और ताड़ के पत्तों से घर बनाना शामिल है. ठंडक के लिए दीवारों और फर्श पर मिट्टी और गोबर का इस्तेमाल किया जाता है और मज़बूती के लिए नारियल, ताड़ के पत्ते, धान के भूसे आदि का इस्तेमाल किया जाता है. जिससे घरों के अंदर गर्मी को कुछ हद तक कम किया जा सके.
यहां के कुछ आदिवासी परिवारों ने यह भी बताया कि चिलचिलाती गर्मी से निपटना अब उनके लिए कठिन हो गया है. क्योंकि उनके घर, जो पहले मिट्टी और धान के भूसे से बनाए जाते थे वे उन घरों की तुलना में ठंडे रहते थे जो पक्के घर सरकारी योजनाओं के तहत उन्हें दिए जा रहे हैं.
इन आदिवासियों का अधिकतर समय जंगल में केंदू और सियाल के पत्ते, साल के बीज, महुआ के फूल और इमली इक्ट्ठा करने में बीतता है.
अपने शरीर को ठंडा रखने के लिए ये आदिवासी बालों और पैरों में अरंडी का तेल भी लगाते है.
इस अध्ययन में कहा गया है बाजरा इन जनजातियों की प्रमुख फसल है. यही उनका मुख्य भोजन भी है.
इसके अलावा ये आदिवासी सभी फसलें जैसे रागी, मक्का, कुसला, चावल, कंडुल, काटिंग, गुरजी उगाते हैं
लेकिन रागी (मडुआ) को रोज़ के भोजन में शामिल करते हैं. रागी को प्राकृतिक रूप से ठंडा माना जाता है जो गर्मी और ऐसिडिटी को कम करता है और ऊर्जा देता है.

गर्मियों में वे कुशलभात (एक स्थानीय अनाज) और पखाल (पानी का चावल) खाते हैं जिससे उन्हें अत्यधिक गर्मी से लड़ने में मदद मिलती है. वे अक्सर पत्तेदार सब्जियाँ जैसे गंधरी और बोरदा साग भी खाते हैं. साथ ही वे खुद को ठंडा रखने के लिए ताड़ का रस भी पीते हैं.
इस शोध से पता चलता है कि कुटिया-कोंध अपने पर्यावरण के प्रति सजग है और पर्यावरण का ध्यान रखते हुए भी गर्मी से लड़ने में सक्षम है.