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अरुणाचल प्रदेश के आदिवासी इस विशाल बांध परियोजना का विरोध क्यों कर रहे हैं?

स्थानीय लोग नवंबर 2024 से इस परियोजना के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं और सर्वेक्षण के प्रयासों को लगातार रोकते आ रहे हैं. लेकिन हाल ही केंद्र सरकार ने विरोध को काबू में करने और सर्वे कार्य को पूरा कराने के लिए अर्धसैनिक बलों की तैनाती की, जिससे नया विरोध भड़क गया.

पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में 23 मई से तनाव का माहौल है. जब तीन जिलों – सियांग, अपर सियांग और पश्चिम सियांग के सैकड़ों लोगों ने सड़कों पर उतरकर सियांग नदी पर प्रस्तावित सियांग अपर मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट (SUMP) के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया.

सियांग क्षेत्र में प्रस्तावित विशाल बांध के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन के प्रति कम से कम तीन अधिकार समूहों ने अपना समर्थन व्यक्त किया है.

इन संगठनों में – मणिपुर के सेंटर फॉर रिसर्च एंड एडवोकेसी, सिक्किम के अफेक्टेड सिटिज़न्स ऑफ तीस्ता और त्रिपुरा के बोरोक पीपुल्स ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन ने भी वकील-कार्यकर्ता ईबो मिली पर मामला दर्ज करने के लिए अरुणाचल प्रदेश सरकार की निंदा की है.

सियांग जिले के डिप्टी कमिशनर पी.के.थुंगन की शिकायत के बाद उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने सर्वेक्षण और प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट के लिए परियोजना स्थल पर सुरक्षा बलों का विरोध करने के लिए आदि समुदाय के ग्रामीणों को उकसाया था

विस्थापन और पारिस्थितिकीय आपदा के भय के अलावा ग्रामीण यानि आदि जनजाति के लोग बांध के खिलाफ हैं क्योंकि वे नदी को ‘अने’ यानि माँ के रूप में पूजते हैं.

बांध विरोधी प्रदर्शनों का अधिकार समूहों ने किया समर्थन

तीनों अधिकार समूहों ने कहा, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सरकार अरुणाचल प्रदेश के आदि लोगों की स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति के बिना SUMP के लिए सर्वेक्षण कर रही है. अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा 6 दिसंबर, 2024 को जारी अधिसूचना में सियांग बांध के प्री-फिजिबिलिटी स्टडी और उसके बाद की तैनाती की सुविधा के लिए सियांग जिले में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को तैनात करने की बात कही गई है, जो मूल निवासी लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है.”

संगठनों ने कहा, “प्रभावित आदि लोगों द्वारा विरोध और बातचीत के आह्वान के बावजूद मई 2025 में सुरक्षा बलों की तैनाती और बांध स्थल का सैन्यीकरण लोकतंत्र की सभी झलकियों को कमजोर करता है. आदि जनजाति SUMP के कारण उनकी भूमि, पारिस्थितिकी, जंगल, आजीविका, संस्कृति, पहचान, अनैच्छिक विस्थापन, बढ़ती आपदाओं और गैर-मूल निवासी आबादी के आगमन, डाउनस्ट्रीम प्रभावों और उनके भविष्य के लिए अस्तित्व के ख़तरों पर संभावित प्रभावों के बारे में चिंतित है.”

उन्होंने कहा कि एसयूएमपी के कारण निचले इलाकों में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा. जैसे असम में व्यापक बाढ़, इसके अलावा आदि लोगों और उनकी भूमि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

तीनों संगठनों ने केंद्र से आग्रह किया कि वह एसयूएमपी से प्रभावित होने वाले आदि लोगों के साथ सार्थक बातचीत करे और ईबो मिली के खिलाफ आरोप वापस ले.

दरअसल, इस 11,000 मेगावाट जलविद्युत परियोजना के लिए प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट (PFR) और सर्वेक्षण के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) को तैनात किया गया है. इससे लोग बेहद नाराज नजर आ रहे हैं.

यह विवादास्पद परियोजना ईस्ट सियांग जिले के बेगिंग क्षेत्र में प्रस्तावित है.

भारत सरकार का दावा है कि यह परियोजना चीन द्वारा तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी पर बनाए जा रहे विशाल जलविद्युत बांध से उत्पन्न संभावित खतरे का मुकाबला करने के लिए जरूरी है.

स्थानीय लोग नवंबर 2024 से इस परियोजना के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं और सर्वेक्षण के प्रयासों को लगातार रोकते आ रहे हैं. लेकिन हाल ही केंद्र सरकार ने विरोध को काबू में करने और सर्वे कार्य को पूरा कराने के लिए अर्धसैनिक बलों की तैनाती की, जिससे नया विरोध भड़क गया.

प्रदर्शनकारियों में ज़्यादातर महिलाएं थीं, उन्होंने नारे लगाए और इस मेगा प्रोजेक्ट के प्रति अपना विरोध जताने के लिए तख्तियां थाम रखी थीं.

1 लाख से अधिक लोगों के विस्थापन की आशंका

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदर्शनकारी सियांग, अपर सियांग और पश्चिम सियांग जिलों के गांवों के निवासी हैं. जिनके सियांग नदी पर 300 मीटर ऊंचे बांध के निर्माण से प्रभावित होने की संभावना है.

इन तीनों जिलों में स्थानीय निवासियों, विशेष रूप से आदि जनजाति के लोगों ने इस प्रोजेक्ट का विरोध किया है. क्योंकि उनका मानना हे कि यह उनकी आजीविका, कृषि भूमि और सांस्कृतिक विरासत को ख़तरे में डालेगा.

सियांग नदी के दीते डाइम, परोंग और उग्गेंग क्षेत्रों में बनने वाली इस परियोजना से कम से कम एक लाख लोगों के विस्थापित होने की आशंका है.

पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर भी गंभीर चिंताएं जताई जा रही हैं क्योंकि यह परियोजना जैव-विविधता से भरपूर क्षेत्र को प्रभावित कर सकती है.

क्या है पूरा मामला?

पिछले साल 9 दिसंबर को राज्य की भारतीय जनता पार्टी सरकार के गृह मंत्रालय ने अपर सियांग, सियांग और ईस्ट सियांग जिलों के उपायुक्तों को एक पत्र भेजा था. जिसमें उनसे बांध के लिए “बल तैनाती” के लिए रसद और आवास व्यवस्था करने का अनुरोध किया गया था.

नीति आयोग द्वारा 2017 में सियांग नदी पर 13.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बांध की योजना बनाई गई थी लेकिन नदी के निचले इलाकों में रहने वाले आदिवासियों ने इसका कड़ा विरोध किया है.

अपर सियांग के आदि जनजाति के एक शख्स का कहना है कि सियांग हमारी मां है. हम इसे आने (मां) सियांग कहते हैं. हम इसकी पूजा करते हैं. हम इस पर बांध नहीं बनने देंगे. बांध हमें कुचल देगा.

सियांग नदी अरुणाचल प्रदेश के कम से कम पांच जिलों से होकर बहती है. यह चीन के तिब्बत से ग्रेट बेंड के जरिए राज्य में प्रवेश करती है, जहां इसे यारलुंग त्सांगपो के नाम से जाना जाता है.

इसके बाद यह असम में सहायक नदियों से मिलती है, जहां इसे ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है. यह नदी इन तटीय जिलों में बसे आदिवासियों के लिए जीवन रेखा भी है.

मनमाना और अलोकतांत्रिक कदम

मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने दिसंबर 2024 में उन रिपोर्टों का खंडन किया कि उनकी सरकार बांध के लिए अर्धसैनिक बलों का इस्तेमाल कर रही है.

खांडू ने स्थानीय लोगों के विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए कहा, “हम एक लोकतांत्रिक देश हैं, हम अपने लोगों पर परियोजनाओं को थोपने में विश्वास नहीं करते हैं.”

हालांकि, सीएपीएफ के 100 से अधिक सशस्त्र कर्मी अब सियांग और अपर सियांग में डेरा डाले हुए हैं.

इस बीच स्थानीय लोगों और समुदाय के नेताओं के मुताबिक, सीएपीएफ की तैनाती ग्रामीणों के साथ “परामर्श और सहमति के बिना” की गई थी.

आदि छात्र संघ के अध्यक्ष जिरबो जामोह कहना है कि हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम सियांग में कोई सशस्त्र बल नहीं चाहते हैं. जिस तरह से उन्हें सर्वेक्षण के लिए लाया गया वह मनमाना और अलोकतांत्रिक है.

यह अर्धसैनिक बल की तैनाती को लेकर आदिवासी समुदायों द्वारा किया गया छठा विरोध प्रदर्शन है और कुल मिलाकर सियांग नदी बेसिन में जलविद्युत बांधों के खिलाफ 2000 के दशक के बाद से राज्य में इस तरह के कई विरोध प्रदर्शनों में से एक है.

सियांग पर 300 मीटर ऊंचे इस बांध के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा दिया गया जस्टिफिकेशन चीन द्वारा साल 2020 में घोषित 60 हज़ार मेगावाट के बांध का मुकाबला करना है. जो भारत के क्षेत्रों से ग्रेट बेंड के पार और सियांग नदी के ऊपर है.

मुख्यमंत्री खांडू का कहना है कि दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत बांध के रूप में प्रचारित, इस परियोजना को चिन द्वारा “वॉटर बम” के रूप में देखा जाता है, जो नीचे की ओर विनाशकारी प्रभाव पैदा करेगा और अगर इसका उपयोग किया जाता है, तो आदि जनजाति गायब हो जाएगी.

उन्होंने कहा कि बीजिंग, जो अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलनों का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, कई जलाशयों से पानी को चीन के सूखे भागों में मोड़ सकता है.

उन्होंने कहा, “ऐसी स्थिति में सियांग में पानी की मात्रा बहुत कम हो जाएगी, इतनी कम कि सर्दियों के दौरान कोई भी इसे पैदल पार कर सकेगा.”

उन्होंने यह भी कहा कि चीन द्वारा अपने बांधों से अचानक पानी छोड़ने की संभावना है, जिससे अरुणाचल प्रदेश और असम में तबाही मच सकती है.

तब से राज्य सरकार “राष्ट्रीय सुरक्षा” का हवाला देते हुए, स्थानीय लोगों को बांध के निर्माण की अनुमति देने के लिए मनाने के लिए समुदाय के नेताओं की पैरवी कर रही है.

हालांकि, चीन ने इस बात से इनकार किया कि यारलुंग त्सांगपो पर दुनिया की सबसे बड़ी बांध परियोजना असम और बांग्लादेश सहित निचले इलाकों पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी.

सियांग स्वदेशी किसान मंच (SIFF) जो एक नागरिक अधिकार संगठन, जिसमें ज्यादातर आदि जनजाति के सदस्य शामिल हैं. उसके जनरल सेक्रेटरी डोंगो लिबांग ने कहा कि अगर राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता का विषय है तो नई दिल्ली से किसी को आकर इसके बारे में विस्तार से बताना चाहिए.

लिबांग ने कहा, “(प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी या अमित शाह को आकर हमें बताना चाहिए कि सियांग पर बांध बनाना राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में कैसे है. अगर ऐसा है भी तो उन्हें देखना चाहिए कि हम क्या खोने जा रहे हैं.”

स्थानीय आकलन के मुताबिक, अगर बांध बनाया गया तो सियांग और अपर सियांग के 27 गांव डूब जाएंगे. यह 1.5 लाख से अधिक लोगों के जीवन के लिए हानिकारक है.

बांध से प्रभावित गांवों में से एक पारोंग के एक निवासी का कहना है कि अगर सियांग पर इतना बड़ा बांध बनाया गया तो हमारे पास जीने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा. हमारी सारी पुश्तैनी जमीन और खेत खत्म हो जाएंगे.

बांध के लिए बांध नीति को पहले भी विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों ने चिन्हित किया है क्योंकि यह प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त सियांग बेल्ट पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.

बांध विरोधी कार्यकर्ता एबो मिल्ली, जिन्हें 2022 में बांध का विरोध करने के लिए पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है. उन्होंने कहा, “पहले से ही भूकंपीय क्षेत्र पर बांध बनाना एक बुरा विचार है. इससे पूरा पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो जाएगा. यह एक पारिस्थितिकी विनाश होगा.”

इस बीच, राज्य सरकार ने प्री-फिजिबिलिटी सर्वे के लिए ग्रामीणों की सहमति के बदले में 5 करोड़ रुपये तक की धनराशि की पेशकश की है.

लिबांग ने कहा, “यह धनराशि हमें उन रीति-रिवाजों, धर्म और कृषि भूमि का भुगतान करने में मदद नहीं कर सकती, जिन्हें हम छोड़ रहे हैं. अगर हम यहां से चले गए तो हम अपने राज्य में शरणार्थी बन जाएंगे.”

SIFF और उससे संबंधित संगठनों ने सशस्त्र सुरक्षा कर्मियों को तत्काल वापस बुलाने और सरकारी प्रतिनिधियों तथा परियोजना से प्रभावित होने वाले परिवारों के बीच शांतिपूर्ण वार्ता की मांग की.

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