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सोरेन सरकार को आदिवासियों की चिंता है तो धर्मांतरण रोकने के लिए कदम उठाए: बाबूलाल मरांडी

झारखंड भर के आदिवासी नेता जनगणना सर्वेक्षण में सरना कोड लागू करने की मांग कर रहे हैं ताकि आदिवासियों को सरना धर्म के अनुयायी के रूप में पहचाना जा सके.

झारखंड में आदिवासियों की पहचान को लेकर सरना धर्म कोड (Sarna Religion Code) की मांग फिर जोर पकड़ रही है. इस मांग को लेकर कांग्रेस ने सोमवार को राजभवन के सामने एकदिवसीय धरना दिया.

पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार जातिगत जनगणना की घोषणा तो कर रही है लेकिन सरना धर्म कोड को इसमें शामिल नहीं कर रही है.

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और कांग्रेस द्वारा सरना धर्म कोड की मांग को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शन के बीच विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) ने कहा कि अगर इन दलों को वाकई चिंता है तो आदिवासियों के ईसाई धर्म में धर्मांतरण को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए.

मरांडी के मुताबिक, अगर मरांग बुरु (Marang Buru) या प्रकृति की पूजा करने वाले सभी आदिवासी ईसाई धर्म में धर्मांतरित हो जाते हैं तो जनगणना फॉर्म के अलग कॉलम में ‘सरना’ कौन लिखेगा.

दरअसल, झारखंड भर के आदिवासी नेता जनगणना सर्वेक्षण में सरना कोड लागू करने की मांग कर रहे हैं ताकि आदिवासियों को सरना धर्म के अनुयायी के रूप में पहचाना जा सके.

मरांडी ने कहा कि झारखंड में धर्मांतरण एक बड़ी चुनौती बन गया है, यही वजह है कि पिछली रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इस पर रोक लगाने के लिए विधेयक लाया था.

रांची में भाजपा मुख्यालय में मीडिया को संबोधित करते हुए मरांडी ने 2011 की जाति जनगणना का हवाला देते हुए दावा किया कि झारखंड में 15.48 फीसदी आदिवासी आबादी ईसाई धर्म में धर्मांतरित हो गई थी.

उन्होंने कहा कि करीब 26 फीसदी उरांव, करीब 33 फीसदी मुंडा, 67 फीसदी से अधिक खरिया, 2 फीसदी से अधिक हो और करीब 1 फीसदी संथाल आबादी ने ईसाई धर्म अपना लिया है.

उन्होंने पूछा, “सरकार यह क्यों नहीं बताती कि पारंपरिक रूप से सरना धर्म का पालन करने वाले लाखों आदिवासी अब ईसाई कैसे बन गए हैं?”

मरांडी ने कहा कि 2011 में झारखंड की कुल आबादी 3.29 करोड़ थी, जिसमें से 86.45 लाख (26.2 प्रतिशत) आदिवासी थे.

उन्होंने कहा, “इनमें से करीब 14 लाख (लगभग 15 फीसदी) ने खुद को ईसाई बताया. सवाल यह है कि इतने सारे आदिवासी अपने मूल सरना धर्म से ईसाई कैसे बन गए और यह प्रवृत्ति क्यों जारी है?”

उन्होंने कहा कि आगामी जाति जनगणना से आदिवासियों के धर्म परिवर्तन के वास्तविक आंकड़े सामने आएंगे और चेतावनी दी, “जब सभी आदिवासी ईसाई बन जाएंगे, तो सरना कहां बचेगा?”

मरांडी ने जेएमएम और कांग्रेस को चुनौती देते हुए कहा, “अगर वे वाकई सरना धर्म की रक्षा के बारे में चिंतित हैं और अलग धर्म संहिता की मांग को लेकर गंभीर हैं तो उन्हें बताना चाहिए कि धर्मांतरण को रोकने के लिए उन्होंने क्या ठोस कदम उठाए हैं.”

उन्होंने दोनों पार्टियों पर सरना धर्म संहिता की वकालत की आड़ में आदिवासी समुदाय को धोखा देने का भी आरोप लगाया.

मरांडी ने बताया कि पहले की जनगणनाओं में सरना संहिता मौजूद थी लेकिन बाद में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इसे हटा दिया.

उन्होंने कहा, “2014 में जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार केंद्र में सत्ता में थी तो उन्होंने संसद में सरना धर्म संहिता की मांग को ‘अव्यावहारिक’ बताया था. हेमंत सोरेन आराम से उनके साथ सत्ता साझा कर रहे थे.”

मरांडी ने आरोप लगाया कि झारखंड में आदिवासी समुदाय अब बड़े पैमाने पर शोषण का सामना कर रहा है और दावा किया कि जेएमएम और कांग्रेस का असली चरित्र – जो धर्मांतरण और घुसपैठ को बढ़ावा दे रहे हैं, अब उजागर हो गया है.

सरना धर्म कोड की मांग फिर जोर पकड़ने लगी

कांग्रेस ने चेतावनी दी कि अगर केंद्र ने इस मांग पर ध्यान नहीं दिया तो आंदोलन झारखंड से निकलकर दिल्ली के जंतर मंतर तक पहुंचेगा.

सोमवार को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो ने कहा कि कांग्रेस हमेशा से आदिवासियों की हिमायती रही है. हाल ही में रांची दौरे पर आए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी सरना धर्म कोड की खुलकर वकालत की थी.

वहीं पूर्व सांसद प्रदीप बालमुचू ने बताया कि राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा गया है और जल्द ही राष्ट्रपति से भी हस्तक्षेप की मांग की जाएगी.

जेएमएम और कांग्रेस जनगणना फॉर्म में सरना अनुयायियों के लिए एक अलग कॉलम की मांग कर रहे हैं.

सोमवार को कांग्रेस द्वारा प्रदर्शन किए जाने के बाद झामुमो ने मंगलवार को झारखंड भर के जिला मुख्यालयों पर इसी तरह के विरोध प्रदर्शन किए.

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