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टिपरा मोथा : त्रिपुरा की राजनीति को नए सिरे से लिखने वाला संगठन

त्रिपुरा की राजनीति को 360 डिग्री घूमा देने वाले आदिवासी संगठन टिपरा मोथा के नेता आजकल दिल्ली में डेरा क्यों डाले हैं? क्या यह आदिवासी संगठन बीजेपी जैसी बलशाली और सत्ताधारी पार्टी को राज्य की राजनीति में हाशिये पर धकेल पाएगी?

त्रिपुरा की राजनीति लंबे समय तक दो ध्रुवीय रही. राज्य की राजनीति में कांग्रेस और फिर वाम मोर्चा की सरकारें बनती रहीं. लेकिन 2018 के विधान सभा चुनाव में उत्तर-पूर्व के इस राज्य की राजनीति 360 डिग्री पर घूम गई.

माणिक सरकार, जिनकी वाम मोर्चा की सरकार अजेय नज़र आती थी उसे बीजेपी ने हरा दिया. बल्कि यह कहना सही होगा कि सीपीआई (एम) की सरकार को बीजेपी ने उखाड़ फेंका था.

बीजेपी यह कारनाम इसलिए कर पाई कि उसे राज्य में आदिवासियों का भरपूर साथ मिला था. राज्य की कुल 60 सीटों में से बीजेपी और आईपीएफटी (IPFT) ने 44 सीटें जीतीं थी.

सीपीआई (एम) को सिर्फ़ 16 सीटें ही मिलीं थीं. बीजेपी ने 2014 के बाद एक के बाद एक कई राज्यों में जीत हासिल की है. लेकिन त्रिपुरा की यह जीत बेहद ख़ास थी. क्योंकि यहाँ पर उसने वाम मोर्चा को हराया था.

बीजेपी के लिए वाम मोर्चा सैद्धांतिक तौर पर सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है. लेकिन इस जीत को बीजेपी ज़्यादा देर सँभाल नहीं पाई.

उसकी सरकार तो नहीं गिरी, लेकिन सत्ता में रहते हुए भी बीजेपी हाशिये पर नज़र आने लगी. पिछले साल त्रिपुरा के आदिवासी इलाक़ों की स्वायत्त परिषद में उसको करारी हार का सामना करना पड़ा.

राज्य की राजनीति में आदिवासियों को एक नया संगठन बनाया गया. इस संगठन का नेतृत्व कर रहे हैं राज परिवार के प्रद्योत किशोर माणिक्य, और यह संगठन राज्य की राजनीति को बिलकुल नए सिरे से परिभाषित कर रहा है.

टिपरा मोथा नाम के इस संगठन के कई बडे़ नेता आजकल दिल्ली में डेरा डाले हैं. ये लोग दिल्ली क्यों आए हैं? टिपरा मोथा का गोल क्या है…जैसे कई सवाल हैं.

इस इंटरव्यू में आपको सभी सवालों के जवाब मिलेंगे. पूरा इंटरव्यू देखने के लिए वीडियो लिंक पर क्लिक करें.

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