प्रधान सचिव (प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रशासनिक प्रमुख), गृह सचिव (गृह मंत्रालय [एमएचए] के प्रशासनिक प्रमुख), और संयुक्त सचिव (केंद्र शासित प्रदेश [यूटी] डिवीजन, एमएचए) के एक प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में ग्रेट निकोबार का दौरा किया.
प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रधान सचिव पीके मिश्रा और अन्य अधिकारियों का यह दौरा मई महीने में हुआ था.
यह देश का सबसे दक्षिणी भूभाग और एक ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह के आसपास केंद्रित 75000 करोड़ रुपये की ग्रीनफील्ड समग्र परियोजना की जगह है.
इन अधिकारियों के साथ अंडमान निकोबार के मुख्य सचिव (Chief Secretary ) भी थे. वे अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एकीकृत विकास निगम (ANIIDCO) के अध्यक्ष भी हैं. इस सरकारी एजेंसी को नीति आयोग के निर्देशन में ‘ग्रेट निकोबार समग्र विकास’ परियोजना को क्रियान्वित करने का काम सौंपा गया है.
इस परियोजना की कुल लागत 75000 करोड़ रूपए बताई जाती है.
कई मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, केंद्रीय प्रतिनिधिमंडल ने ग्रेट निकोबार में लगभग एक दिन बिताया. इस दौरान उन्होंने विशेष रूप से द्वीप के शोम्पेन जनजातीय समुदाय के लोगों से मुलाक़ात की थी. शोम्पेन जनजाति को पीवीटीजी यानि आदिम जनजाति माना जाता है. ये आदिवासी अभी भी जंगल में खाने की तलाश में घूमते रहते हैं.
शोम्पेन जनजाति के बारे में बताया जाता है कि उनके 2-3 लोग ही हैं जो हिंदी के कुछ शब्द जानते हैं. उनसे बातचीत का ज़रिया निकोबारी जनजाति की भाषा को ही माना जाता है. क्योंकि निकाबोरी जनजाति के साथ उनका थोड़ा बहुत वास्ता अपनी ज़रूरत के लिए रहा है.
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 3 मई, 2024 को प्रतिनिधिमंडल ने ग्रेट निकोबार बायोस्फीयर रिजर्व में अंडमान आदिम जनजाति विकास समिति (AAJVS) अधिकारियों की उपस्थिति में शोम्पेन जनजाति के 5 लोगों से मुलाकात और बातचीत की थी. इस बातचीत में ग्रेट निकोबारी मध्यस्थ (Great Nicobarese mediator) की मदद ली गई थी.
इस बैठक के बारे में जो जानकारी सामने आई है उस पर कई महत्वपूर्ण सवाल उठे हैं. मसलन क्या जनजातीय मामलों के मंत्रालय और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के प्रतिनिधि इस दल में शामिल थे?
इसी तरह अंडमान निकोबार की अधिकार प्राप्त समिति के शोधकर्ता जैसे डॉ. विश्वजीत पंड्या, डॉ. मनीष चंडी (जिन्होंने शोम्पेन नीति 2015 का मसौदा तैयार किया), या भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (Anthropological Survey of India) के प्रतिनिधि इस बातचीत में शामिल क्यों नहीं थे?
कोई भी न्यूज़ रिपोर्ट इस बात पर स्पष्टता नहीं देती कि केंद्र सरकार के अधिकारियों का दल शोम्पेन जनजाति के किसी समूह से मिले हैं. जिस आदिवासी समूह से अधिकारी दल मिला है क्या वह समूह है जो स्वीकृत परियोजना से प्रभावित होगा.
केंद्र सरकार की इस पहल का तो जानकार स्वागत करते हैं कि उसने अंडमान निकोबार में प्रस्तावित परियोजना से प्रभावित होने वाले आदिम जनजाति के लोगों तक पहुंचने की कोशिश की है. लेकिन इस तरह के प्रयासों का सचमुच में कितना फ़ायदा होगा इस पर सवाल पूछे जा रहे हैं.
जून 2020 में केंद्र सरकार की इस परियोजना की घोषणा के बाद केंद्रीय जहाजरानी मंत्री, केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री, उपराज्यपाल और यहां तक कि राष्ट्रपति और आदिवासी समुदायों के बीच जो मुलाक़ाते हुई हैं उनमें हुई बातचीत कभी सार्वजनिक नहीं की गई हैं.
सरकार के शीर्ष अधिकारियों की इस मुलाकात पर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं कि उन्होंने शोम्पेन जनजाति को बातचीत के लिए चुना जबकि निकोबारी समुदाय के लोगों से अभी तक कोई बातचीत नहीं की है. जबकि निकाबरी समुदाय के चीफ़ ने सरकार को इस संदर्भ में एक पत्र भी लिखा था.
ग्रेट निकोबार और लिटिल अंडमान ट्राइबल काउंसिल की तरफ से लिखे गए इस पत्र में सरकार की प्रस्तावित परियोजना और जनजातीय समुदाय से जुड़ी कई चिंताएं ज़ाहिर की गई हैं.