बीजू जनता दल ने पोलावरम परियोजना का विरोध तेज़ कर दिया है. पार्टी का कहना है कि यह परियोजना मलकानगिरी के आदिवासियों को बेघर कर देगी.
पोलावरम बांध से जुड़ी मुख्य चिंता ओडिशा के मलकानगिरी के आदिवासी इलाकों के डूब जाने की है. यह बताया जा रहा है कि इस ज़िले के कम से कम 200 आदिवासी गांव इस बांध के डूब क्षेत्र में आ जाएँगे.
आईआईटी रुड़की ने इस परियोजना के डूब क्षेत्र का अनुमान लगाते हुए बताया है कि क़रीब 58 लाख क्यूसेक पानी में ओडिशा में 232.28 फुट की उंचाई तक का इलाका डूब जाएगा. यह स्टडी साल 2019 में की गई थी
आंध्र प्रदेश के पोलवरम बांध परियोजना से ओडिशा के कई आदिवासी इलाकों में विस्थापन का भय पैदा हो गया है. यह बताया जा रहा है कि इस परियोजना की वजह से कम से कम 200 आदिवासी गांव डूब सकते हैं.
ओडिशा के मलाकनगिरी इलाके में इस परियोजना से सबसे अधिक आदिवासी गांव प्रभावित होंगे. यहां के कालीमेला और पाडिया ब्लॉक के अलावा मोटू पंचायत के लगभग 200 गांव पोलवरम के पानी (backwaters) में डूब सकते हैं.
इस मामले में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के नेता नवीन पटनायक ने भी चिंता प्रकट की है. उन्होने कहा है कि पोलावरम प्रोजेक्ट की वजह से बड़ी संख्या में आदिवासी प्रभावित होंगे. न
नवीन पटनायक ने अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे इस मुद्दे पर विरोध दर्ज कराएं.
पोलावरम प्रोजेक्ट से विस्थापन की आशंका के मुद्दे को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के सामने भी रखा गया है. इसके अलावा बीजेडी के नेताओं ने इस मुद्दे को जलशक्ति मंत्रालय के सामने भी उठाया है.
इसके अलावा पोलावरम प्रोजेक्ट से जुड़ी चिंताओं के सिलसिले में बीजेडी नेताओं ने आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल उरांव से भी मुलाकात की है.
केंद्र सरकार पर पोलवरम के लिए राजनीतिक दबाव
ओडिशा में मुख्य विपक्षी दल बीजेडी ने आरोप लगाया है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू का केंद्र सरकार पर पोलावरम परियोजना को लेकर दबाव है. चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी (TDP) के समर्थन से मोदी सरकार चल रही है.
चंद्रबाबू नायडू ने कहा है कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि साल 2027 तक यानि अगले दो साल में गोदावरी नदी पर पोलावरम परियोजना पूरी हो जाए.
केंद्र सरकार ने साल 2024-25 के बजट में पोलवरम परियोजना को पूरा करने के लिए 15000 करोड़ रूपए की व्यवस्था की है.
योजना का विरोध का आधार
गोदावरी नदी पर चल रही इस बांध परियोजना पर आंध्र प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों के बीच विवाद है. इस योजना से जुड़े लोगों का कहना है कि तीनों ही राज्यों की सरकारें इस विवाद को निपटाने के करीब हैं.
लेकिन ओडिशा राज्य में मुख्य विपक्षी दल बीजू जनता दल ने नए सिरे से पोलावरम सिंचाई परियोजना का विरोध शुरू किया है. इस सिलसिले की शुरूआत पार्टी ने केंद्र सरकार के अलग अलग मंत्रालयों को ज्ञापन सौंप कर की है.
बीजेडी ने कहा है कि जल्दी ही वह ज़िला स्तर पर इस परियोजना के विरोध में प्रदर्शन करेगी. बीजू जनता दल का कहना है कि की केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission) ने इस परियोजना में बांध में जमा पानी (Back Waters) का सही से अध्यय्यन नहीं किया है.
बीजू जनता दल का दावा है कि आंध्र प्रदेश सरकार और केंद्रीय जल आयोग दोनों के ही इस बारे में अलग अलग आकलन हैं. पार्टी का कहना है कि इस बांध के पानी की डूब में आने वाले क्षेत्रों के बारे में सही सही अनुमान नहीं लगाया गया है.
इस सिलसिले में बताया गया है कि आंध्र प्रदेश की स्टडी के अनुसार इस बांध में 50 लाख क्यूसेक पानी में कम से कम 216 फुट उंचाई तक का इलाका ओडिशा में डूब जाएगा. जबकि समझौते के अनुसार यह सीम 174.22 फुट ही रखी गई है.
वहीं आईआईटी रुड़की ने इस परियोजना के डूब क्षेत्र का अनुमान लगाते हुए बताया है कि क़रीब 58 लाख क्यूसेक पानी में ओडिशा में 232.28 फुट की उंचाई तक का इलाका डूब जाएगा. यह स्टडी साल 2019 में की गई थी जबकि आंध्र प्रदेश की स्टडी साल 2009 की है.
ओडिशा की चिंताएँ
पोलावरम बांध से जुड़ी मुख्य चिंता ओडिशा के मलकानगिरी के आदिवासी इलाकों के डूब जाने की है. यह बताया जा रहा है कि इस ज़िले के कम से कम 200 आदिवासी गांव इस बांध के डूब क्षेत्र में आ जाएँगे.
हांलाकि मलकानगिरी ज़िले में इस बांध के डूब क्षेत्र में कितना इलाका आएगा इस पर कोई आधिकारिक स्टडी उपलब्ध नहीं है. लेकिन साल 2016 में ओडिशा सरकार की तरफ़ से राष्ट्रीय जनजाति आयोग को यह बताया गया था करीब 7656 हेक्टेयर भूमि इस बांध के पानी मे डूब जाएगी. इसके अलावा यह जानकारी दी गई थी कि इस परियोजना की वजह से कम से कम 6800 लोग विस्थापित होंगे.
पोलवरम परियोजना क्यों शुरू हुई?
पोलावरम परियोजना आंध्र प्रदेश के एलुरु और पूर्वी गोदावरी जिले में गोदावरी नदी पर एक निर्माणाधीन बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना है. इस परियोजना की शुरआत गोदवारी वॉटर डिस्प्यूट ट्राइब्यूनल (Godavari Water Dispute Tribunal) की सिफ़ारिश पर हुई.
इसके लिए साल 1980 में आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और ओडिशा के बीच एक समझौता हुआ था. इस समझौते के अनुसार इस बांध का निर्माण आंध्र प्रदेश को करना था. साल 2014 में आंध्र प्रदेश स्टेट रिऑर्गेनाइजेशन एक्ट के ज़रिए इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दिया गया.
जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार इस बांध की कुल उंचाई 72.60 मीटर है. इस परियोजना की शुरुआत में बांध पर कुल ख़र्चे का अनुमान लगभग 10, 151 करोड़ रुपए का था. यह अनुमान अब बढ़ कर 55 हजा़र करोड़ से ज़्यादा का हो चुका है.
इस बांध का जलाशय का पानी डुम्मुगुडेम एनीकट तक (यानी मुख्य नदी के किनारे पोलावरम बांध से लगभग 150 किमी पीछे) और सबरी नदी के किनारे लगभग 115 किमी तक फैला हुआ है.
यह पानी छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के हिस्सों में भी जाता है.