भारतीय के संविधान में देश के आदिवासी इलाकों के विकास के लिए विशेष प्रावधान किया गया है. संविधान में आदिवासी संस्कृति, भाषा और आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने की मंशा दर्ज है.
इस सिलसिले में अनुच्छेद 275(1) (Articale 275 (1) अलग अलग राज्यों के आदिवासी इलाकों के विकास के लिए आर्थिक मदद का प्रवाधान करता है.
ये धनराशि सालाना जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा एक फंड के रूप में विशेष क्षेत्र कार्यक्रम (Special Area Programme) के तहत राज्य सरकारों को दी जाती है.
यह सहायता भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से दी जाती है. संचित निधि भारत सरकार का एक खाता होता है जिसमें सरकार की आय और व्य्य दर्ज की जाती है. संचित निधि केंद्र बजट का एक महत्तवपूर्ण अंग होता है. इस लिहाज़ से संविधान का अनुच्छेद 275(1) हर साल आवंटित किए जाने वाले केंद्रीय बजट का भी हिस्सा है.
इस प्रावधान का उद्देश्य जनजातीय समुदायों के जीवन स्तर को बेहतर बनाना और उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करके उन्हें देश के अन्य वर्गों के बराबर लाना है.
किन योजनाओं के लिए मिलती है फंड को मंज़ूरी
केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय राज्य की उन योजनाओं के लिए मदद के रूप में ये फंड देता है जिन्हें केंद्र सरकार से स्वीकृति मिल जाती है. अनुच्छेद 275(1) के तहत मिलने वाली यह आर्थिक सहायता 100% केंद्रीय होती है क्योंकि यह भारत की संचित निधि में से दी जाती है, लेकिन जिस राज्य को यह मदद मिलती है उसके लिए यह उसकी आय का हिस्सा होती है.
धनराशि का आवंटन कैसे होता है?
अनुच्छेद 275(1) के तहत उन राज्यों को आर्थिक मदद दी जाती है, जिनमें अनुसूचित जनजातियों की संख्या अधिक होती है.
2020 में केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार धनराशि का आवंटन दो चरणों में करने की बात कही गई थी.
ज़्यादातर मामलों में पहले चरण में ही राज्यों की अनुसूचित जनजाती की आबादी के अनुपात में धनराशि आवंटित कर दी जाती है, जिसमें जनजातीय जनसंख्या के लिए आवंटित कुल बजट का 90% राज्यों को दे दिया जाता है. शेष 10% आपातकालीन ज़रूरतों, पिछले प्रदर्शन और राज्यों के प्रदर्शन के आधार पर बाद में दिया जाता है.
इसके अलावा हर राज्य को एक न्यूनतम राशि भी दी जाती है. 2020 में इसे ₹8 करोड़ रखा गया था.
धनराशि का उपयोग और निगरानी
राज्य सरकारें जनजातीय क्षेत्रों के लिए योजनाएं बनाती हैं, जिन्हें केंद्र सरकार के पास मंज़ूरी के लिए भेजा जाता है. पहले से तय प्रक्रिया के तहत मंज़ूरी मिलने के बाद इन योजनाओं को लागू किया जाता है और इसके लिए आवंटित धनराशि का इस्तेमाल किया जाता है.
बजट में आवंटित किए गए धन का उपयोग सही तरह हो रहा है या नहीं, इसका ध्यान रखने के लिए राज्य स्तर पर कार्यकारी समिति और ज़िला स्तर पर जिला योजना और निगरानी समिति का गठन किया जाता है. ये समितियां जनजातीय विकास के लिए लागू की गई योजनाओं की समीक्षा करती हैं. ये दोनों कार्यकारी समितियां इन योजनाओं के परिणामों का भी मूल्यांकन करती है.
केंद्र में जनजातीय मामलों का मंत्रालय (MoTA) भी योजनाओं की प्रगति की निगरानी करती है.
2020 के दिशा-निर्देश में योजनाओं की प्रगति और उपयोगिता प्रमाणपत्र (Utilization Certificate) नियमित रूप से केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय को सौंपने का प्रावधान भी दिया गया था. इसके अलावा पारदर्शिता के लिए योजनाओं से संबंधित सभी दस्तावेज़ और जानकारी सार्वजनिक पोर्टल पर उपलब्ध करवाने की बात कही गई थी.
इस प्रावधान का उद्देश्य
इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जनजातियों और आदिवासी क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा देना है. अनुच्छेद 275(1) को संविधान में इसलिए जोड़ा गया था ताकि शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और आजीविका के क्षेत्र में सुधार करके जनजातीय समुदायों के जीवन को बेहतर बनाया जा सके और उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने में मदद मिले.
ये अनुच्छेद आदिवासी समुदायों के विकास के लिए महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह पूरी तरह से अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पा रहा है. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General) की रिपोर्ट और अन्य शोध बताते हैं कि फंड आवंटन और उसके उपयोग में पारदर्शिता की कमी, भ्रष्टाचार और योजनाओं को लागू करने में लापरवाही बड़ी समस्याएं हैं.
ज़्यादातर ये फंड आदिवासी क्षेत्रों तक पहुंचता ही नहीं है या अधिकारियों के द्वारा गलत तरीके से इस्तेमाल किया जाता है. इसका नतीजा यह होता है कि आदिवासी समुदायों की जीवन गुणवत्ता में उतना सुधार नहीं होता, जितना बजट आदिवासी कल्याण के लिए आवंटित किया जाता है.
इस अनुच्छेद की सफलता के लिए प्रभावी निगरानी, आवंटित फंड का सही उपयोग और ज़िम्मेदार संस्थानों की जवाबदेही सुनिश्चित करना ज़रूरी है. जब तक इन चुनौतियों का समाधान नहीं होगा अनुच्छेद 275(1) का उद्देश्य अधूरा रहेगा.