HomeMain Bhi Bharatबस्तर की मूर्तिकला में प्रयोग और आदिवासी आस्था की कहानी

बस्तर की मूर्तिकला में प्रयोग और आदिवासी आस्था की कहानी

बस्तर आर्ट दुनिया भर में खूब नाम कमा रही है. बस्तर में पर्यटन भी बढ़ रहा है. लेकिन बस्तर आर्ट के पीछे की आदिवासी कहानियों और आस्था को भी बताया जाए तो इसमें लोगों की दिलचस्पी बढ़ेगी.

छत्तीसगढ़ की बस्तर आर्ट यानि मूर्तिकला की तारीफ़ दुनिया भर में होती है. हम और आप में से जो लोग बस्तर कभी नहीं गए हैं, उन्होंने भी बस्तर आर्ट के नमूने बाज़ारों में ज़रूर देखे होंगे.

जब बस्तर आर्ट की बात आती है तो लोहे की मूर्तियों और सजावट के ना जाने कितने तरह की चीजें हमारी आँखों के सामने तैर जाती है.

इसके अलावा जब भी किसी मेले या बाज़ार में आदिवासी हस्तकला यानि handicraft  की बात होती है तो बस्तर में बनी पीतल की मूर्तियों का ज़िक्र ना हो यह कैसे हो सकता है.

बस्तर की इस मूर्तिकला को ढोकरा आर्ट के नाम से भी जाना जाता है. इस तरह की मूर्तियाँ अब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी जगह बना रही हैं.

लोहे और पीतल से बनी कलाकृतियों के अलावा बस्तर मिट्टी से बनी कलाकृतियों के लिए भी मशहूर है. बस्तर आर्ट के बारे में आपने बहुत कुछ सुना और देखा होगा.

ढोकरा आर्ट से पीतल की मूर्तियाँ कैसे बनती हैं इस विधि पर भी आपने पढ़ा, सुना और शायद कुछ वीडियो भी देखे होंगे.

लेकिन आज हम बस्तर आर्ट से जुड़े कुछ ख़ास पहलुओं को जानने समझने की कोशिश करेंगे, क्योंकि बस्तर आर्ट में बनी लोहे, पीतल या मिट्टी की हर मूर्ति के पीछे एक कहानी है, आस्था है.

इस सिलसिले में जब हम जगदलपुर तहसील के चिलकुट्टी गांव में पहुँचे तो फुगुनराम सागर के घर पर पीतल की मूर्तियों को चमकाने का काम हो रहा था.

इन मूर्तियों को बनाने में कई बारिकियां शामिल हैं. इसमें पहले मोम का मॉडल बनाया जाता है, फिर उसे मिट्टी से कवर करके भट्टी में पकाया जात है.

उसके बाद उसमें पीतल पिघला कर डाला जाता है. फुगुनराम सागर ने जब से होश सँभाला है वह यह काम कर रहे हैं. आज वे इस कला के मशहूर कारीगर हैं.

वे बताते हैं कि पीतल की इन मूर्तियों को बनाने में लंबा समय लगता है. इन मूर्तियों को बनाने की प्रक्रिया में करीब एक दर्जन स्टैप होते हैं.

बस्तर आर्ट में आजकल सज़ावट और फ़ैशन से जुड़ी कई तरह की चीजें बनती हैं. लेकिन अभी भी इन कारीगरों के पास परंपरागत मूर्तियों की माँग ज़्यादा आती है.

इन मूर्तियों की ख़ास बात ये होती है कि इनके बारे में बताना नहीं पड़ता है कि यह बस्तर की ढोकरा आर्ट है. ये मूर्तियाँ स्थानीय परिवेश और परंपरा से प्रभावित होती हैं. 

दरअसल आज जिसे हम बस्तर की मशहूर ढोकरा आर्ट कहते हैं, इसमें आदिवासी देवी-देवताओं और पुरखों की मूर्तियाँ बनाने का चलन रहा है.

आदिवासी समुदायों में गाँव और परिवार की सुख शांति और बीमारी से बचने के लिए देवी देवताओं को प्रसन्न करने की परंपरा रही है.

यानि आदिवासी समुदायों में गाँव की रक्षा करने वाले देवी देवता, खेत-खलिहान के देवता और पहाड़ों और नदियों के देवता होते हैं. एक समय था जब ये कारीगर आदिवासी परिवारों के लिए उनके देवी देवताओं की मूर्ती बनाते थे.

इन कारीगरों की मेहनत और कुछ सरकारी मदद से बस्तर आर्ट का एक बाज़ार तैयार हुआ है. अब ढोकरा आर्ट के कम से कम नाम कमा चुके कारीगरों के पास पर्याप्त काम होता है.

लेकिन जैसे जैसे यह बाज़ार तैयार हुआ है, वैसे वैसे बाज़ार के नियम भी इस कला पर हावी होते गए हैं. जो शायद लाज़मी भी थे.

एक ज़माने में आदिवासी समुदायों की ज़रूरत पूरा करने वाले कारीगर जब बाज़ार के लिए उत्पादन कर रहा है तो उसकी प्राथमिकता ज़ाहिर तौर पर मुनाफ़ा है.

इसलिए अब ये कारीगर बहुत सी ऐसी चीजें बनाना बंद कर चुके हैं जो आदिवासी इस्तेमाल करते थे. मसलन आदिवासी महिलाओं के आभूषण पहड़ी, खाड़ू जैसी चीजें अब ये कारीगर नहीं बनाते हैं.

दरअसल आदिवासी परिवार जब एक आभूषण ख़रीदता है तो वह पीढ़ी दर पीढ़ी इस्तेमाल होता है. मूर्तियाँ का बाज़ार भी अगर आदिवासियों तक सीमित हो जाए तो सिमट कर बहुत छोटा हो जाएगा.

इसके अलावा जब बस्तर की मूर्तियाँ देश-विदेश के बाज़ार में पहुँचती है तो ज़ाहिर है कि बस्तर की आदिवासी संस्कृति और परंपरा की चर्चा भी होती होगी.

नई पीढ़ी के कलाकारों और कारीगरों को भी इस हुनर को सीखने का हौसला मिलता होगा. हमने यहाँ पर कारीगरों से बातचीत में यह महसूस किया कि बेशक बस्तर आर्ट दुनिया के बाज़ार में पहुँची है.

इसके अलावा बस्तर में आदिवासी पर्यटन भी बढ़ा है. लेकिन बस्तर आर्ट के पीछे जो कहानियाँ और आस्था है….उसके बारे में लोग अभी भी नहीं जानते हैं…

अशोक चक्रधारी कोंडागांव के मशहूर कारीगर हैं जो मिट्टी का काम करते हैं. अशोक मिट्टी से बनने वाली चीज़ों में तरह तरह के प्रयोग करने के लिए जाने जाते हैं. मसलन उन्हें मैजिक लैंप बनाने वाले कारीगर के तौर पर देश भर में ख्याति मिली थी. 

अशोक यूं तो तरह तरह की मूर्तियां, दीये और बर्तन बनाते हैं, लेकिन यहां घोड़े और हाथी की मूर्ति बड़ी मात्रा दिखाई देती है. इन हाथी-घोड़ों की बाज़ार में काफी मांग है, शायद इसलिए अशोक और उनके साथी इन्हें ज़्यादा मात्रा में बनाते हैं.

ये हाथी घोड़े लोगों के बंगलों, फार्म हाउस और कोठियों के दरवाज़ों पर शोभा बढ़ाते हुए अक्सर दिखाई देते हैं. लेकिन कोंडागांव में बनाए जाने वाले मिट्टी के ये हाथी घोड़े आदिवासी आस्था से जुड़े हैं. 

समय के साथ आदिवासी समुदाय की जीवनशैली में भी कई बदलाव आये हैं. मसलन अब आदिवासी परिवार भी धातु के बने बर्तन इस्तेमाल करते हैं.

अशोक चक्रधारी बताते हैं कि एक समय था कि जब आदिवासी शादी में गाड़ी भर कर बर्तन जाते थे. लेकिन आजकल शादी ब्याह में स्टील और धातु को दूसरे बर्तन इस्तेमाल होते हैं. लेकिन अभी भी कुछ पर्व ऐसे होते हैं जिसमें आदिवासी माटी की हांडी ही इस्तेमाल करते हैं. 

मिट्टी से बनाई जाने वाली मूर्तियों में इस आदिवासी इलाक़े की कई कहानी और क़िस्से भी मिलते हैं. मसलन यहाँ की झिटकू मिटकी की कहानी मिलती है.

ये दो प्रेमियों की कहानी है जो मिल नहीं पाते हैं. एक समय में समाज ने उन्हें मिलने नहीं दिया…लेकिन आज वही समाज उन्हें पूजता है…शायद अपने पापबोध से मुक्ति पाने के लिए.

बस्तर की आर्ट दुनिया भर में मशहूर हो रही है और साथ साथ कलाकारों और कारीगरों का सम्मान हो रहा है, यह एक अच्छी ख़बर है.

लेकिन इस आर्ट से जुड़ी आदिवासी कहानियाँ और आस्था के बारे में भी अगर बताया जाए तो शायद इस आर्ट में दिलचस्पी के साथ साथ आदिवासी संस्कृति के बारे में भी लोगों की जानकारी बढ़ेगी.

शायद यह काम आदिवासी इलाक़ों में ज़्यादा पर्यटक को आकर्षित भी करे.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments