यूके स्थित सर्वाइवल इंटरनेशनल (Survival International) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 75,000 करोड़ रुपये की ग्रेट निकोबार विकास परियोजना (Great Nicobar Development Project) निकोबार द्वीप समूह में विशेष रूप से कमजोर शोम्पेन जनजाति (Shompen tribe) को खत्म करने का ख़तरा है.
सोमवार को जारी की गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रेट निकोबार द्वीप पर एक मेगा-पोर्ट, एयरपोर्ट, डिफेंस बेस और टूरिज्म पार्क बनाने की भारत सरकार की योजना से शोम्पेन जनजाति के लगभग 300 जीवित सदस्य बीमारी, पर्यटन, उत्पीड़न और शोषण के संपर्क में आ जाएंगे. साथ ही उनके जंगल और जीविका के साधन भी नष्ट हो जाएंगे.
रिपोर्ट में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक त्रिलोकनाथ पंडित के हवाले से कहा गया है, “मेरे विचार से इस तरह की बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं उचित नहीं हैं… शोम्पेन भले ही कम हों, लेकिन द्वीप के जंगलों के बारे में उनका ज्ञान बेजोड़ है. उन्हें वैसे ही रहने दें, जैसे वे हैं.”
सर्वाइवल इंटरनेशनल एक वैश्विक गैर-सरकारी संगठन है जो दुनिया भर में आदिवासी और हाशिए पर पड़े समुदायों, संपर्कविहीन लोगों के सामूहिक अधिकारों की वकालत करता है.
इसने सोमवार को क्रश्ड: कैसे भारत दुनिया की सबसे अलग-थलग जनजातियों में से एक की बलि चढ़ाकर “नया हांगकांग” बनाने की योजना बना रहा है शीर्षक से रिपोर्ट जारी की.
रिपोर्ट को नस्लीय भेदभाव को समाप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र समिति (CERD) को प्रस्तुत करने के लिए संकलित किया गया था.
समाचार रिपोर्टों, विशेषज्ञों की गवाही और ग्रेट निकोबार परियोजना पर भारत सरकार की अपनी पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट का हवाला देते हुए, सर्वाइवल इंटरनेशनल ने जागरूकता बढ़ाने की कोशिश की और भारत सरकार से विकास की सभी योजनाओं को तुरंत छोड़ने का आग्रह किया.
भारतीय अधिकारियों द्वारा किए गए 2022 ईआईए का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार जानती है कि शोम्पेन जनजाति के प्रकृति और पर्यावरण में कोई भी गड़बड़ी उनके अस्तित्व को खतरे में डाल देगी.
वर्तमान में ग्रेट निकोबार द्वीप पर 500 से भी कम निवासी हैं. प्रस्तावित विकास परियोजना का लक्ष्य इस संख्या को करीब 8,000 प्रतिशत बढ़ाकर 6 लाख 50 हज़ार स्थायी निवासी बनाना है.
फिर भी सरकार ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है.
शोम्पेन जनजाति
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में कई ऐसी जनजातियां हैं, जो बाहरी दुनिया का संपर्क से दूर हैं, जिनमें जारवा, सेंटिनली और शोम्पेन शामिल हैं. ये समूह बाकी दुनिया से काफी हद तक अलग-थलग रहे हैं, जिसमें अन्य भारतीय भी शामिल हैं, जिससे वे बाहरी लोगों के संपर्क में आने से बीमारी के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हो गए हैं.
शोम्पेन जनजाति, जिसमें केवल लगभग 300 व्यक्ति शामिल हैं. उनको भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. वे शिकार और संग्रह पर निर्भर रहते हैं और ग्रेट निकोबार द्वीप के मूल निवासी हैं.
जहां अब एक विशाल विकास परियोजना उनके पारिस्थितिकी तंत्र, वनस्पतियों और जीवों के लिए ख़तरा बन गई है और इसके परिणामस्वरूप मुख्य भूमि भारत से 6 लाख से अधिक लोगों का बसना हो सकता है.
रिपोर्ट में नरसंहार इतिहासकार डॉ. मार्क लेवेन के हवाले से कहा गया है, “शोम्पेन लोगों का अस्तित्व बाहरी लोगों से उनके अलगाव पर निर्भर करता है. विकास परियोजना का परिणाम मानसिक पतन और एक लंबी मौत होगी.”
शोम्पेन जनजाति के लिए खतरा सिर्फ़ पर्यावरण क्षरण और नई बीमारियों का जोखिम ही नहीं है. ज़्यादातर सदस्य सदियों से बाहरी संपर्क के बिना रह रहे हैं और उनकी जीवनशैली मुख्य भूमि के लोगों से काफ़ी अलग है.
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि ग्रेट निकोबार द्वीप पर पर्यटकों की पहुंच बढ़ाने से शोम्पेन के लिए नस्लीय भेदभाव और उत्पीड़न का जोखिम बढ़ सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “शोम्पेन के बीच ‘मानव सफारी’ का भी काफी खतरा है, जैसा कि पड़ोसी अंडमान द्वीप समूह के अंग (जिन्हें पहले जारवा के नाम से जाना जाता था) लोगों के साथ वर्षों से होता आ रहा है.”
अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन
सर्वाइवल इंटरनेशनल ने बताया कि क्योंकि शोम्पेन से कोई संपर्क नहीं है इसलिए ग्रेट निकोबार परियोजना के लिए उनकी स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति प्राप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया गया.
उनकी सहमति के बिना आगे बढ़ते हुए, परियोजना स्वदेशी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के साथ-साथ नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उल्लंघन करती है, जिनमें से दोनों पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं.
रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से भारत सरकार से ग्रेट निकोबार द्वीप पर 75,000 करोड़ रुपये की विकास परियोजना को रोकने का आह्वान किया गया है.
साथ ही यह भी सिफारिश की गई है कि इस क्षेत्र को जनजातीय रिजर्व घोषित किया जाए और शोम्पेन जनजाति को मूल अधिकार वापस दिए जाएं.