महाराष्ट्र के मुंबई से सिर्फ 55 किलोमीटर दूर ठाणे के शाहपुर तालुका के छह गांवों के आदिवासी, जिसमें ज्यादातर महिलाएं शामिल हैं, वो अपने पानी के हिस्से को मुंबई और ठाणे नगर निगमों को दिए जाने का जोरदार विरोध कर रहे हैं.
महिलाओं ने जोर देकर कहा कि ‘मानव निर्मित’ जल संकट के कारण उन्हें एक बर्तन पानी लाने के लिए रोजाना 12 से 15 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.
फुगले, कलमगांव, धसई, वेहोली ब्रि, बिरवाड़ी और अघई गांवों के आदिवासियों ने आरोप लगाया कि जल जीवन मिशन की 189 योजनाओं का पानी, जो उनके लिए है. उस पानी का पड़ोसी शहरों में आपूर्ति की जा रही है.
प्रदर्शनकारी महिलाओं ने मांग की है कि सरकार को सैकड़ों योजनाओं के माध्यम से पंप किए गए पानी की एक-एक बूंद का हिसाब देना चाहिए.
फुगले गांव की निवासी रुक्मिणी लोन ने कहा कि सभी कुएं और तालाब सूख गए हैं. पिछले तीन महीने से नलों में एक बूंद भी नहीं पानी नहीं आया है. एक टैंकर छह गांवों के लिए सप्ताह में दो-तीन बार अनियमित रूप से पानी लाता है.
रुक्मणी को अपने नौ लोगों के परिवार के लिए एक बर्तन पीने के पानी का इकट्ठा करने के लिए रोजाना करीब 8 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है.
कार्यकर्ता और श्रमजीवी संगठन के संस्थापक विवेक पंडित के मुताबिक, शाहपुर तालुका भावली योजना के पानी के उचित हिस्से से वंचित है, जिसका उद्देश्य इगतपुरी और नासिक से पानी की आपूर्ति करके 103 गांवों की प्यास बुझाना था.
विवेक पंडित ने आरोप लगाया कि ठेकेदार 189 योजनाओं में से 88 में काम नहीं कर रहे थे। जबकि 12 ठेकेदार काम करने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, चार योजनाएं मंजूरी के लिए वन्यजीव विभाग के पास लंबित हैं.
उन्होंने जल संकट से निपटने के तरीके पर चर्चा करने के लिए गंगामाई देवस्थान में प्रदर्शनकारी महिलाओं से मुलाकात की है. उन्होंने जिला परिषद पर बकाया 56 लाख रुपये के वाटर टैक्स को चुकाने में बीएमसी की विफलता पर गुस्सा व्यक्त किया.
आदिवासियों की मुश्किलें बढ़ाते हुए नासिक जिला परिषद ने भावली बांध योजना के संबंध में लंबित भुगतान, 5 करोड़ रुपये की कमी के कारण अतिरिक्त आपूर्ति रोक दी है.
वहीं जिला प्रशासन चुनाव आचार संहिता और प्यासे गांवों में पेयजल आपूर्ति के लिए पानी के टैंकर उपलब्ध कराने के लिए धन की कमी का हवाला देते हुए विरोध पर चुप रहा.