झारखंड में कथित भूमि घोटाले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) ने पाया है कि माफियाओं ने करीब 1800 एकड़ आदिवासी भूमि हड़प ली है. इसके लिए माफियाओं ने जमीन के कागजों में बदलाव करके ये काम किया है.
ईडी ने कहा कि रिकॉर्ड में हेराफेरी करके संपत्ति की प्रकृति बदलकर माफियाओं ने 1,800 एकड़ नहीं बेचने योग्य आदिवासी भूमि हड़प ली थी.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इस केस में जेल गए थे, जो फिलहाल जेल से बाहर हैं.
लोगों ने बताया कि फेडरल एजेंसी को भूमि हड़पने की कई शिकायतें मिली हैं और 3 हज़ार करोड़ रुपये की आपराधिक आय की भी पहचान की गई है.
यह मामला छोटा नागपुर काश्तकारी (CNT) अधिनियम के तहत गैर-बिक्री योग्य के रूप में नामित प्रमुख भूमि पार्सल को कथित रूप से हड़पने से संबंधित है. यह एक ऐसा कानून है जो आदिवासी और हाशिए के समुदायों के भूमि अधिकारों की रक्षा करने का प्रयास करता है.
कोलकाता में सर्किल ऑफिस और रजिस्ट्रार ऑफ एश्योरेंस (ROA) और झारखंड में सर्किल ऑफिस में गलत पहचान और भूमि रिकॉर्ड का उपयोग करके फर्जी काम किए गए.
एक ईडी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “सोरेन जैसे हाई-प्रोफाइल लोगों, कई नौकरशाहों और बिचौलियों की गिरफ्तारी सहित कार्रवाई करने के बाद हमें भूमि हड़पने की ऐसी और शिकायतें मिलीं. जांच के दौरान हमने पाया कि माफिया द्वारा इसी तरह से 1,800 एकड़ जमीन का सौदा किया गया था. हमारी टीम ने अनुमान लगाया है कि अपराध की कुल आय 3 हज़ार करोड़ है.”
अधिकारी ने कहा कि हम सभी शिकायतों की पुष्टि कर रहे हैं और आगे की जांच चल रही है.
सोरेन सहित कम से कम 25 लोगों को अब तक गिरफ्तार किया गया है.
एजेंसी ने दावा किया है कि भूमि हड़पने वालों और राजस्व कार्यालयों में उनके सहयोगियों ने 1932 तक के भूमि रिकॉर्ड में जालसाजी की है.
मुख्यमंत्री को 31 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था और 28 जून को रिहा कर दिया गया था.
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता के खिलाफ मार्च में अपने आरोप पत्र में ED ने दावा किया कि सोरेन ने खुद रांची में 8.86 एकड़ जमीन (अनुमानित 31 करोड़ रुपये की कीमत) अवैध रूप से हासिल की. जबकि उन्होंने आरोप को खारिज कर दिया.
पिछले साल अपनी तलाशी के दौरान एजेंसी ने एक आरोपी भानु प्रताप प्रसाद के परिसर से 17 मूल रजिस्टरों के साथ-साथ भारी मात्रा में संपत्ति के दस्तावेजों के 11 ट्रंक बरामद किए थे.
दरअसल, इससे पहले बिहार (जब झारखंड इसका हिस्सा था) में ज़मीनी संपत्तियों का पंजीकरण कोलकाता में आरओए में किया जाता था. यह 1991 तक जारी रहा. लेकिन इसके बाद बिहार और वर्तमान झारखंड में संपत्तियों का पंजीकरण संबंधित क्षेत्राधिकार वाले भूमि पंजीकरण कार्यालयों में होने लगा.
लेकिन एक दूसरे ईडी अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “आरोपियों ने कोलकाता से लक्षित ज़मीनी संपत्तियों के पुराने दस्तावेज़ बनाए और उन्हें आरओए में मूल रजिस्टर में रखा. फिर उन्होंने उन दस्तावेज़ों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त कीं और फिर एक-दूसरे की मिलीभगत से संपत्तियों का निपटान किया. उनके पास नकली स्टाम्प/सील थे जिसके ज़रिए उन्होंने ये नकली दस्तावेज़ बनाए.”