आंध्र प्रदेश के विज़ियानगरम ज़िले के लगभग 23 आदिवासी गाँव बाहरी दुनिया से बिलकुल कट गए हैं, क्योंकि उन्हें मैदानी इलाकों की बाहरी दुनिया से जोड़ने वाला इकलौता पुल साइक्लोन गुलाब के भेंट चढ़ गया.
गांवों के लोगों को अब अपनी रोज़ की ज़रूरतों के लिए मैदानी इलाकों तक जाने के लिए हर बार अपनी जान जोकिम में डालनी पड़ती है. सड़क तक पहुंचने के लिए उन्हें एक 10-15 फ़ीट गहरी खाई को पार करना पड़ता है, जिसके लिए वो पतले लकड़ी के लट्ठों का इस्तेमाल करते हैं.
साप्ताहिक हाटों से ज़रूरत का सामान खरीदना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.
सलूर मंडल में साइक्लोन गुलाब की वजह से हुए सड़क और संचार नेटवर्क को नुकसान ने लोगों की सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच को भी प्रभावित किया है. ग्रामीण वॉलंटियर्स को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का फ़ायदा आदिवासियों तक पहुंचाने में बहुत मुश्किल हो रही है.
यहां तक कि अधिकारियों को भी साइक्लोन से हुए नुकसान का जायज़ा लेने के लिए गांवों तक पहुंचने में दिक्कत आ रही है. एक वॉलंटियर, जी रमेश ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमें लाभार्थियों को साथ लेकर पहाड़ियों पर चढ़ना पड़ता है, क्योंकि वहीं पर बायोमेट्रिक के लिए मोबाइल सिग्नल मिलता है, ताकि आदिवासियों को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान किया जा सके, जो उनका अधिकार है.”
वॉलंटियर्स के ऐसा न करने पर आदिवासी लोगों को पेंशन और दूसरे सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं दिए जा सकेंगे. कुछ दूरदराज़ के इलाकों में वैसे भी मोबाइल सिग्नल नहीं मिलता, तो साइक्लोन की तबाही के बाद तो सिग्नल मिलना नामुमकिन है.
इन वॉलंटियर्स का कहना है कि एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी (आईटीडीए) को आदिवासियों की आर्थिक बेहतरी को सुनिश्चित करने के लिए एजेंसी इलाक़ों में सड़क और संचार नेटवर्क को मज़बूत करना चाहिए.
साइक्लोन के बाद तोनम और पट्टुचेन्नुरु के बीच की सड़क उफनती गोमुखी नदी में बह गई, जिससे 20 आदिवासी बस्तियों का बाहरी दुनिया से संपर्क टूट गया. डिगुवा मेंडांगी, सिखा परुवु, बूरजा, मावुदी, पगुलु चेन्नुरु और पट्टू चेन्नुरु बस्तियों के लोग अपनी रोज़ की जरूरतों के लिए दूसरी जगहों पर जाने के लिए पहले तोनम ग्राम पंचायत आना पड़ता है, क्योंकि उनके पास पक्की सड़कें नहीं हैं.
डिगुवा मेंडांगी गांव के गोपी के मुताबिक़ साइक्लोन में सड़क और मिनी-ब्रिज बह गए. इसलिए इन आदिवासियों को अपनी ज़रूरतों और मेडिकल इमरजेंसी के दौरान तोनम आना ही पड़ता है. दूसरी तरफ़ जाने के लिए लकड़ी के लट्ठों का उपयोग करके 10-15 फीट की खाई को पार करना इन आदिवासियों की मजबूरी है.
इनकी मांग है कि सरकार दूरदराज़ की बस्तियों में सड़क नेटवर्क को मज़बूत करे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ इन लोगों तक समय से पहुंचे. नहीं तो इन लोगों के लिए मुख्यधारा में शामिल होना बेहद मुश्किल है.