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राजस्थान: 71 आदिवासी बच्चों को जबरन ट्रांस्फ़र सर्टिफ़िकेट देकर स्कूल से निकाला गया

अक्टूबर में नौवीं कक्षा के 28 छात्रों को एक ही दिन में टीसी दिया गया. रिकॉर्ड में स्कूल छोड़ने का कारण बताया गया है – ‘कहीं और पढ़ें’ – जो ग़लत है. अभिभावकों का दावा है कि ऐसा इसलिए किया गया कि स्कूल का शत-प्रतिशत परिणाम का रिकॉर्ड बना रहे.

राजस्थान के उदयपुर ज़िले के गोराना गांव के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल के कई छात्रों के अभिभावकों का आरोप है कि महामारी के बीच प्रिंसिपल ने आदिवासी छात्रों को शिक्षा के उनके मौलिक अधिकार से वंचित करते हुए ट्रांस्फ़र सर्टिफ़िकेट जारी कर दिए.

कुछ अभिभावकों और छात्रों ने बुधवार को कलेक्टर से मुलाक़ात कर इसकी शिकायत की. उन्होंने अपनी शिकायत में कहा है कि छात्रों के पास पढ़ाई का और कोई ज़रिया नहीं है, क्योंकि उन्हें और कहीं एडमिशन नहीं मिला है.

इनका आरोप है कि नौवीं और दसवीं में पढ़ने वाले 71 आदिवासी छात्रों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, और पिछले दो शैक्षणिक सत्रों के दौरान उनके घर पर ट्रांस्फ़र सर्टिफ़िकेट भेजे गए.

खास बात यह है कि अक्टूबर में नौवीं कक्षा के 28 छात्रों को एक ही दिन में टीसी दिया गया. रिकॉर्ड में स्कूल छोड़ने का कारण बताया गया है – ‘कहीं और पढ़ें’ – जो ग़लत है. अभिभावकों का दावा है कि ऐसा इसलिए किया गया कि स्कूल का शत-प्रतिशत परिणाम का रिकॉर्ड बना रहे.

ज़िला शिक्षा अधिकारी पुष्पेंद्र शर्मा ने मीडिया को बताया कि शिकायत की जांच होगी, और मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी को रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है. उन्होंने यह भी कहा कि पिछले कुछ सालों में गोराना स्कूल में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है.

मानवाधिकार कार्यकर्ता गौरव नागड़ा का कहना है कि किसी भी छात्र या माता-पिता ने टीसी के लिए आवेदन नहीं किया था. ऐसे में टीसी दिया जाना ग़लत है. इससे न सिर्फ़ बच्चों को उनके शिक्षा के अधिकार से वंचित किया जा रहा है, बल्कि फ़र्ज़ी सरकारी रिकॉर्ड भी बनाए जा रहे हैं.

छात्रों और अभिभावकों ने कहा है कि अगर तीन दिनों में कार्रवाई नहीं की गई तो वो धरने पर बैठेंगे.

इस बीच स्कूल के प्रिंसिपल गौतम गुप्ता का कहना है कि उनपर लगे सारे इलज़ाम ग़लत हैं. वो कहतें हैं, “हम किसी को भी उनके आवेदन के बिना टीसी नहीं दे सकते. हमारे यहां ग्यारहवीं में आर्ट्स की पढ़ाई होती है, तो जो बच्चे साइंस पढ़ना चाहते हैं वो स्कूल छोड़ देते हैं. इसके अलावा नौवीं के कई बच्चे आसान पढ़ाई के लिए स्टेट बोर्ड के स्कूलों में शिफ़्ट हो जाते हैं.”

इसके अलावा गुप्ता का दावा है कि लगातार 15 दिन की छुट्टी लेने पर बच्चे का नाम स्कूल से काटा जा सकता है.

(फ़ोटो प्रतीकात्मक है)

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