तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले से कून्नूर में एक दर्दनाक घटना सामने आई है. यहां हाथी के हमले में एक 34 वर्षीय आदिवासी व्यक्ति की मौत हो गई.
मृतक की पहचान एल. विजयकुमार के रूप में हुई है. विजयकुमार कून्नूर के सेम्बुक्करई आदिवासी बस्ती में रहते थे और अडरली एस्टेट में मजदूरी का काम करते थे.
कैसे घटी घटना ?
रविवार रात करीब 10 बजे विजयकुमार अपने काम से घर लौट रहे थे. पुलिस के अनुसार, विजयकुमार अडरली एस्टेट बस स्टॉप पर बस से उतरे और वहां से अपने घर के लिए पैदल रवाना हुए.
उनका घर वहां से करीब पांच किलोमीटर दूर था. रास्ते में अंधेरा अधिक होने के कारण विजयकुमार को संभवतः हाथी दिखाई नहीं दिया जिससे यह हादसा हुआ.
घटना के बाद एक एस्टेट सुपरवाइजर ने विजयकुमार का शव देखा और इसकी सूचना पुलिस को दी.
मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम ने छानबीन के दौरान हाथी के पैरों के निशान देखकर हाथी के हमले से विजयकुमार की मौत होने की पुष्टी की.
वन विभाग ने घटना के बाद क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ाते हुए 10 कर्मचारियों को तैनात किया है.
विजयकुमार के शव को पोस्टमार्टम के लिए कून्नूर के सरकारी अस्पताल ले जाया गया. इसके बाद शव को उनके परिवार को सौंप दिया गया.
प्रशासन ने विजयकुमार की पत्नी को अंतरिम सहायता राशि के रूप में 50,000 रुपये प्रदान किए हैं.
बढ़ती घटनाएं और प्रशासन की उदासीनता
मानव-हाथी संघर्ष से पहले भी कितने आदिवासियों की जान जा चुकी है.
हाल ही में फरवरी के अंत में केरल के कन्नूर ज़िले के अरलम फार्म इलाके में भी इसी तरह का हादसा हुआ था, जिसमें एक आदिवासी दंपति की हाथी के हमले में जान चली गई थी.
चौंकाने वाली बात यह है कि वर्ष 2025 में यानि सिर्फ 2 महीने के अंदर-अंदर जंगली हाथियों के हमले में 13 लोग मारे जा चुके हैं. इन 13 लोगों में से 11 आदिवासी समुदाय के थे.
इनमें वे लोग भी शामिल थे जो जंगल में उपज इकट्ठा करने जैसे दैनिक कार्य के लिए जंगल गए थे और जंगली जानवरों के व्यवहार को समझने का पारंपरिक ज्ञान रखते थे.
विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल में हाथियों की बढ़ती आवाजाही के पीछे कई कारण हैं. इसमें जंगलों की भूमि का कम होना, भोजन की कमी और उनके प्राकृतिक आवास में दखल शामिल है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि वन विभाग की निष्क्रियता और लापरवाही इन घटनाओं को बढ़ावा दे रही है.
वन अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने आदिवासी बस्तियों में जागरूकता अभियान चलाए हैं और समुदाय के सदस्यों से सतर्क रहने और रात के समय जंगल में न जाने का आग्रह किया है.
हालांकि, इन उपायों के बावजूद आदिवासी लोगों में मौतों का बढ़ता आंकड़ा प्रशासन की नाकामी को दर्शाता है.
क्या प्रशासन और सरकारी अफसरों के लिए एक इंसान की जान इतनी सस्ती है?
प्रशासन को इस गंभीर समस्या पर ध्यान केंद्रित करते हुए आदिवासी समुदायों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके.