HomeAdivasi Dailyआदिवासी ना हिंदू थे, ना हैं और ना होंगे - हेमंत सोरेन

आदिवासी ना हिंदू थे, ना हैं और ना होंगे – हेमंत सोरेन

हेमंत सोरेन ने कहा कि देश की जनगणना में आदिवासियों के लिए कोई कॉलम ही नहीं रखा जाता है. पांच-छह धर्मों को लेकर यह बताने की कोशिश की गई है कि उन्हें इन्हीं में से एक को चुनना होगा. आदिवासियों को उनका धर्म या पहचान चुनने का विकल्प ही नहीं दिया जा रहा है.

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत ने कहा है कि भारत के सभी आदिवासी को हिंदू मान लेना ग़लत है. हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ़्रेंस (Harvard Conference) में बोलते हुए हेमंत सोरेन ने यह बात कही है.  उन्होंने कहा कि आदिवासी कभी न हिंदू थे, न हैं.

हेमंत सोरेन ने आगे कहा, “आदिवासी समाज प्रकृति पूजक है और इनका अलग रीति-रिवाज है. सदियों से आदिवासी समाज को दबाया जाता रहा है, कभी इंडिजिनस, कभी ट्राइबल तो कभी अन्य के तहत पहचान होती रही.” सीएम ने कहा कि इस बार की जनगणना में आदिवासी समाज के लिए अन्य का भी प्रावधान हटा दिया गया है.

जनगणना में आदिवासियों को जगह नहीं

हेमंत सोरेन ने कहा कि देश की जनगणना में आदिवासियों के लिए कोई कॉलम ही नहीं रखा जाता है. पांच-छह धर्मों को लेकर यह बताने की कोशिश की गई है कि उन्हें इन्हीं में से एक को चुनना होगा. आदिवासियों को उनका धर्म या पहचान चुनने का विकल्प ही नहीं दिया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने केंद्र से आग्रह किया है कि आगामी जनगणना में आदिवासी समूह के लिए अलग कॉलम होना चाहिए, जिससे वह अपनी परंपरा और संस्कृति को संरक्षित कर आगे बढ़ सकें. 

सरना धर्म की माँग कई राज्यों में हो रही है.

झारखंड की हेमंत सोरेन आदिवासियों की अलग धार्मिक पहचान को मान्यता देने के लिए विधानसभा में एक प्रस्ताव पास कर चुकी है. इस प्रस्ताव में आदिवासियों के लिए अलग धार्मिक पहचान देने की माँग की गई है. 

झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ और कई राज्य जहां आदिवासी आबादी है, वहाँ पर सरना धर्म या फिर दूसरे आदिवासी धर्मों को मान्यता देने की माँग हो रही है.

आदिवासी संगठन अलग धार्मिक पहचान की माँग करते हुए कहते हैं कि जिस आधार पर अन्य धर्मों को मान्यता मिली है, उसी आधार पर सरना धर्म को भी पहचान मिलनी चाहिए.

ज़बरदस्ती ना थोपी जाए हिंदू पहचान

आदिवासी संगठनों का कहना है कि 1941 तक भारत की जनगणना में आदिवासियों की अलग से पहचान दर्ज की जाती थी. लेकिन उसकी बाद हुई जनगणनाओं में उनकी पहचान का कॉलम ही हटा दिया गया है. 

उसके बाद जो आदिवासी धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन गए हैं, या फिर कोई और धार्मिक पहचान अपना चुके हैं, उन्हें छोड़ कर सभी को हिंदू मान लिया जाता है. 

झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल की सरकार ने भी यह माँग की है कि सरना धर्म को अलग से पहचान दी जानी चाहिए. इस सिलसिले में राज्य सरकार ने केन्द्र सरकार को सिफ़ारिश भेजी है. 

एंथ्रोपोलोजिस्ट और जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता करमा उराँव के अनुसार सरना धर्म या आदिवासी धर्म की माँग का एक मज़बूत दार्शनिक आधार है.

वो कहते हैं जिस तरह से अन्य धर्मों में अपने रीति रिवाज़ उसी तरह से आदिवासी समुदायों की अपनी आस्था और रीति रिवाज़ हैं.

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