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टाइगर रिज़र्व फ़ॉरेस्ट में आदिवासियों ने पेश किए दावे, 10 गाँव के लोग शामिल

यह क़ानून उनके पारंपरिक अधिकारों में जंगलों के अंदर स्थित मंदिरों में पूजा करना, वन क्षेत्रों में मवेशी चराना, शहद और अन्य लघु वन उपज एकत्र करना और जंगलों के अंदर जल निकायों का उपयोग करना जैसे अधिकारों को स्वीकार करता है.

तमिलनाडु के इरोड ज़िले के आदिवासियों ने वन अधिकार अधिनियम के तहत प्रशासन को अपने दावे पेश किए हैं. सत्यमंगलम टाइगर रिजर्व (STR) में 10 बस्तियों के ग्राम सभा सदस्यों ने बुधवार को यहां उप-मंडल स्तर की समिति के प्रमुख गोबिचेट्टीपलायम राजस्व मंडल अधिकारी पलानीदेवी को दावे पेश किए.

इसमें सामुदायिक अधिकार (CR) और सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों की मांग की गई है. ये अधिकार वन संसाधनों के उपयोग, प्रबंधन और संरक्षण के अधिकार को मान्यता देते हैं.

वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act), 2006 अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों में वन अधिकारों को मान्यता देता है. जो आदिवासी पीढ़ियों से जंगलों में रह रहे हैं यह क़ानून जंगल और ज़मीन पर उनके अधिकार को स्वीकार करता है. 

यह क़ानून उनके पारंपरिक अधिकारों में जंगलों के अंदर स्थित मंदिरों में पूजा करना, वन क्षेत्रों में मवेशी चराना, शहद और अन्य लघु वन उपज एकत्र करना और जंगलों के अंदर जल निकायों का उपयोग करना जैसे अधिकारों को स्वीकार करता है.  

जिन 10 आदिवासी बस्तियों के लोगों ने दावा पत्र पेश किया है उनमें से ज़्यादातर उरली और कुरूम्बा आदिवासी हैं. इन आदिवासियों ने दावा प्रपत्र, नक्शे, पिछले परमिट,के साथ  ग्राम सभा से अनुमोदन के लँगड़ों के साथ अपने दावा पत्र प्रशासन के सामने पेश किये हैं.

दावा पत्र पेश करने वालों में  कालीथिंबम, मवनाथम, बेजलट्टी, इतराई, थडासलाट्टी, रामरानाई, कोडमपल्ली, अल्लापुरडोडी, बालापादुगई और शोलाकार्डोद्दी  गाँवों के लोग शामिल थे. प्रशासन को पेश किए गए दावों की जांच ज़िला स्तर पर होगी. जाँच करने वाली समिति ज़िला कलेक्टर की अध्यक्षता में काम करती है.

तलवाड़ी अधिवासीगल मुनेत्र संगम (TAMS) और ट्राइबल पीपल एसोसिएशन के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में संबंधित ग्राम सभाओं के अध्यक्षों, सचिवों और सदस्यों द्वारा फॉर्म जमा किए गए. TAAS के अध्यक्ष बालन ने कहा”यह पहली बार है कि राज्य में सीएफआर के लिए दावा प्रस्तुत किया गया है”.  

उन्होंने कहा, “एफआरए वनों के संरक्षण में हमारे पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने का एक उपकरण है और यह हमें अपनी जड़ों से फिर से जुड़ने और जंगलों में एक स्थायी जीवन जीने में मदद करेगा”. उन्होंने पत्रकारों से कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सरकार दावा प्रस्तुत करने पर सकारात्मक कदम उठाएगी.

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया) में कम्युनिटीज के कॉर्डिनेटर स्टीफन अजय ने कहा “वनों और आदिवासी लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए सीएफआर का कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है. यह मालिकाना हक़ और अपनेपन की भावना को पुष्ट करता है. इसके साथ ही संसाधनों के सतत उपयोग का मार्ग प्रशस्त करता है.” 

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