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मणिपुर में 43 साल में पहली बार ‘मजिस्ट्रेट’ सेना के तलाशी अभियान में शामिल रहेंगे

सेना ने पहले छह जिलों में ऑपरेशन के दौरान 19 कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को शारीरिक रूप से उपस्थित रहने का अनुरोध किया है. पत्र में कहा गया है कि सेना ने केवल इन जिलों के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेटों से अनुरोध किया है क्योंकि अन्य जिलों में जहां अफस्पा लागू है, वहां तलाशी अभियान चलाने के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेट की जरूरत नहीं है.

करीब 43 साल के बाद मणिपुर में मजिस्ट्रेट सैन्य तलाशी अभियान में शामिल हुए. राज्य के कुछ हिस्सों से सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (AFSPA), 1958 हटाए जाने के साथ सेना 43 वर्षों में पहली बार कार्यकारी मजिस्ट्रेटों की उपस्थिति में हिंसा प्रभावित राज्य में अभियान चलाएगी.

मणिपुर के मुख्य सचिव विनीत जोशी ने बुधवार को एक पत्र में हिंसा को नियंत्रित करने और 3 मई से दंगों के दौरान छीने गए हथियारों को बरामद करने के लिए सेना और असम राइफल्स द्वारा चलाए जा रहे तलाशी अभियान का हिस्सा बनने के लिए कांकपोकपी, इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, काकचिंग, बिष्णुपुर और जिरीबाम जिलों के डिप्टी कमिश्नर से कार्यकारी मजिस्ट्रेट नामित करने को कहा है.

पत्र में कहा गया है कि कार्यकारी मजिस्ट्रेटों की आवश्यकता है क्योंकि छह जिलों के कई पुलिस थानों के तहत AFSPA को हटा लिया गया है.

सेना ने पहले छह जिलों में ऑपरेशन के दौरान 19 कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को मौक़े पर उपस्थित रहने का अनुरोध किया है. पत्र में कहा गया है, “सेना ने केवल इन जिलों के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेटों से अनुरोध किया है क्योंकि अन्य जिलों में जहां अफस्पा लागू है, वहां तलाशी अभियान चलाने के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेट की जरूरत नहीं है.”

क्या है अफस्पा?

मणिपुर को 1980 में AFSPA के तहत एक अशांत क्षेत्र घोषित किया गया था क्योंकि उग्रवाद ने राज्य को उथल-पुथल की ओर धकेल दिया था.

अफस्पा केवल अशांत क्षेत्रों में ही लागू होता है. यह कानून “अशांत क्षेत्रों” में तैनात सशस्त्र बलों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) को कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने के लिए बेलगाम शक्ति देता है.

ऐसे इलाकों में सुरक्षाबलों के पास बिना वारंट के तलाशी लेना और किसी को भी गिरफ्तार करने की ताकत देता है और कई मामलों में बल का भी प्रयोग किया जाता है.

पूर्वोत्तर राज्य ने AFSPA को वापस लेने के लिए कड़ा विरोध देखा है. मणिपुर ही अफस्पा को लेकर कई विरोध प्रदर्शन का गवाह बना है. विशेष रूप से 2004 में थंगजाम मनोरमा की मृत्यु के बाद, जिसे कथित तौर पर “आतंकवाद विरोधी अभियान” के दौरान सेना द्वारा मार दिया गया था.

वहीं दिसंबर 2021 में पड़ोसी नागालैंड के मोन जिले के ओटिंग गांव में असम राइफल्स द्वारा 14 ग्रामीणों की हत्या के बाद AFSPA को वापस लेने के लिए आंदोलन तेज़ हो गया.

केंद्र ने पिछले साल मार्च में मणिपुर के 19 पुलिस स्टेशनों के तहत आने वाले क्षेत्रों से कानून और व्यवस्था की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार का हवाला देते हुए AFSPA को वापस लेने का फैसला किया था. यह आदेश 1 अप्रैल, 2022 से लागू हुआ था.

इसके अलावा असम के अधिकांश हिस्सों से भी अफस्पा को वापस ले लिया गया था. और नागालैंड के सात जिलों के 15 पुलिस थानों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों से भी अफस्पा हटा दिया गया.

पहाड़ी और घाटी दोनों जिलों में तलाशी अभियान जारी

मणिपुर के मुख्य सचिव के पत्र में आगे कहा गया है कि “जनता के बीच गलतफहमी को दूर करने” के लिए पहाड़ी जिलों- चुराचंदपुर, फ़ेरज़ावल, टेंग्नौपाल, चंदेल और कमजोंग के डिप्टी कमिश्नर को भी तलाशी अभियान के दौरान सेना के साथ कार्यकारी मजिस्ट्रेट आवंटित करने की सलाह दी गई है.

उन्होंने कहा, “राज्य में शांति बहाल करने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो घाटी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में समान रूप से तलाशी अभियान चलाया जाएगा.”

सेना ने बुधवार को पहाड़ी और घाटी दोनों जिलों में संयुक्त तलाशी अभियान शुरू किया ताकि इलाके में दखल देकर हिंसा पर काबू पाया जा सके और छीने गए हथियारों की बरामदगी की जा सके.

हिंसा की आग अभी भी सुलग रही

मणिपुर में रुक-रुक कर फिर से हो रही हिंसा केंद्र सरकार और बीजेपी के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गई है. राज्य में गृह मंत्री अमित शाह के हालिया दौरे और कम से कम 15 दिनों तक शांति को एक मौका देने के आह्वान के बाद भी हिंसा जारी है.

रविवार शाम को पश्चिम इंफाल जिले के इरोइसेंबा इलाके में भीड़ ने एक एम्बुलेंस को रास्ते में रोक उसमें आग लगा दी. जिससे उसमें सवार आठ वर्षीय बच्चे, उसकी मां और एक अन्य रिश्तेदार की मौत हो गई.

दरअसल, गोलीबारी की एक घटना के दौरान बच्चे के सिर में गोली लग गई थी और उसकी मां और एक रिश्तेदार उसे इंफाल स्थित अस्पताल ले जा रहे थे.

वहीं राज्य सरकार के सुरक्षा सलाहकार ने बुधवार को जानकारी दी कि राज्य के हिंसा प्रभावित इलाकों में पिछले 24 घंटों के दौरान करीब 57 हथियार और 323 गोला-बारूद बरामद किए गए हैं. उन्होंने बताया कि इसके साथ ही बरामद किए गए कुल हथियारों की संख्या 868 और गोला-बारूद की संख्या 11 हज़ार 518 हो गई है.

बुधवार को ही मणिपुर के कुकी समाज के लोगों ने दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह के घर के बाहर प्रदर्शन किया. गृह मंत्री के घर के बाहर प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना था कि अमित शाह ने कहा था कि राज्य में शांति लौटेगी इसलिए हम उनसे मिलने आए हैं.

प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि कुकी समाज के खिलाफ आज भी स्टेट फोर्स हिंसा कर रही है इसलिए शांति की मांग करते हुए हम गृहमंत्री से शांतिपूर्ण तरीके से मिलने आए हैं.

प्रदर्शनकारियों में मणिपुर के कुकी, जोमी, हमार और मिजो समुदाय के लोग शामिल थे. इनका कहना था कि राज्य में हमारे परिवार के सदस्यों की रोजाना हो रही हत्याओं के विरोध में हम प्रदर्शन कर रहे हैं. हम अपनी बहनों और दोस्तों से अपील करते हैं कि वे आएं और हमारे समुदाय पर किए गए अत्याचारों का विरोध दर्ज कराएं. 

गृहमंत्री अमित शाह ने मणिपुर में तीन मई को हुई हिंसा के बाद प्रदेश का दौरा किया था. उन्होंने अलग-अलग समुदायों के साथ बैठक कर राज्य में शांति बहाली की अपील की थी. हिंसा की जांच के लिए गुवाहाटी हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग का गठन किया था.

मणिपुर में कैसे हुई थी हिंसा की शुरुआत?

मणिपुर में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने की मांग तेज़ हो गई थी. जिसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को इस मांग पर विचार करने का आदेश दिया है.

लेकिन हिंसा की आग आदिवासियों द्वारा गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिए जाने के विरोध में 3 मई को एकजुटता मार्च निकालने के दौरान भड़की. इसके बाद एक हफ्ते से ज्यादा समय तक मणिपुर में हिंसक झड़पें होती रहीं

राज्य के छात्र संगठन ने तीन मई को इसी मांग के खिलाफ मार्च निकाला था. ये मार्च चुरचांदपुर जिले के तोरबंग इलाके में हुआ था. इसी दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसा शुरू हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. हालात इतने बिगड़ गए कि राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी. बाद में सेना और पैरामिलिट्री फोर्स को तैनात किया गया.

मैतेई समुदाय की क्या है मांग?

दरअसल, मणिपुर में एक कानून है जिसके तहत आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं. इसके तहत पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं. क्योंकि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते.

जबकि, नागा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में जाकर रह सकते हैं. मैतेई और नागा-कुकी के बीच विवाद की यही असल वजह है. इसलिए मैतेई ने भी खुद को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी.

(Photo Credit: PTI)

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