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महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में बुज़ुर्ग आदिवासी की हत्या

गढ़चिरोली में पुलिस का प्रभाव बढ़ रहा है और माओवादी कमजोर हो रहे हैं. लेकिन इस हत्या ने दिखाया कि वे अब भी लोगों में डर बनाए रखना चाहते हैं.

महाराष्ट्र के गढ़चिरोली ज़िले में माओवादियों ने एक बुजुर्ग आदिवासी किसान की हत्या कर दी. घटना छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे जुव्वी गांव की है.

देर रात माओवादियों ने किसान को घर के बाहर बुलाया इसके बाद गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी गई.

हत्या के पीछे क्या वजह थी

पुलिस को अभी हत्या की असली वजह नहीं पता चली है. लेकिन इसे माओवादियों की हताशा का नतीजा बताया जा रहा है.

हाल ही में इस क्षेत्र में तीन नए पुलिस पोस्ट बनाए गए हैं. इससे माओवादियों की गतिविधियों पर असर पड़ा है.

यह इलाका माओवादियों के लिए बहुत अहम है. इसे अबूझमाड़ के माओवादी ठिकाने का प्रवेश द्वार माना जाता है.

सूत्रों के अनुसार, मृतक आदिवासी किसान का बेटा एटापल्ली के एक कॉलेज में पढ़ाता है और उसकी बहू पुलिस कांस्टेबल है.

पुलिस को लगता है कि माओवादियों ने गलती से गलत व्यक्ति को मार दिया.

इसके अलावा पुलिस को यह भी शक है कि हाल ही में गांव में हुई पुलिस कार्रवाई से जोड़कर उन्होंने इस किसान को अपना निशाना बनाया.

नए पुलिस स्टेशन्स खुलने से माओवादी परेशान

गढ़चिरोली के एसपी नीलोत्पल ने कहा कि माओवादी कमजोर हो रहे हैं. उनका जनसमर्थन कम हो रहा है.

उन्होंने बताया कि इलाके में तीन नए पुलिस पोस्ट बनाए गए हैं. इनमें से एक पोस्ट कावंडे में है जो जुव्वी से 20 किलोमीटर दूर है. पेंगुंडा पोस्ट जुव्वी से 6 किलोमीटर की दूरी पर है. नेलगुंडा पोस्ट 12 किलोमीटर दूर है.

इन जगहों पर पोस्ट खुलने के कारण माओवादी अपने ठिकाने बदलने पर मजबूर हैं. उनके लिए छत्तीसगढ़ जाने के रास्ते भी बंद हो रहे हैं.

माओवादियों का तरीका नहीं

पुलिस के मुताबिक, हत्या के पीछे भामरागढ़ लोकल ऑर्गेनाइजेशन स्क्वॉड का हाथ हो सकता है. शव पर कोई चोट के निशान नहीं मिले हैं.

हत्या गमछे से गला घोंटकर की गई है. आमतौर पर माओवादी हत्या के बाद पर्चे या पोस्टर छोड़ते हैं. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ.

गांवों में बढ़ रहा पुलिस का असर

सुरक्षा बलों का कहना है कि माओवादियों की ताकत कम हो रही है. ‘जनताना सरकार’ कमजोर पड़ रही है.

हाल ही में 38 गांवों ने ‘गांवबंदी योजना’ अपनाई है. इन गांवों ने माओवादियों के प्रवेश पर रोक लगा दी है.

ग्रामीणों ने 22 भरमार बंदूकें पुलिस को सौंपी हैं. इसके अलावा 1,300 से ज्यादा तीर भी दिए गए हैं. माओवादी इन तीरों का इस्तेमाल स्पाइक होल ट्रैप में करते थे.

गड़चिरोली में पुलिस का असर बढ़ रहा है और माओवादी कमजोर हो रहे हैं. लेकिन इस हत्या ने दिखाया कि वे अब भी लोगों में डर बनाए रखना चाहते हैं.

पहले भी हुईं ऐसी हत्याएं

फरवरी में भी ऐसी ही एक घटना हुई थी. जब भामरागढ़ पंचायत समिति के पूर्व उपाध्यक्ष सुखराम मंडावी की हत्या कर दी गई थी.

इस ताजा हत्या ने इलाके में फिर डर का माहौल बना दिया है.

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