ओडिशा में सी-सेक्शन (सिजेरियन) डिलीवरी के बढ़ते मामलों को लेकर चिंता जताई जा रही है लेकिन राज्य के आदिवासी बहुल जिलों में अभी भी महिलाएं नॉर्मल डिलीवरी को प्राथमिकता दे रही हैं.
आंकड़ों के मुताबिक, इन जिलों में सी-सेक्शन डिलीवरी की संख्या बाकी हिस्सों की तुलना में काफी कम है.
आदिवासी जिलों में कम सी-सेक्शन डिलीवरी
मलकानगिरी ज़िले में 2023-24 के दौरान प्राइवेट अस्पतालों में सिर्फ 10 सी-सेक्शन डिलीवरी हुईं, जबकि 2022-23 में यह संख्या 11 थी और 2024-25 में अब तक 9 मामले सामने आए हैं.
इसी तरह गजपति ज़िले में 2022-23 और 2023-24 दोनों वर्षों में 83-83 सी-सेक्शन डिलीवरी हुई, जबकि कोरापुट में 2022-23 में 200 और 2023-24 में 124 सिजेरियन डिलीवरी हुईं.
कंधमाल जिले में 2022-23 में 104, 2023-24 में 163 और 2024-25 में 115 सिजेरियन ऑपरेशन डिलीवरी हुई. झारसुगुड़ा जिले में भी 2022-23 में 114, 2023-24 में 224 और 2024-25 में 108 मामले दर्ज किए गए.
पूरे राज्य में बढ़ रहा सी-सेक्शन का चलन
राज्य में कुल नॉर्मल डिलीवरी का प्रतिशत 2022-23 में 69.46% था, जो 2023-24 में घटकर 66.91% रह गया. वहीं सी-सेक्शन डिलीवरी का आंकड़ा 30.53% से बढ़कर 33.08% हो गया.
ओड़िशा में 2022-23 में संस्थागत (अस्पताल में) 6,00,740 डिलीवरी हुईं. इनमें से 1,83,443 सी-सेक्शन डिलीवरी थीं.
2023-24 में 5,91,185 संस्थागत डिलीवरी में से 1,95,578 सिजेरियन डिलीवरी थीं.
दिलचस्प बात यह है कि प्राइवेट अस्पतालों में सी-सेक्शन की संख्या तेजी से बढ़ी है. 2022-23 में जहां 77.46% सिजेरियन प्राइवेट अस्पतालों में हुए थे. वहीं 2023-24 में यह आंकड़ा 81% तक पहुंच गया.
इसके मुकाबले सरकारी अस्पतालों में यह दर 17.69% से मामूली बढ़कर 18.17% रही.
आदिवासी समुदाय नार्मल डिलीवरी क्यों पसंद करता है?
पूर्व स्वास्थ्य सेवा निदेशक और वरिष्ठ गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. सेबा मोहापात्रा के अनुसार आदिवासी महिलाओं में नार्मल डिलीवरी को लेकर खास रुचि देखी जाती है.
इसका कारण उनके पारंपरिक विश्वास और मज़बूत सामाजिक सहयोग प्रणाली है.
उन्होंने कहा, “आदिवासी इलाकों में यह धारणा मज़बूत है कि प्राकृतिक प्रसव से मां और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य बेहतर रहता है. इसके अलावा महिलाएं प्रसव पीड़ा को सहने में सक्षम होती हैं और उनके पास परिवार और समुदाय का अच्छा सहयोग भी होता है.”
एम्स (AIIMS) के गायनेकोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. सौभाग्य जेना ने बताया कि आदिवासी क्षेत्रों में निजी अस्पतालों की संख्या बहुत कम है इसलिए भी सिजेरियन मामलों की संख्या कम रहती है. उन्होंने कहा, “इन जिलों की महिलाएं ज़्यादा ज़रूरी होने पर आसपास के शहरों या दूसरे राज्यों में इलाज कराने जाती हैं.”
सरकार की चिंता और उपाय
फैमिली वेलफेयर विभाग की निदेशक डॉ. संजुक्ता साहू ने निजी अस्पतालों में बढ़ते सी-सेक्शन डिलीवरी पर चिंता जताई.
उन्होंने कहा, “हमने गांवों में प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को तैनात किया है जो महिलाओं की मदद कर रहे हैं और उन्हें नार्मल डिलीवरी के लिए तैयार कर रहे हैं. आदिवासी ज़िलों में निजी अस्पतालों की कमी के चलते लोग सरकारी अस्पतालों पर निर्भर हैं जहां नार्मल डिलीवरी को प्राथमिकता दी जाती है.”
गौरतलब है कि ओडिशा 2020-21 और 2021-22 में सी-सेक्शन डिलीवरी की सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज करने वाला राज्य था.
निजी अस्पतालों में 10% की बढ़ोतरी को देखते हुए सरकार ने इन डिलीवरी की जांच के लिए ऑडिट कराने का फैसला किया था.
Image is for representation purpose only.