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आंध्र प्रदेश : सरकारी भूमि पर अतिक्रमण के खिलाफ आदिवासियों ने किया प्रदर्शन

विभिन्न आदिवासी संगठनों की संयुक्त कार्रवाई समिति (JAC) ने अराकू घाटी में 400 और पडेरू में 650 ऐसे अवैध ढांचों की पहचान की है.

आदिवासी लोगों ने आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जिला प्रशासन से अराकू घाटी और पडेरू जिला मुख्यालय में गैर-आदिवासियों द्वारा बनाए गए अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू किया है.

विभिन्न आदिवासी संगठनों की संयुक्त कार्रवाई समिति (JAC) के नेतृत्व में कई संगठनों ने बुधवार को अराकू घाटी की मुख्य सड़क पर जुलूस निकाला और मांग की कि गैर-आदिवासी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, जिन्होंने अराकू घाटी की मुख्य सड़क पर अवैध रूप से एक व्यावसायिक इमारत खड़ी कर ली है.

जेएसी के संयोजक रामा राव डोरा ने घोषणा की, “हम निर्माण को ध्वस्त करने की मांग करने वाली याचिका प्रस्तुत करने के लिए शनिवार को एएसआर जिला कलेक्टर से मिलेंगे. अगर वह कोई कार्रवाई नहीं करते हैं तो हम अराकू घाटी, पडेरू और जिले के अन्य हिस्सों में अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू करेंगे.”

उन्होंने सरकारी अधिकारियों पर इमारत को बिजली कनेक्शन और टैक्स असेसमेंट नंबर देने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि जबकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि गैर-आदिवासियों के नाम पर ऐसा निर्माण 1/70 अधिनियम के तहत अवैध है.

उन्होंने कहा कि जेएसी ने अराकू घाटी में 400 और पडेरू में 650 ऐसे अवैध ढांचों की पहचान की है.

डोरा ने सरकारी अधिकारियों के एक वर्ग पर गैर-आदिवासी लोगों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया. उन्होंने बताया कि जब अधिकारी अराकू में एक व्यापारी के अवैध ढांचों को गिराने गए तो स्थानीय टीडी नेता और तहसीलदार कार्यालय के कर्मियों ने तोड़फोड़ में बाधा डाली.

जेएसी नेता ने बताया कि जनवरी 2022 में आदिवासी कल्याण विभाग के सचिव कांतिलाल दांडे ने अनुसूचित क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए एक सक्रिय कदम उठाया था, जिसमें कलेक्टरों और आईटीडीए परियोजना अधिकारियों को अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासी भूमि की सुरक्षा के बारे में परिचालन दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए थे.

दांडे ने बताया कि कड़े आदिवासी भूमि संरक्षण कानून लागू होने के बावजूद गैर-आदिवासी अभी भी नवंबर 2021 तक अदालती मुकदमेबाजी के माध्यम से 1.5 लाख एकड़ की 61 प्रतिशत भूमि पर कब्जा बनाए हुए हैं.

वहीं डोरा ने कहा कि आदिवासियों के लिए भूमि ही आजीविका का एकमात्र स्रोत है. इसे हर जगह गैर-आदिवासी लोगों के अतिक्रमण या स्वामित्व से संरक्षित करने की जरूरत है.

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