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आंध्र प्रदेश ने कोटिया के लिए आदिवासी भाषाओं में किताबें निकालीं, तो ओडिशा प्रशासन हुआ नाराज़

विवादित क्षेत्र के अधिकांश गांवों में बच्चे उड़िया नहीं समझते. ओडिशा प्रशासन का कहना है की इस स्थिति का फायदा उठाते हुए, एपी सरकार बच्चों के बीच तेलुगु सीखने को लगातार प्रोत्साहित कर रही है.

आंध्र प्रदेश ने हाल ही में ओडिशा-आंध्र सीमा पर स्थित गांवों के निवासियों के लिए छह आदिवासी भाषाओं में किताबों की शुरुआत की है. लेकिन आंध्र प्रदेश के इस फैसले ने ओडिशा के कोरापुट प्रशासन को मानो एक वेकअप कॉल दिया है.

वो इसलिए कि आंध्र सरकार ने यह क़दम विवादित कोटिया ग्राम पंचायत के गांवों में उठाया है, जिससे यहां के स्कूलों में उड़िया भाषा को बैकसीट पर डाल दिया गया है.

कोटिया पंचायत में 400 से ज्यादा बच्चे 21 आंगनवाड़ी केंद्रों (एडब्ल्यूसी) में पढ़ते हैं. सरकारी मानदंडों के अनुसार, 3 से 5 साल की उम्र के बच्चे आंगनवाड़ी में अपनी मातृभाषा में पढ़ने के हकदार हैं. लेकिन इन केंद्रों में प्री-स्कूल के अधिकांश छात्रों को उड़िया में शिक्षण सामग्री के अभाव में स्थानीय कुई बोली में पढ़ाया जाता है.

इसका नतीजा ये है कि विवादित क्षेत्र के अधिकांश गांवों में बच्चे उड़िया नहीं समझते. ओडिशा प्रशासन का कहना है की इस स्थिति का फायदा उठाते हुए, एपी सरकार बच्चों के बीच तेलुगु सीखने को लगातार प्रोत्साहित कर रही है.

यही वजह है कि स्थानीय आदिवासी भाषाओं की पुस्तकों को जारी करने का आंध्र प्रदेश प्रशासन का यह फैसला इस दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि यह सभी भाषाएं ज्यादातर एपी-ओडिशा सीमा पर रहने वाले लोगों द्वारा ही बोली जाती हैं.

रिपोर्टों के अनुसार, एपी सरकार ने छह भाषाओं में किताबें जारी की हैं – सावरा, सुगली, आदिवासी उड़िया, कोंडा, कुई और कोया- सीमावर्ती गांवों में रहने वाले आदिवासी छात्रों के लिए. एपी सरकार का दावा है कि उनका यह कदम इलाके में साक्षरता बढ़ाना है, लेकिन कई लोग इसे ओडिशा की ओर अपने क्षेत्रीय दावों की दिशा में एक रणनीति के रूप में देख रहे हैं.

पुस्तक विमोचन के बाद, ‘अमो कोटिया’ के संयोजक गदाधर परिदा के नेतृत्व में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गुरुवार को कोटिया के कई गांवों का दौरा किया और आंगनवाड़ी केंद्रों में ओडिया शिक्षण की स्थिति की जानकारी ली.

उनका कहना है कि उन्होंने यह पाया कि बच्चे ज्यादातर कुई भाषा ही जानते हैं और केंद्रों में उड़िया में शिक्षण सामग्री की कमी है. उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी भाषाओं में पुस्तकों का विमोचन आंध्र प्रदेश का गेम प्लान है, इसलिए इस क्षेत्र में उड़िया का शिक्षण और भी ज्यादा जरूरी है.

पूछे जाने पर जिला शिक्षा अधिकारी राम चंद्र नाहक ने कहा कि विभाग कोटिया गांवों में प्राथमिक स्कूल स्तर से सभी उड़िया भाषा सामग्री उपलब्ध करा रहा है. इसके अलावा कुई भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति करने के लिए भी कहा गया है, जो उड़िया में पढ़ा सकते हैं और अनुवाद भी कर सकते हैं.

कोटिया पंचायत विवादित क्यों है?

कोटिया ग्राम पंचायत के 28 राजस्व गांवों में से 21 पर क्षेत्रीय नियंत्रण को लेकर आंध्र और ओडिशा के बीच दशकों से कड़ा संघर्ष चल रहा है. ओडिशा ने 1936 में अपने गठन के दौरान “गलती से” इन 21 गांवों का सर्वेक्षण नहीं किया था. उधर, आंध्र प्रदेश, जो 1955 में बना था, उसने भी उन गांवों का सर्वेक्षण नहीं किया, जिसके चलते यह गांव एक स्थायी विवाद का केंद्र बन गए.

1968 में, ओडिशा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और आरोप लगाया कि आंध्र प्रदेश उनकी सीमा के कुछ गांवों में गलत तरीके से अतिक्रमण कर रहा है. कोर्ट ने दिसंबर 1968 में एक आदेश पारित किया जिसमें कोटिया ग्राम पंचायत के 21 गांवों में पार्टियों के बीच यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया गया था.

हालांकि, विवाद पिछले साल फरवरी में गहरा गया जब आंध्र प्रदेश सरकार ने कोटिया ग्राम पंचायत के तहत फातुसिनेरी गांव में पंचायत चुनाव कराए. उसी महीने, ओडिशा ने अदालत की अवमानना ​​याचिका दायर की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उल्लंघन पर आंध्र प्रदेश के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी.

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