HomeAdivasi Dailyअरुणाचल की जनजातियों पर वेबसाइट के बहाने अमरीका ने चीन को छेड़ा

अरुणाचल की जनजातियों पर वेबसाइट के बहाने अमरीका ने चीन को छेड़ा

विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर अमेरिकी दूतावास के डेप्युटी चीफ ब्रायन हीथ ने अरुणाचल प्रदेश की 17 जनजातियों पर बने ऑडियो-विजुअल डॉक्युमेंटेशन और वेबसाइट को लॉन्च किया. उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर भारत में जनजातियों (indigineous groups) की 3000 साल पुरानी सांस्कृतिक और जीवन शैली, परंपराएं, भारत की समृद्ध संस्कृति, समाज और इतिहास के प्रमुख पहलुओं को संरक्षित करती हैं.

अमेरिका की तरफ भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों और देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर मंगलवार को अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों के लिए एक प्रदर्शनी और फिल्म स्क्रीनिंग आयोजित की गई. सबसे अहम इन जनजातियों की सांस्कृतिक विरासत को समर्पित एक वेबसाइट को भी लॉन्च किया गया. इस पूरे कार्यक्रम के लिए अमेरिकी दूतावास की तरफ से आर्थिक सहयोग दिया गया है.

दरअसल, विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर अमेरिकी दूतावास के डेप्युटी चीफ ब्रायन हीथ ने अरुणाचल प्रदेश की 17 जनजातियों पर बने ऑडियो-विजुअल डॉक्युमेंटेशन और वेबसाइट को लॉन्च किया. उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर भारत में जनजातियों (indigineous groups) की 3000 साल पुरानी सांस्कृतिक और जीवन शैली, परंपराएं, भारत की समृद्ध संस्कृति, समाज और इतिहास के प्रमुख पहलुओं को संरक्षित करती हैं.

यह बेहद ज़रूरी है कि उन कहानियों और अनुभवों को उजागर किया जाए जो आज के समाज को बनाते हैं.

ब्रायन हीथ ने कहा, “हालांकि मुझे अभी तक राज्य का दौरा करने का आनंद नहीं मिला है, लेकिन मुझे निश्चित रूप से भारत में अपने इस दौरे के दौरान ऐसा करने की उम्मीद है. राज्य के प्राकृतिक सौंदर्य को स्वदेशी जनजातियों की सदियों पुरानी परंपराओं, जीवन शैली और आध्यात्मिकता को प्रकृति से जोड़कर देखना दिल को छू लेने वाला है. यह इस बात की याद दिलाता है कि कैसे स्वदेशी लोगों के पास जलवायु कार्रवाई को लागू करने और बढ़ाने के लिए आवश्यक ज्ञान और अभ्यास हैं. ”

उन्होंने कहा, “सांस्कृतिक संरक्षण के लिए अमेरिकी राजदूत कोष (Fund for Cultural Preservation) ऐतिहासिक इमारतों, पुरातात्विक स्थलों, नृवंशविज्ञान वस्तुओं, पेंटिंग्स, पांडुलिपियों, स्वदेशी भाषाओं और पारंपरिक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के अन्य रूपों सहित देश की सांस्कृतिक विरासत के विभिन्न पहलुओं को संरक्षित करने के लिए परियोजनाओं का समर्थन करता है.

यह परियोजना, पूर्वोत्तर भारत में स्वदेशी जनजातियों की 3000 साल पुरानी सांस्कृतिक और जीवन शैली परंपराओं का दस्तावेज़ीकरण, भारत की समृद्ध संस्कृति, समाज और इतिहास के प्रमुख पहलुओं को संरक्षित करती है. यह भारत में कई महत्वपूर्ण एंबेसडर फंड परियोजनाओं में से एक है.”

दरअसल, दिसंबर 2021 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने सांस्कृतिक संरक्षण के लिए राजदूत के कोष के माध्यम से राज्य भर के 39 गांवों के जनजाति सदस्यों के साथ काम करने के लिए शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म की एक सीरीज के माध्यम से उनकी विरासत को संरक्षित और दस्तावेज करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया. इनमें से एक फिल्म, द लिविंग हेरिटेज ऑफ अरुणाचल: ब्यूटी इन डायवर्सिटी का प्रीमियर इस कार्यक्रम के दौरान हुआ.

यह कार्यक्रम आजादी का अमृत महोत्सव साथ ही अमेरिका और भारत की 75वीं वर्षगांठ समारोह की एक सीरीज के हिस्से के रूप में हुआ.

हालांकि, भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों और इसकी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर अरुणाचल प्रदेश को लेकर हुए इस कार्यक्रम से कहीं चीन न भड़क जाए. दरअसल, चीन अपने एजेंडे के तहत अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता है. वो भारत के इस राज्य को ‘साउथ तिब्बत का हिस्सा’ बताता है. भारत इस दावे को खारिज करता है.

अब इस मसले में अमेरिका हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहा है. इसके पीछे उसके अपने भू-राजनीतिक निहितार्थ हैं. उसे चीन पर नजर रखनी है. अरुणाचल प्रदेश को समर्पित एक वेबसाइट के लिए फंड देकर उसने राज्य में भारत के प्रभुत्व को समर्थन दे दिया है. लेकिन इसे लेकर चीन का परेशान होना तय है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अरुणाचल प्रदेश के मसले पर अमेरिका पहले भी चीन को चिढ़ाने वाले काम कर चुका है. उसके पूर्व राजदूत भारत के पूर्वोत्तर राज्य का दौरा कर चुके हैं.

अक्टूबर 2019 में अमेरिका की तरफ से अरुणाचल में इस तरह का आखिरी दौरा हुआ था. ये दौरा करने वाले थे भारत में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर. बाद में उन्होंने एक बयान में कहा था कि उनका दौरा इस बात का प्रमाण है कि अमेरिका अरुणाचल प्रदेश में भारत की सत्ता को अपना समर्थन देता है. जस्टर के बयान के बाद चीन और भारत के बीच तल्खी बढ़ गई थी.

अरुणाचल प्रदेश का मुद्दा चीन के बहुत संवेदनशील है और यह साबित करने का एक और नमूना बीते महीने देखने को मिला था. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप ऐकरमैन ने एक बयान में कह दिया था कि अरुणाचल प्रदेश पर चीन का दावा चौंकाने वाला है.

इसके बाद चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने जर्मन राजदूत के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था. दूतावास की तरफ से कहा गया था कि इस मामले में हस्तक्षेप या कॉमेंट करने या पक्ष लेने के लिए किसी तीसरे पक्ष की जरूरत नहीं है.

अमेरिका की तरफ भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों और देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर मंगलवार, 27 सितंबर को अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों के लिए एक प्रदर्शनी और फिल्म स्क्रीनिंग आयोजित की गई. सबसे अहम इन जनजातियों की सांस्कृतिक विरासत को समर्पित एक वेबसाइट को भी लॉन्च किया गया. इस पूरे कार्यक्रम के लिए अमेरिकी दूतावास की तरफ से आर्थिक सहयोग दिया गया है.

दरअसल, विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर अमेरिकी दूतावास के डेप्युटी चीफ ब्रायन हीथ ने अरुणाचल प्रदेश की 17 जनजातियों पर बने ऑडियो-विजुअल डॉक्युमेंटेशन और वेबसाइट को लॉन्च किया. उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर भारत में जनजातियों (indigineous groups) की 3000 साल पुरानी सांस्कृतिक और जीवन शैली, परंपराएं, भारत की समृद्ध संस्कृति, समाज और इतिहास के प्रमुख पहलुओं को संरक्षित करती हैं. यह बेहद ज़रूरी है कि उन कहानियों और अनुभवों को उजागर किया जाए जो आज के समाज को बनाते हैं.

ब्रायन हीथ ने कहा, “हालांकि मुझे अभी तक राज्य का दौरा करने का आनंद नहीं मिला है, लेकिन मुझे निश्चित रूप से भारत में अपने इस दौरे के दौरान ऐसा करने की उम्मीद है. राज्य के प्राकृतिक सौंदर्य को स्वदेशी जनजातियों की सदियों पुरानी परंपराओं, जीवन शैली और आध्यात्मिकता को प्रकृति से जोड़कर देखना दिल को छू लेने वाला है. यह इस बात की याद दिलाता है कि कैसे स्वदेशी लोगों के पास जलवायु कार्रवाई को लागू करने और बढ़ाने के लिए आवश्यक ज्ञान और अभ्यास हैं. ”

उन्होंने कहा, “सांस्कृतिक संरक्षण के लिए अमेरिकी राजदूत कोष (Fund for Cultural Preservation) ऐतिहासिक इमारतों, पुरातात्विक स्थलों, नृवंशविज्ञान वस्तुओं, पेंटिंग्स, पांडुलिपियों, स्वदेशी भाषाओं और पारंपरिक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के अन्य रूपों सहित देश की सांस्कृतिक विरासत के विभिन्न पहलुओं को संरक्षित करने के लिए परियोजनाओं का समर्थन करता है.

यह परियोजना, पूर्वोत्तर भारत में स्वदेशी जनजातियों की 3000 साल पुरानी सांस्कृतिक और जीवन शैली परंपराओं का दस्तावेज़ीकरण, भारत की समृद्ध संस्कृति, समाज और इतिहास के प्रमुख पहलुओं को संरक्षित करती है. यह भारत में कई महत्वपूर्ण एंबेसडर फंड परियोजनाओं में से एक है.”

दरअसल, दिसंबर 2021 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने सांस्कृतिक संरक्षण के लिए राजदूत के कोष के माध्यम से राज्य भर के 39 गांवों के जनजाति सदस्यों के साथ काम करने के लिए शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म की एक सीरीज के माध्यम से उनकी विरासत को संरक्षित और दस्तावेज करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया. इनमें से एक फिल्म, द लिविंग हेरिटेज ऑफ अरुणाचल: ब्यूटी इन डायवर्सिटी का प्रीमियर इस कार्यक्रम के दौरान हुआ.

यह कार्यक्रम आजादी का अमृत महोत्सव साथ ही अमेरिका और भारत की 75वीं वर्षगांठ समारोह की एक सीरीज के हिस्से के रूप में हुआ.

हालांकि, भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों और इसकी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर अरुणाचल प्रदेश को लेकर हुए इस कार्यक्रम से कहीं चीन न भड़क जाए. दरअसल, चीन अपने एजेंडे के तहत अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता है. वो भारत के इस राज्य को ‘साउथ तिब्बत का हिस्सा’ बताता है. भारत इस दावे को खारिज करता है.

अब इस मसले में अमेरिका हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहा है. इसके पीछे उसके अपने भू-राजनीतिक निहितार्थ हैं. उसे चीन पर नजर रखनी है. अरुणाचल प्रदेश को समर्पित एक वेबसाइट के लिए फंड देकर उसने राज्य में भारत के प्रभुत्व को समर्थन दे दिया है. लेकिन इसे लेकर चीन का परेशान होना तय है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अरुणाचल प्रदेश के मसले पर अमेरिका पहले भी चीन को चिढ़ाने वाले काम कर चुका है. उसके पूर्व राजदूत भारत के पूर्वोत्तर राज्य का दौरा कर चुके हैं.

अक्टूबर 2019 में अमेरिका की तरफ से अरुणाचल में इस तरह का आखिरी दौरा हुआ था. ये दौरा करने वाले थे भारत में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर. बाद में उन्होंने एक बयान में कहा था कि उनका दौरा इस बात का प्रमाण है कि अमेरिका अरुणाचल प्रदेश में भारत की सत्ता को अपना समर्थन देता है. जस्टर के बयान के बाद चीन और भारत के बीच तल्खी बढ़ गई थी.

अरुणाचल प्रदेश का मुद्दा चीन के बहुत संवेदनशील है और यह साबित करने का एक और नमूना बीते महीने देखने को मिला था. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप ऐकरमैन ने एक बयान में कह दिया था कि अरुणाचल प्रदेश पर चीन का दावा चौंकाने वाला है.

इसके बाद चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने जर्मन राजदूत के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था. दूतावास की तरफ से कहा गया था कि इस मामले में हस्तक्षेप या कॉमेंट करने या पक्ष लेने के लिए किसी तीसरे पक्ष की जरूरत नहीं है.

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