HomeAdivasi Dailyआदिवासियों को विस्थापित होना पड़ेगा ताकि आदिवासी कला का प्रदर्शन हो सके

आदिवासियों को विस्थापित होना पड़ेगा ताकि आदिवासी कला का प्रदर्शन हो सके

विडंबना ये है कि आदिवासी परिवारों को कॉलोनी खाली करने के लिए इसलिए मजबूर किया जा रहा है क्योंकि राज्य की स्पेशल चीफ सेक्रेटरी वाई श्रीलक्ष्मी ने कहा है कि राज्य सरकार जी-20 बैठक में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों को जिले की महान और अनूठी आदिवासी संस्कृति और परंपराओं से परिचित कराना चाहती है.

आंध्र प्रदेश के पोर्ट शहर विजाग के एएसआर नगर में लगभग साठ आदिवासी परिवार अनिश्चितता के कगार पर हैं. क्योंकि जी-20 की बैठक से पहले जिन झुग्गियों में ये आदिवासी परिवार रह रहे हैं उनका तोड़ा जाना तय है. पुलिस से लैस बुलडोजरों के किसी भी समय उस क्षेत्र को खाली करने के लिए आने की उम्मीद है जहां इन परिवारों ने चार साल से शरण ली हुई है.

मार्च के अंत में होने वाली G-20 बैठक से पहले आदिवासी परिवारों, विशेष रूप से कमजोर चेंचू, मोंडी बांदा और देवरा बांदा समुदायों से संबंधित लोगों को क्षेत्र छोड़ने के लिए कहा गया है. यह दूसरी बार होगा जब इन परिवारों को उचित मुआवजा या अस्थायी आवास दिए बिना बेघर कर  दिया जाएगा.

आदिवासी कला का प्रदर्शन, आदिवासियों को विस्थापित कर

ग्रेटर विशाखापत्तनम नगर निगम (GVMC) के अधिकारियों ने रविवार को झुग्गी क्षेत्र का दौरा किया था और निवासियों को तुरंत खाली करने का निर्देश दिया. अधिकारियों ने कथित तौर पर उन्हें चेतावनी भी दी कि अगर उन्होंने आदेशों का पालन नहीं किया तो वे बुलडोजर और जेबीसी लेकर आएंगे. बेघर होने की विकट स्थिति को दूर करने के लिए बेबस आदिवासी घर-घर जा रहे हैं.

विडंबना ये है कि आदिवासी परिवारों को कॉलोनी खाली करने के लिए इसलिए मजबूर किया जा रहा है क्योंकि राज्य की स्पेशल चीफ सेक्रेटरी वाई श्रीलक्ष्मी ने कहा है कि राज्य सरकार जी-20 बैठक में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों को विशाखापट्टनम जिले की महान और अनूठी आदिवासी संस्कृति और परंपराओं से परिचित कराना चाहती है.

श्रीलक्ष्मी ने बैठक के दौरान जिला सीतारामराजू की व्यवस्थाओं का खुलासा करते हुए कहा कि 28 और 29 मार्च को विजाग में जी-20 बैठक में 40 देशों के प्रतिनिधियों के भाग लेने की उम्मीद है. क्योंकि यह क्षेत्र कई आदिवासी समुदायों का घर है इसलिए सरकार विशाखापत्तनम और पड़ोसी अल्लुरी की आदिवासी कला, शिल्प और रंगीन संस्कृति का प्रदर्शन करना चाहती है.

स्पेशल चीफ सेक्रेटरी ने यह भी कहा कि जीवीएमसी सीमा के तहत 97 किलोमीटर की सड़कों पर मरम्मत और ब्लैक-टॉपिंग की जाएगी.

श्रीलक्ष्मी ने मीडिया को बताया, “विशाखापत्तनम मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (VMRDA), सड़क और भवन विभाग ने महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की थी, जिन्हें इस आयोजन के लिए तैयार किया जाएगा. बीच रोड को भी नया रूप मिलेगा.”

जिस इलाके में 60 आदिवासी परिवार रहते हैं, वह जी-20 समारोह के लिए शहर के सौंदर्यीकरण के लिए चुने गए ज़ोन में आता है.

मानवाधिकारों का उल्लंघन

जाने-माने कार्यकर्ता और भारत सरकार के पूर्व सचिव, ईएएस सरमा ने इसका विरोध किया. उन्होंने सोमवार सुबह डॉक्टर केएस जवाहर रेड्डी को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा कि आदिवासी परिवारों को उस जगह से खाली करना मानवाधिकारों का उल्लंघन है.

सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने पत्र में रेखांकित किया कि जब भी वीआईपी गुजरते हैं तो क्षेत्रों के दोनों ओर बसे गिरिजना परिवारों को बेदखल करना विशाखापत्तनम की विशेषता बन गई है, यह मानवाधिकार संरक्षण के हर मानदंड और कानून का घोर उल्लंघन है.

सरमा ने पत्र में कहा, “एएसआर नगर के चेंचू आदिवासी, जिन्हें पहले उसी अधिकारियों द्वारा इस आश्वासन पर विस्थापित किया गया था कि उन्हें नियमित आश्रय दिया जाएगा. उन्हें पिछले कई वर्षों से बिना किसी नियमित आश्रय के एक और विस्थापन की धमकी दी गई है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जी-20 बैठकों के प्रतिनिधि, जो कई देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे स्वयं इस बात से अनजान हैं कि विजाग में उनकी बैठकों के नाम पर प्रस्तावित मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.”

यह चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह के उल्लंघन से वैश्विक मानवाधिकार संगठनों का ध्यान इस ओर आकर्षित होगा कि भारत में अधिकारी अपने स्वदेशी समुदायों के साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं. ये एक ऐसा मामला जो केंद्रीय विदेश मंत्रालय के लिए चिंता का विषय होना चाहिए.

उन्होंने प्रमुख से आग्रह किया सचिव को एएसआर नगर में आदिवासियों के प्रस्तावित विस्थापन पर आगे बढ़ने से रोके और संबंधित केंद्रीय कानूनों के तहत संरक्षण के पात्र फेरीवालों, विक्रेताओं और छोटे दुकान मालिकों को विस्थापित करने से भी बचना चाहिए.

फिर से बेघर

इन सभी परिवारों को 2018 में जिस इलाके में रह रहे थे वहां से बेदखल कर दिया गया था, इस वादे के साथ कि तत्कालीन टीडीपी सरकार द्वारा उनके लिए पक्के घर बनाए जाएंगे. फिर से बेदखली के खतरे का सामना कर रहे इस समूह के एक सदस्य नालबोथुला सतीश ने आवास कार्यक्रम के लिए अपनी जमीन छोड़ने के बाद अपनी व्यथा सुनाई.

सतीश ने कहा, “2018 में तेलुगु देशम सरकार ने हमें आवास कार्यक्रम की सुविधा के लिए भूमि खाली करने के लिए कहा था. हमने खाली कर दिया. लेकिन हमें कोई अस्थायी आवास उपलब्ध नहीं कराया गया. 2019 में वाईएसआरसी ने सरकार बनाई लेकिन पक्के मकान देने का उसका वादा भी अधूरा रह गया. चार साल हो गए लेकिन एक भी मकान नहीं बना. जहां-जहां जमीन का टुकड़ा मिलता है हम वहां-वहां झोपड़ियां और छप्पर बना लेते हैं, इस उम्मीद में कि सरकार जल्द ही पक्के मकान दे देगी. लेकिन एक घर के बजाय हमें एक और बेदखली की चेतावनी दी गई.”

प्रगतिशील महिला संगठन (POW) की एक कार्यकर्ता लक्ष्मी, जो जिले में विस्थापित आदिवासियों के आवास अधिकारों के लिए लड़ रही हैं, ने कहा कि ये परिवार किसी भी तरह से राष्ट्रीय राजमार्ग पर यात्रा करने वाले जी-20 वीआईपी के लिए कोई समस्या नहीं थे.

लक्ष्मी ने कहा, “यह नहीं भूलना चाहिए कि इन परिवारों को हाउसिंग कॉलोनी के निर्माण के लिए जगह बनाने के लिए उनकी कॉलोनी से निकाला गया है. साढ़े चार साल बाद भी निर्माण जारी है.”

लक्ष्मी ने पूछा, “उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया गया था और न ही कोई अस्थायी आवास दिया गया था. इसलिए उन्हें रहने के लिए एक छोटा शेड या झोपड़ी बनानी पड़ी क्योंकि वे शहर में दूर-दराज के स्थानों पर नहीं जा सकते थे. अब एक और विस्थापन उनके चेहरे को घूर रही है. हमें पता चला है कि तमिलनाडु औद्योगिक विकास निगम (TIDCO) के आवासों के आवंटन के लिए चुने गए लाभार्थियों की सूची में अपनी जमीन देने वाले इन परिवारों के नाम नहीं हैं. यह कैसा न्याय है?”

उन्होंने अधिकारियों से आग्रह किया कि वे चार साल पहले जिस भूमि पर रहते थे, उस पर बने तथाकथित अर्ध-निर्मित घरों में उन्हें रहने दें.

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