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झारखंड में बीजेपी के सत्ता में लौटने पर आदिवासियों का अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा: हेमंत सोरेन

मुख्यमंत्री सोरेन ने प्रधानमंत्री मोदी को हाल ही में लिखे एक पत्र में उनसे यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया था कि वन संरक्षण नियमों में बदलाव के साथ आदिवासियों और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा की जाए.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खतियानी जोहार यात्रा के दौरान सोमवार को बीजेपी पर जमकर हमला बोला. बीजेपी पर संसाधनों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए झारखंड के हेमंत सोरेन ने दावा किया कि राज्य में बीजेपी के सत्ता में लौटने पर आदिवासियों का अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा. खतियानी जोहार यात्रा के तहत सिमडेगा में एक रैली को संबोधित करते हुए सोरेन ने कहा कि बीजेपी ने गुजरात और महाराष्ट्र को विकास के पथ पर बढ़ाया लेकिन झारखंड के “सामाजिक ताने-बाने को बर्बाद कर दिया”.

इस कार्यक्रम का आयोजन राज्य में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के तीन साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया.

सोरेन ने कहा, ‘‘अगर बीजेपी किसी तरह से सत्ता में लौटने में सफल रहती है तो मूल निवासी और आदिवासी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकेंगे क्योंकि उनका अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा.  मैं आपको (लोगों को) आगाह करना चाहता हूं कि वह (भाजपा) अब गांवों में अब अपनी पकड़ मजबूत करेगी.”

लोकसभा चुनाव और झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में साथ-साथ होने हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि पूर्व में बीजेपी ने अलग झारखंड राज्य के गठन की लड़ाई की खिल्ली उड़ाई थी. उन्होंने कहा, ‘‘वह चाहती है कि आदिवासी और स्थानीय लोग अपनी अस्मिता के लिए संघर्ष करते रहें.”

मुख्यमंत्री ने कहा कि वन संरक्षण नियम 2022 में बदलाव कर आदिवासियों के अधिकारों को छीनने और स्थानीय ग्राम सभा की शक्ति को कमजोर करने वाला है. केंद्र पर हमला करते हुए उन्होंने कहा, ”कई स्तरों पर साजिश रची जा रही थी.”

सोरेन ने प्रधानमंत्री मोदी को हाल ही में लिखे एक पत्र में उनसे यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया था कि वन संरक्षण नियमों में बदलाव के साथ आदिवासियों और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा की जाए.

हेमंत सोरेन ने कहा, “मैंने प्रधानमंत्री को यह बताने के लिए पत्र लिखा था कि हम परिवर्तनों को स्वीकार नहीं कर सकते. अगर ग्राम सभा के पास अब खनन या पेड़ों की कटाई की अनुमति देने की शक्ति नहीं है तो जंगलों का सफाया हो जाएगा और आदिवासियों को बाहर कर दिया जाएगा.”

उन्होंने दावा किया कि वर्तमान में सिमडेगा के ग्रामीण इलाकों में मुट्ठी भर आदिवासी रहते हैं, बाकी कहीं और चले गए हैं.

सीएम ने यह भी बताया कि “झारखंड में 8.5 लाख से अधिक घर बनाने की आवश्यकता है और जिसके लिए मैंने केंद्र को लिखा था लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.”

इसके अलावा उन्होंने बीजेपी पर पारसनाथ पहाड़ियों या ‘मरंग बुरु’ परियोजना पर “विभाजनकारी” राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इससे पहले कभी भी राज्य में जैन समुदाय के धार्मिक स्थल पर इस तरह के विवाद नहीं देखे गए.

सीएम हेमंत सोरेन ने अपने राज्य और एक अन्य आदिवासी राज्य छत्तीसगढ़ के बीच तुलना करते हुए आरोप लगाया कि बीजेपी (दोनों राज्यों में विपक्ष) आदिवासियों को एक-दूसरे के खिलाफ़ भड़काने की चाल चल रही है.

उन्होंने कहा कि आदिवासियों को भाजपा के जहर से सावधान रहना चाहिए. वे जाति और धर्म के नाम पर नफरत का जहर घोलने और लड़ाई-झगड़ा भड़काने में माहिर हैं. हमने देखा है कि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के कई जिलों में क्या हुआ, जहां आदिवासियों ने ईसाई आदिवासियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और कुछ आदिवासियों ने भाजपा के एजेंट के रूप में काम किया. हमारे राज्य में गिरिडीह जिले की पारसनाथ पहाड़ियों पर इसी तरह की चीजें शुरू हो चुकी हैं और कुछ आदिवासी नेता भाजपा के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं.

दरअसल, छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म अपनाने वाले हजारों आदिवासियों पर पिछले साल दिसंबर में नारायणपुर और कोंडागांव जिलों के गांवों में आदिवासियों द्वारा हमला किया गया था और जनवरी में नारायणपुर में आदिवासियों द्वारा एक चर्च में तोड़फोड़ किए जाने के बाद यह मामला राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया था.

सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म की एक तथ्यान्वेषी टीम ने ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस और यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के साथ साझेदारी में दिसंबर में संकेत दिया था कि नए साल में इस तरह के हमले हो रहे हैं और दावा किया था कि ईसाई आदिवासियों पर धर्मांतरण का आरोप लगाकर हो रहे हमलों के खिलाफ आदिवासियों को भड़काने के पीछे आरएसएस और बीजेपी के नेताओं का हाथ था.

सीएम सोरेन ने लोगों को आगाह करते हुए कहा कि आने वाले दिन आदिवासियों और स्थानीय निवासियों के लिए “चुनौतीपूर्ण” होंगे. उन्होंने कहा कि भगवा पार्टी ने पहले झारखंड को अलग राज्य बनाने की लड़ाई का मज़ाक उड़ाया था.

उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि आदिवासी और स्थानीय लोग अपनी पहचान के लिए संघर्ष करते रहें. उन्होंने यह भी कहा कि 1932 की ‘खतियान’ (भूमि रिकॉर्ड) आधारित अधिवास नीति उनकी सरकार द्वारा लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए पेश की गई थी और इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने का आह्वान किया.

संविधान की नौवीं अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानूनों की एक सूची है जिन्हें अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती है.

नरेंद्र मोदी सरकार पर पर आरोप लगाया कि वह उनकी सरकार के खिलाफ ईडी और सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है. उन्होंने कहा, ‘‘मैं गरीबों, आदिवासियों और वंचितों का नेता हूं, व्यापारियों का नेता नहीं.”

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