असम के मूलनिवासियों के अधिकारों की रक्षा के मद्देनजर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने तिनसुकिया जिला के सदिया के चापाखोवा में आयोजित एक कार्यक्रम में औपचारिक रूप से पांच लाभार्थियों को भूमि पट्टों के आवंटन प्रमाण पत्र प्रदान किए.
हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि राज्य के जातीय समुदायों की सुरक्षा के लिए सरकार ने आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक का गठन किया है. इस अवसर पर हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि सादिया आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक से ताल्लुक रखते है इसलिए अहोम, चुटिया, मोरन, मटक, गोरखा के लोग अपने भूमि अधिकारों से वंचित हो रहे हैं,
उन्हें भूमि अधिकार देने के लिए राज्य सरकार ने एक कैबिनेट निर्णय के माध्यम से इन समुदायों से संबंधित लोगों को संरक्षित श्रेणियों के रूप में बांटा गया है. सरमा ने इसे राज्य सरकार की बड़ी सफलता बताते हुए कहा कि आजादी के बाद पहली बार इन समुदायों को जमीन का अधिकार मिला है.
दरअसल भूमि पट्टों के आवंटन के लिए 1043 लाभार्थियों का चयन किया गया है और मुख्यमंत्री ने पांच लाभार्थियों को आवंटन प्रमाण पत्र देकर प्रक्रिया की शुरुआत की.
हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि राज्य के जातीय समुदायों की सुरक्षा के लिए सरकार ने आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक का गठन किया है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भूमि से जुड़ी सभी बाधाओं और अनियमितताओं को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने मिशन बसुंधरा भी शुरू किया है.
इसके एक हिस्से के रूप में एक विस्तृत भूमि सर्वेक्षण शुरू किया गया था जो 2 अक्टूबर से पूरे राज्य में किया जाएगा.
हिमंत बिस्वा सरमा ने महाभारत काल से सदिया के महत्व को दोहराते हुए कहा कि ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से सदिया का अत्यधिक महत्व है. ये जगह स्थानीय और विदेशी दोनों तरह के पर्यटकों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल में तब्दील हो सकता है.
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पहले ही इस संबंध में कई योजनाएं तैयार कर चुकी है. साथ ही सदिया के लोगों को बार-बार आने वाली बाढ़ से राहत दिलाने के लिए कुंडिल नदी को गहरा करने के लिए कदम उठाए जाएंगे.
उन्होंने कहा कि सरकार अगले पांच सालों में सदिया में व्यावहारिक परिवर्तन लाने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने यह भी बताया कि अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों को आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक में भूमि का अधिकार प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए उचित कदम उठाए जाएंगे.
हाल ही में असम मंत्रिमंडल ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, आदिवासी और अन्य पारंपरिक वनवासी समुदाय को सरकारी नौकरी पाने के लिए दो बच्चों वाले नियम से छूट दी है.