ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने पंडित रघुनाथ मुर्मू की 120वीं जयंती के मौके पर कई अहम घोषणाएं की हैं.
इन घोषणाओं में सबसे अहम घोषणा मयूरभंज ज़िले के दंडबोस गांव को अब तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने की है. पंडित रघुनाथ मुर्मू की जन्मभूमि होने के कारण यह फैसला लिया गया है.
साथ ही, जहां उनका अंतिम संस्कार हुआ था, उस स्थान को भी स्मारक के रूप में तब्दील करने की घोषणा की गई है.
कौन थे पंडित रघुनाथ मुर्मू ?
चुनु मुर्मूका जन्म बुद्ध पूर्णिमा के दिन 5 मई 1905 को ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के दंडबोस गांव में हुआ था. चुनु मुर्मू जन्म के बाद लगातार रो रहे थे. उनके माता -पिता इस बात को लेकर बहुत चिंतित हुए पर लोगों के कहने पर एक ओझा (झाड़-फूक वाले बाबा) को बुलाया गया.
ओझा ने आकर कहा कि बच्चे का नामकरण ठीक नहीं हुआ है इसलिए वह लगातार रो रहा है.
उन्होंने ही बच्चे का नामकरण अपने नाम पर कर दिया. इस तरह वह ‘चुनु मुर्मू ‘से रघुनाथ मुर्मू बने.
करीब 8 साल की उम्र में उन्हें अपने गाँव से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्कूल में भेजा जाने लगा.
स्कूल में संथाल बच्चों की संख्या ही ज़्यादा थी लेकिन वहां ओड़िया माध्यम से पढ़ाई होती थी. इस वजह से उन्हें पढ़ाई बिलकुल भी समझ में नहीं आ रही थी और उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता था.
बचपन में रघुनाथ मुर्मू के मन में ये सवाल था कि उन्हें अपनी मातृभाषा संताली में क्यों नहीं पढ़ाया जाता. यह प्रश्न उनके भीतर एक गहरी जिज्ञासा और असंतोष का कारण बना.
समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि जब तक संथाली भाषा की अपनी लिपि नहीं होगी तब तक शिक्षा संभव नहीं.
इसी सोच से प्रेरित होकर बाद में उन्होंने ‘ओल चिकी’ लिपि का आविष्कार किया.
वे अपनी विकसित ओल चिकी लिपि का इस्तेमाल सिखाने के लिए वे मयूरभंज और झारखंड के अलग-अलग संथाली गांवों में जाने लगे.
इस तरह ओल चिकी लिपि बड़ी संख्या में संथाली लोगों तक पहुँची.
लोग उन्हें एक शिक्षक के रूप में प्यार करते थे और उन्हें पंडित रघुनाथ मुर्मू कहने लगे.
ओल चिकी लिपि की शताब्दी पर कार्यक्रम
मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की है कि पंडित मुर्मू द्वारा बनाई गई ओल चिकी लिपि के 100 साल पूरे होने पर राज्यभर में एक साल तक विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.
इसी कड़ी में भुवनेश्वर में एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन भी किया जाएगा. इस सेमिनार का उद्देश्य संथाली भाषा को बढ़ावा देना होगा.
संथाली भाषा के लिए 50 करोड़ रुपये का पैकेज
संथाली भाषा के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए मुख्यमंत्री ने 50 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की घोषणा की है.
इसके अंतर्गत बारीपदा में ओल चिकी पुस्तकालय की स्थापना की जाएगी.
साथ ही पंडित मुर्मू के साहित्य और कार्यों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए एक हेरिटेज भवन भी बनाया जाएगा.
मुख्यमंत्री ने कहा, “ओल चिकी लिपि केवल एक लिपि नहीं है. यह संथाल समुदाय की पहचान और गर्व का प्रतीक है. भाषा सिर्फ बोलचाल का माध्यम नहीं बल्कि शिक्षा, एकता और संस्कृति को मज़बूत करने का जरिया है.”
शिक्षा और रिसर्च पर ज़ोर
राज्य सरकार पहले ही बारीपदा में पंडित रघुनाथ मुर्मू मेडिकल कॉलेज खोल चुकी है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि भविष्य में और भी शिक्षण व शोध संस्थानों की शुरुआत की जाएगी, जो पंडित मुर्मू के विचारों और कार्यों को आगे बढ़ाएंगे.
उन्होंने कहा कि स्कूलों में संथाली भाषा की पढ़ाई, किताबें, शिक्षक प्रशिक्षण और शोध कार्यों को और अधिक मज़बूत किया जाएगा.
कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ने संताली भाषा के प्रसिद्ध शोधकर्ता चूंदा सोरेन को ‘गुरु गोमके अंतरराष्ट्रीय सम्मान’ से नवाज़ा.
इस सम्मान के साथ 1 लाख रुपये की नकद राशि भी दी गई.
इस दौरान पंडित मुर्मू के जीवन पर आधारित एक स्मारिका (स्मृति ग्रंथ) का विमोचन भी किया गया.
इस अवसर पर पंडित मुर्मू के वंशज चुनीयन मुर्मू और पद्मश्री सम्मान प्राप्त लेखिका दमयंती बेशरा को भी सम्मानित किया गया.
ओडिशा सरकार ने रघुनाथ मुर्मू को जो सम्मान दिया है वह बेशक क़ाबिले तारीफ है. लेकिन सरकार के प्रयास आदिवासी हस्तियों को सम्मान देने से आगे भी निकलने चाहिएं.
मसलन अभी भी संथाल आदिवासियों की भाषी की लिपी ओल चिकी में कई तरह की त्रुटियां बताई जा रही है. इन त्रुटियों को दूर करने और अलग अलग इलाकों में बोले जाने वाले लहज़े को ध्यान में रख कर इस लिपी को बेहत्तर बनाने की ज़रूरत है.
इसके अलावा आदिवासी इलाकों में शोध और अध्य्यन के लिए भी संस्थानों की ज़रूरत है.
आदिवासी भाषा और संस्कृति के विकास के बारे में अक्सर यह देखा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें बड़ी बड़ी घोषणाएं ज़रूर करती हैं, लेकिन ये योजनाएं ज़मीन पर नहीं उतर पाती हैं.
नई दिल्ली में राष्ट्रीय जनजाति शोध संस्थान से ले कर अलग – अलग राज्यों के शोध संस्थानों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है.