गुजरात में भारतीय ट्राइबल पार्टी (Bhartiya Tribal Party, BTP) के अध्यक्ष महेश वसावा गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के मंच पर मौजूद थे. महेश वसावा डेडियापाड़ा विधान सभा क्षेत्र से विधायक हैं.
इस लिहाज़ से महेश वसावा मुख्यमंत्री के मंच पर मौजूद हों तो उसमें आपत्ति या आश्चर्य नहीं होना चाहिए. लेकिन मुख्यमंत्री पटेल के मंच पर महेश वसावा की मौजूदगी ने एक सनसनी पैदा कर दी है.
गुजरात में चुनावी एंट्री लेने की तैयारी में जुटी आम आदमी पार्टी (AAP) इस घटना के बाद सकते में है. दरअसल इस साल के अंत में होने वाले चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी और भारतीय ट्राइबल पार्टी के बीच बातचीत हो रही है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और बीटीपी के नेताओं महेश वसावा और छोटू भाई वसावा ने हाल ही में एक जनसभा भी की थी. इस जनसभा में भारतीय ट्राइबल पार्टी के नेता और झगड़िया से विधायक छोटू भाई वसावा ने बीजेपी पर आदिवासी विरोधी नीतियों का आरोप लगाया था.
महेश भाई वसावा ने दिल्ली सरकार के स्कूलों की तारीफ़ करते हुए कहा था कि गुजरात के आदिवासी इलाक़ों में 6000 से ज़्यादा सरकारी स्कूल बंद कर दिए गए.
महेश वसावा ने गुरूवार को हुए इस कार्यक्रम में शिरकत करने की वजह पर बोलते हुए कहा है कि वो एक जनप्रतिनिधि यानि एक एमएलए होने के नाते इस कार्यक्रम में शामिल थे. उन्होंने कहा कि इस मंच पर उनकी उपस्थिति के कोई छुपे हुए मायने नहीं हैं.
लेकिन इस मंच पर जो हुआ उसमें एक बात और नोटिस करनी ज़रूरी है. यहाँ पर महेश वसावा ने गुजरात सरकार के दो मंत्रियों के साथ आदिवासियों वनबंधु कार्यक्रम के चेक भी बाँटे.
बीटीपी के नेता आदिवासियों को वनबंधु या वनवासी पुकारे जाने का विरोध करते रहे हैं. छोटू भाई वसावा ने भी अरविंद केजरीवाल के साथ सभा से पहले 1 मई को कहा था कि बीजेपी आदिवासियों को नक्सल साबित करना चाहती है. कभी वो हमें वनवासी और जंगलों पर ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा करने वाले साबित करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि हम वनवासी नहीं हैं जिन्हें वहाँ से विस्थापित कर दिया जाए. बल्कि हम आदिवासी जंगल के मालिक हैं.

भारतीय ट्राइबल पार्टी के दोनों बड़े नेता और विधायक छोटु भाई वसावा और महेश वसावा बीजेपी और गुजरात सरकार के कटु आलोचक रहे हैं. लेकिन इस सभा में महेश वसावा ने मंच पर मौजूद रह कर गुजरात सरकार और मोदी सरकार की तारीफ़ सुनी.
जब इस बारे में महेश वसावा से पूछा गया तो उनका कहना था, “ मेरा नाम तो मंच पर मौजूद रहने वाले अतिथियों में था ही नहीं. मैं यहाँ आया क्योंकि मेरा अपना एजेंडा है. मैं 14 ज़िलों के आदिवासियों के हितों की बात ले कर यहाँ आया था.”
महेश वसावा ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री के सामने कई मसले उठाए और मुख्यमंत्री ने उनकी बात ध्यान से सुनी. चुनाव से 4-6 महीने पहले मुख्यमंत्री के मंच पर हाज़िर होने वाले महेश वसावा की सफ़ाई किसी के गले नहीं उतर रही है.
वैसे राजनीति के लिहाज़ से यह बात इतनी सरल और सहज है भी नहीं जितना महेश वसावा बताना चाहते हैं. चुनाव के मौसम में किसी नेता को कहां देखा जाना चाहिए और कहां नहीं, यह बात छोटू भाई वसावा और महेश वसावा बहुत अच्छी तरह से समझते हैं.
आम आदमी पार्टी में उनके इस कदम से हैरानी देखी गई है. आम आदमी पार्टी के एक नेता ने कहा कि यह हैरान करने वाली घटना तो बेशक है. लेकिन इस मसले पर कोई बयान देना या फिर किसी फ़ैसले पर पहुँच जाना ठीक नहीं होगा.

भारतीय ट्राइबल पार्टी की तरफ़ से औपचारिक बयान में भी यही कहा गया है कि उनके नेता कभी भी आदिवासी हितों से समझौता नहीं करेंगे. लेकिन छोटु भाई वसावा और महेश भाई वसावा दोनों ही राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं.
इन दोनों ही नेताओं ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों को कई बार छकाया है. राज्य सभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस के नेता उनकी मिन्नतें करते रहे, लेकिन उन्होंने चुनाव में वोट नहीं डालने का फ़ैसला किया था.
इस फ़ैसले का फ़ायदा सीधा सीधा बीजेपी को पहुँचा था.
बीटीपी के दोनों नेताओं को लंबे समय से क़रीब से जानने वाले कहते हैं कि इन दोनों ही नेताओं के दांव को समझना आसान नहीं है. आम आदमी पार्टी हो या फिर कांग्रेस या बीजेपी, उन्हें यह समझने की भूल नहीं करनी चाहिए कि बीटीपी एक छोटी पार्टी है तो उसे हल्के में लिया जा सकता है.
उन्होंने यह भी बताया कि मुख्यमंत्री के साथ मंच साझा करने का मतलब यह बिलकुल नहीं लगाना चाहिए के वो बीजेपी के साथ गठबंधन में जा सकते हैं. बल्कि इसका मतलब बिलकुल उल्टा भी हो सकता है.
उन्होंने बताया कि अंदरखाने बीटीपी कांग्रेस के साथ गठबंधन पर भी चर्चा कर रही है. कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए भी यह दांव हो सकता है.
बीटीपी के इस दांव का मतलब क्या है और वो कितना फ़ायदा इस पार्टी को होगा, यह तो कहना मुश्किल है. लेकिन गुजरात के आदिवासी इलाक़ों में बीटीपी जितनी आम आदमी पार्टी, कांग्रेस या बीजेपी के लिए ज़रूरी है, उससे ज़्यादा ज़रूरत BTP को एक गठबंधन सहयोगी की इन पार्टियों में से है.
क्योंकि पार्टी को पंचायत चुनाव में तगड़ा झटका लगा है. बीटीपी की कोशिश होगी कि गठबंधन होने से किसी एक बड़े प्रतिद्वंद्वी को अपने साथ कर लिया जाए, जिससे कम से कम डेडियापाड़ा और झगड़िया दोनों सीटों को बचाया जा सके.