अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों के लिए नौ छात्रवृत्तियों को आधा करने के तुरंत बाद केरल सरकार ने वित्तीय संकट के नाम पर 49 आदिवासी कल्याण योजनाओं में से 27 के लिए धन में कटौती की है.
केरल में 1.5 लाख आदिवासी परिवार रहते हैं और उनमें से कम से कम एक चौथाई आवास, शिक्षा, स्वरोजगार और सामाजिक सुरक्षा के लिए इन कार्यक्रमों पर निर्भर हैं. बावजूद इसके योजनाओं के धन में कटौती की गई है.
कई महत्वपूर्ण पहलों को या तो पूरी तरह से बंद कर दिया गया या योजना के आकार को आधा करने के सरकार के फैसले के अनुरूप उनके फंड में भारी कमी कर दी गई. जिससे सामाजिक न्याय और समानता के प्रति इसकी प्रतिबद्धता पर गंभीर चिंताएं पैदा हो गई हैं.
इस वर्ष शून्य निधि आवंटित होने के साथ गोत्र वलस्या निधि (Gotra Valsalya Nidhi) जो जन्म के समय प्रत्येक आदिवासी बालिका के लिए बीमा कवरेज प्रदान करती है. वो प्रभावित होने वाला एक प्रमुख कार्यक्रम है.
इसी तरह आदिवासियों के बीच स्व-उद्यमिता को बढ़ावा देने की मांग करने वाली उन्नति योजना के वित्त पोषण में पूरी तरह से कटौती की गई. कारीगरों के लिए अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए महत्वपूर्ण आदिवासी मेलों को भी पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिली.
कल्याणकारी कार्यक्रमों को अंतिम रूप देने वाली आदिवासी सभाओं “ऊरुक्कुट्टम” के लिए निधि 2.5 करोड़ रुपये से घटाकर 1 करोड़ रुपये कर दी गई, जिससे उनकी प्रभावी रूप से कार्य करने की क्षमता सीमित हो गई.
साथ ही आदिवासी छात्रों के लिए लैपटॉप योजना, जिसका लाभ सालाना 300 से 350 छात्रों को मिलता है. उसकी निधि 4.5 करोड़ रुपये से घटाकर 2.5 करोड़ रुपये कर दी गई, जिससे उच्च शिक्षा और ऑनलाइन संसाधनों तक उनकी पहुंच प्रभावित हुई.
इसके अलावा जिन कार्यक्रमों को कम किया गया उनमें आदिवासी परिवारों के लिए खाद्य सहायता कार्यक्रम शामिल है. जबकि आदिवासी परिवारों के कई कुपोषण से जूझ रहे हैं, इसकी निधि 25 करोड़ रुपये से घटाकर 20 करोड़ रुपये कर दी गई.
भूमिहीन आदिवासियों के पुनर्वास के लिए निधि 42 करोड़ रुपये से घटाकर 22 करोड़ रुपये कर दी गई. स्वरोजगार और कौशल विकास प्रशिक्षण के लिए सहायता राशि को भी 9 करोड़ रुपये से घटाकर 5.1 करोड़ रुपये कर दिया गया.
इस बीच सरकार ने दावा किया है कि जीवन मिशन के तहत आदिवासियों के लिए आवास योजना को अभी तक नहीं छुआ गया है. जिसके लिए इस वर्ष 140 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. लेकिन अब तक कुल आवंटन का केवल 25 फीसदी ही खर्च किया गया है. अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है तो निर्धारित निधि काफी हद तक अप्रयुक्त रह सकती है.
आज़ादी के इतने सालों बाद भी आदिवासी समुदाय हाशिए पर हैं. उन्हें मुख्यधारा में पूरी तरह से शामिल नहीं किया गया है. लेकिन परिस्थितियों की परवाह किए बिना उनके लिए योजनाओं में कटौती की जा रही है. जबकि जरूरत इस बात की है कि अधिक फंड मुहैया कराए जाएं.