तमिलनाडु के वासुदेवनल्लूर के थलैयनाई इलाके में 13 पलियार आदिवासी परिवार पिछले 15 सालों से झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं. सरकार ने इन्हें पश्चिमी घाटों से पुनर्वासित कर स्थायी आवास देने का वादा किया था लेकिन अब तक ये वादा अधूरा है.
सरकारी वादे अधूरे, समस्याएँ बरकरार
वर्ष 2010-11 में पश्चिमी घाट से 36 आदिवासी परिवारों को थलैयनाई लाया गया था. लेकिन केवल 15 परिवारों के लिए एक-एक कमरे के शेल्टर बनाए गए. बाकी 13 परिवार अब भी झोपड़ियों में जीवन गुजार रहे हैं.
बरसात के दिनों में इन्हें रिश्तेदारों के घरों में शरण लेनी पड़ती है जिससे बुजुर्गों और बच्चों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है.
स्थानीय निवासी बताते हैं कि उनके घर जंगल के करीब हैं इसलिए सांप और अन्य जहरीले जीवों का खतरा बना रहता है. वे कहते हैं कि बरसात में रहने के लिए कोई सुरक्षित ठिकाना नहीं है.
निजी जमीन से हटने का दबाव
कुछ आदिवासी सरकारी जमीन पर झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं, जबकि कुछ निजी जमीन पर बसे हैं. अब ज़मीन मालिक ने इन्हें वहां से हटने को कह दिया है. इस वजह से इनका भविष्य और अनिश्चित हो गया है.
एक अन्य निवासी ने बताया कि सरकारी अधिकारियों से कई बार गुहार लगाने के बावजूद फंड की कमी का हवाला देकर समस्या टाल दी जाती है.
तंगहाल शेल्टर में एक साथ 11 लोग
सरकार ने 15 साल पहले हर परिवार के लिए 55 हज़ार की लागत से सिर्फ एक-एक कमरे के छोटे शेल्टर बनाए थे. इन शेल्टरों में परिवार के सभी सदस्य रहते, खाना बनाते और जरूरी काम करते हैं. एक महिला बताती है कि उनके परिवार के 11 सदस्य इसी एक कमरे में रहते हैं.
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता टी. सुरेश का कहना है कि उन्होंने कई बार मुख्यमंत्री विशेष प्रकोष्ठ और अन्य अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकला.
वे मांग कर रहे हैं कि सभी परिवारों के लिए राज्य या केंद्र सरकार की किसी आवास योजना के तहत पक्के घर बनाए जाएँ.
आवास देने को लेकर अधिकारी क्या कहते हैं ?
ज़िलाधिकारी ए.के. कमल किशोर ने बताया कि 15 पुराने शेल्टरों की हाल ही में मरम्मत करवाई गई है. पिछले साल 13 आदिवासियों को पट्टा भी दिया गया था और इनके लिए पक्के घर बनाने का प्रस्ताव आदिवासी कल्याण निदेशालय को भेजा गया है.
अधिकारियों के अनुसार यह प्रस्ताव अंतिम चरण में है और मंजूरी मिलते ही निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा.
वन विभाग के जिला अधिकारी अखिल थांबी ने भी इस मामले को गंभीरता से लेने का आश्वासन दिया है. लेकिन सवाल यह है कि सरकार अपना 15 साल पुराना वादा पूरा करने में कितना समय लगाएगी.