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धर्मांतरण पर चंपई सोरेन का बड़ा बयान

चंपाई सोरेन ने बताया कि उन्होंने आदिवासी समाज को जागरूक करने के लिए जनजागरण अभियान शुरू किया है. इसकी शुरुआत जामताड़ा से हुई है.

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता चंपाई सोरेन ने धर्मांतरण को लेकर आदिवासी समाज को सतर्क रहने को कहा है. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज की परंपराएं, पूजा पद्धति और जीवनशैली पर लगातार हमला हो रहा है. अब समय आ गया है कि हम अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए एकजुट हों और आवाज बुलंद करें.

चंपाई सोरेन ने यह बयान 20 अप्रैल को पूर्वी सिंहभूम ज़िले के चाकुलिया में ‘भारत जाकात माझी परगना महाल’ और ‘आदिवासी सावंता सुसार अखाड़ा’ नाम के संगठनों द्वारा आयोजित आदिवासी महासम्मेलन में दिया. इस सम्मेलन में कोल्हान के कई ज़िलों से बड़ी संख्या में आदिवासी शामिल हुए.

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि आज कुछ लोग आदिवासी समाज की पूजा पद्धति और परंपराओं को छोड़कर दूसरा धर्म अपना रहे हैं. लेकिन फिर भी वे आदिवासी के नाम पर संविधान में दिए गए आरक्षण और अन्य अधिकारों का लाभ ले रहे हैं. उन्होंने साफ कहा कि जो लोग धर्म बदल चुके हैं, उन्हें आदिवासी आरक्षण से बाहर किया जाना चाहिए.

हमारी पूजा पद्धति ही हमारी पहचान है’

चंपाई सोरेन ने कहा कि आदिवासी समाज सिर्फ एक धर्म या जाति नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है. हमारे समाज में जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी रस्में पारंपरिक तरीके से होती हैं.

मांझी परगना, पाहन, मानकी मुंडा, पड़हा राजा जैसे परंपरागत लोग इन रस्मों को पूरा करते हैं. लेकिन जो लोग ईसाई धर्म अपना चुके हैं, वे चर्च जाते हैं.

वहां हमारे आदिवासी देवताओं जैसे ‘मरांग बुरु’ या ‘सिंग बोंगा’ की पूजा नहीं होती.

उन्होंने सवाल उठाया कि जब हमारे धार्मिक स्थल जैसे जाहेरथान, सरना स्थल और देशाउली खत्म हो जाएंगे तो आने वाली पीढ़ी इन जगहों पर कैसे पूजा करेगी? अगर हम अब भी चुप रहे तो हमारा पूरा अस्तित्व खत्म हो सकता है.

जनजागरण अभियान की शुरुआत जामताड़ा से

चंपाई सोरेन ने बताया कि उन्होंने आदिवासी समाज को जागरूक करने के लिए जनजागरण अभियान शुरू किया है. इसकी शुरुआत जामताड़ा से हुई है.

यह अभियान अगले 4 से 5 महीने तक चलेगा. उनका लक्ष्य है कि वे संथाल परगना क्षेत्र के 10 लाख से ज्यादा आदिवासियों को एकत्र कर दिल्ली तक अपनी बात पहुंचाएं.

उन्होंने कहा, “यह आंदोलन किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए है. हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी पहचान को सुरक्षित रखना है.”

चंपाई सोरेन ने यह भी मांग उठाई कि जो आदिवासी महिलाएं गैर-आदिवासी पुरुषों से शादी करती हैं, उन्हें भी आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए.

उन्होंने कहा कि इस तरह से भी आदिवासी समाज की पहचान कमजोर होती है.

आदिवासी आबादी घट रही है, सतर्क होने का समय है’

उन्होंने चिंता जताई कि झारखंड के कई क्षेत्रों में आदिवासी जनसंख्या लगातार घट रही है. खासकर संथाल परगना में यह गिरावट साफ दिखाई दे रही है. चंपाई सोरेन ने आरोप लगाया कि बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ के कारण भी आदिवासी अब अपनी ही ज़मीन पर अल्पसंख्यक बनते जा रहे हैं.

चंपई सोरेन जेएमएम से चुनाव से पहले हुई रंजिशों के बाद बीजेपी में शामिल हुए थे. वे अब बीजेपी के ही सुर में बोल रहे हैं. संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा हो या धर्मांतरित आदिवासियों को डीलिस्ट करने का, बीजेपी के तेवर हमेशा से यही रहे हैं, जो चंपई सोरेन के इस बयान में भी नज़र आ रहे हैं.

उन्होंने सभी आदिवासी समुदायों से अपील की कि वे सतर्क रहें, जागरूक बनें और धर्मांतरण के खिलाफ खड़े हों. उन्होंने कहा कि यह समय अपनी जड़ों से जुड़ने और अपनी संस्कृति को बचाने का है.

बीजेपी में खुद को स्थापित करने की कोशिश हो सकती है

चंपई सोरेन, जिन्हें ‘कोल्हान टाइगर’ कहा जाता था. कभी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के मजबूत स्तंभ रहे चंपई अब धर्मांतरण और अनुसूचित जनजाति (ST) सूची से धर्मांतरित आदिवासियों को बाहर करने की मांग उठा रहे हैं.

अब जब वे धर्मांतरण और डीलिस्टिंग जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठा रहे हैं, तो यह केवल सामाजिक चिंता नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक राजनीतिक चाल भी नजर आ रही है.

यह मुद्दा बीजेपी की लंबे समय से चली आ रही वैचारिक लाइन के अनुरूप है—जहां आदिवासी पहचान को ‘हिंदू’ पहचान से जोड़ने की कोशिश होती रही है, और ईसाई धर्मांतरण को ‘बाहरी हस्तक्षेप’ के रूप में पेश किया जाता रहा है.

ऐसे में सवाल उठता है—क्या चंपई सोरेन बीजेपी के भीतर वह चेहरा बनना चाहते हैं, जो आदिवासी समाज को वैचारिक रूप से भी बीजेपी की धारा में ले आए? क्या वे हेमंत सोरेन और झामुमो की धर्मनिरपेक्ष राजनीति के मुकाबले एक वैकल्पिक, विचारधारा-आधारित आदिवासी नेता के तौर पर खुद को पेश करने में जुटे हैं?

कुल मिला कर चंपई सोरेन का यह नया अवतार केवल व्यक्तिगत राजनीतिक पुनर्स्थापना की कोशिश है. क्योंकि बीजेपी को यह उम्मीद थी की चंपई सोरेन के ज़रिए झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में कामयाबी हासिल की जा सकती है.

लेकिन चंपई सोरेन इस अपेक्षा पर खरे नहीं उतर पाए. बीजेपी में चंपई सोरेन का मुकाबला बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्रियों अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी सरीखे नेताओं से है.

इसलिए वे शायद खुद को एक ऐसा बीजेपी नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश में हो सकते हैं जो आदिवासी राजनीति की धारा को मोड़ सकता है. लेकिन क्या आदिवासी समाज चंपई सोरेन के इस नए अवतार को स्वीकार करेगा, इसमें संदेह है, क्योंकि वे जो मुद्दे उठा रहे हैं पिछले चुनाव में वे सभी मुद्दे पिट चुके हैं.

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