आंध्र प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों में अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए कुछ नौकरियों में 100 प्रतिशत आरक्षण पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है.
इस सिलसिले में मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण समीक्षा बैठक की.
इस बैठक के दौरान अधिकारियों को निर्देश दिए गए कि वे एजेंसी क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों के लिए सरकारी आदेश नंबर 3 (Government Order No. 3) के अंतर्गत 100% आरक्षण को बहाल करने के कानूनी और प्रशासनिक उपायों की गंभीरता से जांच करें.
मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सही समय पर पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं की जिससे आदिवासी समुदायों को बड़ा नुकसान हुआ.
आरक्षण का 1986 से लेकर 2020 तक का सफर
मुख्यमंत्री ने बताया कि सबसे पहले 1986 में एक सरकारी आदेश (GO) के ज़रिए एजेंसी क्षेत्रों में शिक्षक पदों पर स्थानीय आदिवासियों के लिए 100% आरक्षण दिया गया था. लेकिन बाद में कानूनी चुनौतियों के चलते यह नीति विवादों में आ गई.
इसे सुधारते हुए 2000 में GO नंबर 3 लाया गया जिसमें महिलाओं के लिए भी आरक्षण को शामिल किया गया.
इस नीति के तहत करीब 4,626 शिक्षक पदों पर आदिवासी उम्मीदवारों की नियुक्ति हुई थी.
एजेंसी क्षेत्र क्या होते हैं?
आंध्र प्रदेश में “एजेंसी क्षेत्र” या “एजेंसी ट्रैक्ट्स” उन विशिष्ट इलाकों को कहा जाता है जो राज्य के पूर्वी ज़िलों में स्थित हैं और जिन्हें भारतीय संविधान की पाँचवीं अनुसूची (Fifth Schedule) के तहत “अनुसूचित क्षेत्र” (Scheduled Areas) घोषित किया गया है.
इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय बसे हुए हैं और यहां आदिवासियों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए विशेष नियम और प्रावधान लागू होते हैं.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
अप्रैल 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने GO नंबर 3 को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया था.
कोर्ट का मानना था कि 100% आरक्षण “मनमाना और असंवैधानिक” है. इसके बाद यह आरक्षण व्यवस्था बंद हो गई.
आंदोलन और जनविरोध
सुप्रीम कार्ट के आदेश के तहत इसे रद्द किए जाने के बाद तेलंगाना के आदिवासी ज़िलों में जून 2020 में विरोध भी हुआ था.
प्रदर्शनकारियों ने तत्कालीन सरकार से सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग भी की थी.
अलूरी सीताराम राजू (ASR) ज़िले में आदिवासी समुदायों ने कुछ दिनों पहले भी GO नंबर 3 की बहाली की मांग करते हुए जिला बंद का आह्वान किया था. उस दिन बाज़ार, पर्यटन स्थल और सड़कें बंद रहीं थी.
यह मुद्दा केवल आंध्र प्रदेश तक सीमित नहीं रहा है. तेलंगाना में भी कुछ समय पहले GO नंबर 3 को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए थे, जहाँ आदिवासी संगठन इस नीति की बहाली की मांग कर रहे थे.
कई आदिवासी युवाओं ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन्हें शिक्षक पदों से हटा दिया गया या नियुक्तियों पर रोक लग गई.
सरकार के समक्ष विकल्प
मुख्यमंत्री ने जनजातीय कल्याण और विधि विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए आरक्षण नीति को दोबारा लागू करने की संभावनाएं तलाशें. इसके बाद बैठक में तीन विकल्पों पर चर्चा भी हुई.
1. 100% आरक्षण की बहाली – GO नंबर 3 के मूल स्वरूप में नीति को लागू करना.
2. जनसंख्या के अनुसार आरक्षण – संबंधित क्षेत्रों में आदिवासियों की जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देना.
3. 50% सीमा के अंदर आरक्षण – सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अधिकतम सीमा को ध्यान में रखते हुए आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना.
जनजातीय समुदाय की राय होगी अहम
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मुद्दे पर आदिवासी समुदायों और संगठनों से सलाह ली जाएगी ताकि नीति को ज़मीनी हकीकत से जोड़ा जा सके.
इसके साथ ही उन्होंने संविधान और कानून विशेषज्ञों से भी राष्ट्रीय स्तर पर सलाह लेने की बात कही.