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पेसा कानून को लेकर अपनी ही पार्टी पर आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने उठाए सवाल

अरविंद नेताम ने राज्य सरकार से पेसा कानून के नियमों पर पुनर्विचार करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार नियमों को लेकर अडिग रहती है तो आदिवासी समाज भविष्य में आंदोलन को लेकर विचार कर सकता है.

9 अगस्त 2022, विश्व आदिवासी दिवस के दिन छत्तीसगढ़ राज्य ने महत्वपूर्ण कानून पेसा के लिए नियमों को राजपत्र में अधिसूचित किया था. लेकिन अब पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम (Arvind Netam) ने पेसा कानून (PESA Act) को लेकर अपनी ही पार्टी की राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है.

पेसा कानून को लेकर बनाए गए नियमों पर बस्तर में सर्व आदिवासी समाज और कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री और बस्तर के वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने ऐतराज जताया है. उन्होंने कहा कि ये नियम पेसा कानून को कमजोर करने के लिए बनाए गए हैं.

सरकार द्वारा बनाए गए नियमों ने पेसा एक्ट की आत्मा को ही खत्म कर दिया है. नेताम ने कहा कि इन नियमों को लेकर वे जल्द ही मुख्यमंत्री से मुलाकात कर इस पर दोबारा विचार करने को कहेंगे.

अरविंद नेताम का कहना है कि वर्ष 1996 में संविधान की पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में स्वशासन की स्थापना के लिए पेसा कानून पारित किया गया था. देश में ऐसे कुल 10 राज्य हैं जो पूर्ण या आंशिक रूप से इस कानून के अंतर्गत आते हैं, इन राज्यों में से पांच ने पहले ही पेसा कानून को लागू करने की नियमावली बना ली थी.

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार  ने पेसा कानून को लागू कराने के लिए नियमों को जरूर बना लिया है लेकिन इस कानून की मूल भावना के साथ बनाए गए नियम इंसाफ नहीं कर रहे हैं.

नेताम का कहना है कि ग्राम सभा की संवैधानिक शक्तियों को जिला प्रशासन के सामने बौना बना दिया गया है, या फिर यूं कहें कि इसकी अहमीयत घटा दी गई है. किसी भी क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण से पहले ग्राम सभाओं की सहमति के प्रावधान को सिर्फ परामर्श तक सीमित किया गया है, जो ठीक नहीं है. इसको लेकर सर्व आदिवासी समाज को एतराज है और इस मामले को आदिवासी समाज गंभीरता से ले रहा है.

अरविंद नेताम ने आगे कहा कि बस्तर के अन्य आदिवासी समाज के लोगों से भी इसको लेकर चर्चा की जा रही है. उन्होंने कहा कि पेसा कानून की नियमावली पर सरकार को दोबारा विचार कर संशोधन करने को कहा जाएगा. इसके लिए जल्द ही बस्तर के आदिवासी समाज के प्रमुख इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री से मुलाकात करेंगे.

उन्होंने आगे कहा कि अगर राज्य सरकार नियमों को लेकर अडिग रहती है तो आदिवासी समाज भविष्य में आंदोलन को लेकर विचार कर सकता है. फिलहाल बातचीत से समाधान का प्रयास किया जाएगा.

क्या है पेसा कानून?

पेसा कानून देश के संविधान की पाँचवीं अनुसूची क्षेत्रों में लागू होता है जो संविधान के 73वें संशोधन के बाद प्रभाव में आया. 24 दिसंबर 1996 को पेसा क़ानून देश की संसद से पारित हुआ जिसे अब 25 साल हो चुके हैं. इन 25 सालों में ऐसे दस राज्यों में जहां पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र हैं, लेकिन महज़ छह राज्यों ने ही अब तक इस कानून के क्रियान्वयन के लिए नियम बनाने की पहल की है.

1996 में वजूद में आए पेसा कानून में यह स्पष्ट प्रावधान है कि वन भूमि के डायवर्जन या भूमि-अधिग्रहण से पहले ग्राम सभा से ‘परामर्श’ किया जाना ज़रूरी है. जिसे 2006 में आए वन अधिकार (मान्यता) कानून में ग्राम सभाओं को और तवज्जो देते हुए इस परमर्श के प्रावधान को सहमति में बदल दिया. यहां तक कि 2013 में आए भूमि अधिग्रहण, पुनर्स्थापन और पुनर्वास कानून में भी पाँचवीं अनुसूची क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण से पहले समुदायों की ‘सहमति’ के स्पष्ट प्रावधान किए गए हैं.

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