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बस्तर में छत्तीसगढ़ सरकार का रवैया लोकतांत्रिक नहीं है – बेला भाटिया

उन्होंने कहा कि सरकार के रवैये से महामारी के प्रकोप के बीच जो स्थिति बनी है, उससे बड़ी संख्या में आदिवासी लोगों की ज़िंदगी ख़तरे में पड़ गई है. उन्होंने कहा कि सरकार ने जिस तरह का रूख अपनाया है, उससे आदिवासी आंदोलन करने के लिए मजबूर हुए हैं.

बस्तर के आदिवासी आंदोलन के मामले में छत्तीसगढ़ सरकार से लोकतांत्रिक तरीक़े से समाधान निकालने की अपील की गई है. यह अपील मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने की है. 

मानवाधिकार कार्यकर्ता और जानी-मान वकील बेला भाटिया ने रायपुर में राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाक़ात के बाद यह बात कही है. 

उन्होंने मुख्यमंत्री से मुलाक़ात में फेक एनकाउंटर का मसला भी उठाया है. बेला भाटिया ने कहा है कि बस्तर में आदिवासी मसलों के समाधान की कोशिशों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया ग़ायब है. 

उन्होंने कहा कि सरकार के रवैये से महामारी के प्रकोप के बीच जो स्थिति बनी है, उससे बड़ी संख्या में आदिवासी लोगों की ज़िंदगी ख़तरे में पड़ गई है. उन्होंने कहा कि सरकार ने जिस तरह का रूख अपनाया है, उससे आदिवासी आंदोलन करने के लिए मजबूर हुए हैं. 

बेला भाटिया ने कहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार का रवैया डेमोक्रेटिक नहीं है

बेला भाटिया ने मीडिया से कहा कि छत्तीसगढ़ ने महामारी के दौरान उकसाने वाले फ़ैसले लिए हैं. इन फ़ैसलों की वजह से बस्तर के आदिवासी इलाक़े में टकराव की स्थिति बनी है. 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाक़ात के बाद उन्होंने यह भी कहा कि सिलगेर में पुलिस कैंप के बारे में लिया गया फ़ैसला लोगों से बातचीत करके नहीं लिया गया. उन्होंने दावा किया कि जब वो घटना स्थल पर गईं और आंदोलन कर रहे आदिवासियों से मिलीं तो उन्हें लोगों ने यह शिकायत की थी. 

बेला भाटिया ने यह भी बताया कि उन्होंने सिलगेर से रिपोर्ट हुए फ़ेक एनकाउंटर का मसला भी मुख्यमंत्री के सामने उठाया है. उन्होंने मुख्यमंत्री के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि बस्तर में प्रशासन के सारे अधिकार पुलिस और सुरक्षाबल इस्तेमाल कर रहे हैं.

भूपेश बघेल पुलिस कैंप के फ़ैसले से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं.

उनकी नज़र में सिलगेर में सुरक्षा बलों द्वारा गोली चलाए जाने की घटना इस बात की तरफ़ इशारा करती है.

आज सिलगेर में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल का कैंप स्थापित करने के ख़िलाफ़ आंदोलन को 28 दिन पूरे हो गए हैं. अभी तक पुलिस और प्रशासन की तरफ़ से आंदोलन को शांत करने के सभी प्रयास बेकार साबित हुए हैं.

सिलगेर में पुलिस की गोली से आदिवासियों की मौत के बाद से आंदोलनकारी बेहद नाराज़ हैं. उनका कहना है कि पुलिस ने निहत्थे लोगों पर गोलीबारी की है. उनका मानना है कि पुलिस बंदूक़ का डर दिखा कर आंदोलन को ख़त्म करना चाहती है. 

उधर छत्तीसगढ़ सरकार का अपने फ़ैसले पर डटी हुई है. इस इलाक़े में पुलिस कैंप की स्थापना छत्तीसगढ़ सरकार का एक नीतिगत फ़ैसला है. सरकार का मानना है कि इस आंदोलन के पीछे माओवादी हैं.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तरफ़ से कहा गया है कि वो उस इलाक़े में विकास से जुड़ी माँगो को मानने के लिए तैयार हैं. लेकिन उनकी सरकार की तरफ़ से अभी तक यही कहा जा रहा है कि पुलिस कैंप की स्थापना शांति क़ायम करने के लिए की जा रही है.

राज्य सरकार का मानना है कि इन इलाक़ों में सुरक्षा बलों के कैंप मौजूद होने से माओवादियों की गतिविधियों पर लगाम लगाई जा सकेगी. इसके अलावा शांति अगर क़ायम होती है तो यहाँ के इलाक़ों में विकास योजनाओं को अमल में लाया जा सकेगा.

लेकिन जानकारों का कहना है कि माओवादियों से निपटने के लिए स्थानीय लोगों का भरोसा जीतना बेहद ज़रूरी है. हालाँकि सरकार अभी किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नज़र नहीं आ रही है. 

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