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आदिवासियों को पौष्टिक भोजन देने के लिए दायर याचिका पर कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

महामारी और लॉकडाउन की वजह से आदिवासी अपनी उपज बाज़ारों में बेच नहीं पाए, जिसके कारण उन्हें आर्थिक तौर पर काफ़ी परेशानी उठानी पड़ी. सिर्फ़ तमिलनाडु के ही नहीं, देशभर के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले सभी आदिवासियों को इस तरह की कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने एक जनहित याचिका पर केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा है. इस जनहित याचिका में COVID-19 महामारी के दौरान आदिवासी समुदायों की दुर्दशा को उठाया गया है.  

जस्टिस टी एस शिवज्ञानम और एस आनंदी ने पुदुक्कोट्टई के आर एझिलोविया द्वारा दायर जनहित याचिका पर जवाब मांगा है. इस याचिका में तमिलनाडु के आदिवासी समुदायों को पौष्टिक भोजन देने के लिए सामुदायिक रसोई स्थापित करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग है.

याचिकाकर्ता विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के साथ काम करती हैं, और आदिवासी बच्चों को किताबें, नोट्बुक्स और पढ़ाई के लिए दूसरी ज़रूरी चीज़ों के वितरण में शामिल हैं. उनका कहना है कि आदिवासी समुदाय COVID-19 महामारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए.

महामारी और लॉकडाउन की वजह से आदिवासी अपनी उपज बाज़ारों में बेच नहीं पाए, जिसके कारण उन्हें आर्थिक तौर पर काफ़ी परेशानी उठानी पड़ी. सिर्फ़ तमिलनाडु के ही नहीं, देशभर के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले सभी आदिवासियों को इस तरह की कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

ज़्यादातर आदिवासी कोविड महामारी के दौरान सरकार और गैर सरकारी संगठनों की मदद पर ही काफ़ी हद तक निर्भर रहे. महामारी ने एक आत्मनिर्भर आबादी को आश्रित आबादी में बदल दिया.

इसके अलावा लंबे समय तक कोविड से बचे रहने वाले आदिवासी समुदायों में यह बीमारी अब तेज़ी से फैल रही है. कई राज्य, जिसमें तमिलनाडु भी शमिल है, आदिवासियों को पहले वैक्सीन देने पर ज़ोर दे रहे हैं. इसके लिए इन राज्यों में अलग से ट्राइबल वैक्सिनेशन अभियान चलाए जा रहे हैं.

तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले, जहां राज्य की एक बड़ी आदिवासी आबादी रहती है, में जून के अंत तक सभी आदिवासियों को वैक्सीन लगाने का प्लान है.

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