त्रिपुरा के एक प्रमुख राजनीतिक दल सीपीआई (एम) ने टिपरा मोथा पार्टी पर तीखा हमला बोला है.
पार्टी ने आरोप लगाया है कि टिपरा मोथा ने आदिवासी समुदाय को भ्रमित किया है और उनके साथ धोखा किया है.
पार्टी ने कहा कि जो टिपरा मोथा कभी नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का विरोध कर रही थी वही अब उसी कानून को लाने वाली बीजेपी के साथ गठबंधन कर रही है.
सीपीआई (एम) ने कहा, “टिपरा मोथा दिखावा कर रही है कि वह अवैध घुसपैठ के खिलाफ है लेकिन वही पार्टी अब बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही है – वही बीजेपी जिसने धार्मिक आधार पर नागरिकता देने वाला CAA कानून बनाया. यह सीधे तौर पर आदिवासी भावनाओं के साथ विश्वासघात है.”
CPI(M) ने हाल ही में सवाल उठाया कि टिपरा मोथा जो खुद को आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ने वाली पार्टी बताती है, वह कैसे उस केंद्र सरकार की सहयोगी बन सकती है जिसने 1971 का इंदिरा-मुजीब समझौता और 1985 का असम समझौता कमज़ोर कर दिया?
पार्टी का कहना है कि इन दोनों समझौतों का उद्देश्य एक निश्चित कट-ऑफ तारीख के बाद आए अवैध प्रवासियों को बाहर रखना था. लेकिन CAA ने इसे धार्मिक आधार पर बदल दिया.
सीपीआई (एम) का कहना है कि टिपरा मोथा की यह दोहरी नीति उनकी नीयत पर सवाल खड़े करती है.
CPI(M) ने कहा कि लगभग एक साल पहले त्रिपक्षीय समझौता हुआ था जिसमें ADC के विकास के वादे किए गए थे लेकिन आज तक उन वादों को लागू नहीं किया गया. इससे साबित होता है कि टिपरा मोथा आदिवासियों के हितों को लेकर गंभीर नहीं है.
भले ही टिपरा मोथा बीजेपी के साथ सरकार में शामिल है, लेकिन पार्टी के नेता आदिवासियों से जुड़े ज़्यादातर मुद्दों पर सरकार से नाराज़ ही दिखे हैं. पार्टी नेताओं का कहना है कि उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा और जो वादे किए गए थे, वे भी अधूरे हैं.
टिपरा मोथा की अधूरी मांगों की सुचि में ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की मांग भी शामिल है. इस विषय पर चर्चा और अध्ययन के लिए गृह मंत्रालय द्वारा एक वार्ताकार की नियुक्ति के महीनों बाद भी कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है.
इसके अलावा टिपरा मोथा की मांग के अनुसार, आदिवासी स्वायत्त जिला परिषद (ADC) को सीधे केंद्र से फंडिंग भी नहीं मिल रही है.
टिपरा मोथा और बीजेपी के बीच कोकबोरोक भाषा को लेकर भी विवाद चल रहा है.
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आदिवासी हितों के लिए टिपरा मोथा की बहुत सी मांगें अभी पूरी नहीं हो सकीं हैं. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि टिपरा मोथा हर बार बीजेपी के निर्णयों से सहमत रही है, समय -समय पर टिपरा मोथा के संस्थापक प्रद्योत किशोर माणिक्य दृढ़ता से आदिवासी हितों के पक्ष में रहते हुए बीजेपी के खिलाफ़ खड़े नज़र आए हैं.