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‘बजट में मनरेगा, फूड सब्सिडी में कटौती का सबसे ज्यादा असर होगा आदिवासियों पर’

अक्सर आदिवासियों के कल्याण के लिए निर्धारित खर्च "भ्रामक" होता है.

आदिवासी एडवोकेसी ग्रुप, आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच (एएआरएम) ने 1 फ़रवरी को पेश किए गए बजट को आलोचना करते हुए कहा है कि फूड सब्सिडी और मनरेगा के आवंटन में कटौती से आदिवासी समुदायों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा.

एएआरएम ने एक प्रेस बयान में कहा, “आदिवासी समुदायों में कुपोषित लोगों की संख्या सबसे ज़्यादा है, खासतौर से बच्चों और महिलाओं में. फूड सब्सिडी में कटौती इनके लिए बुरी होगी और इनकी भूख को बढ़ाएगी.”

ग्रुप ने यह भी कहा है कि महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में कुल श्रमिकों का 20% हिस्सा आदिवासी समुदायों का है, जो आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए मनरेगा आवंटन में 25% कटौती का खामियाजा भुगतेंगे.

एएआरएम ने कहा, “मनरेगा श्रमिकों के बीच हमारा 20% हिस्सा कुल आबादी में हमारे हिस्से के दोगुने से ज़्यादा है. इससे साफ है कि आदिवासियों को मजदूरी के काम की कितनी सख्त जरूरत है.”

केंद्रीय बजट में 89,265.12 करोड़ रुपए का आवंटन, जो कुल व्यय का केवल 2.26% है, 2011 की जनगणना के अनुमानों के अनुसार जरूरी 8.6% आवंटन से काफी कम है. 8.6% का आवंटन ही देश की आदिवासी आबादी के लिए पर्याप्त होगा.

ग्रुप ने यह भी दावा किया कि अक्सर आदिवासियों के कल्याण के लिए निर्धारित खर्च “भ्रामक” होता है.

“मोदी सरकार के तहत विशेष आदिवासी घटक (Scheduled Tribe Component) आदिवासियों के विकास के लिए सीधे पैसे को दूसरे खर्चों में बदलकर आदिवासियों को धोखा दे रहा है. चालीस विभागों / मंत्रालयों को एसटीसी का हिस्सा बनना अनिवार्य है. मसलन, राजमार्गों के निर्माण पर खर्च किए गए 4,500 करोड़ रुपये को आदिवासियों के खर्च के हिस्से के रूप में दिखाया गया है, जबकि 50% आदिवासी गांवों में कोई सार्वजनिक परिवहन तक नहीं है. एसटीसी इस तरह के डाइवर्जन से भरा हुआ है. यह आदिवासी समुदायों को धोखा देने के बराबर है,” बयान में कहा गया है.

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